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राज्य आंदोलनकारियों को लेकर CM धामी की घोषणा पर घमासान, पढ़ें पूरी खबर - Uttarakhand Raj Bhavan

राज्य आंदोलनकारियों को लेकर सीएम धामी के बयान के बाद प्रदेश में घमासान मचा हुआ है. 2 अक्टूबर को रामपुर तिराहा पहुंचे सीएम धामी ने कहा है कि जो राज्य आंदोलनकारी सरकारी नौकरी कर रहे हैं, उन्हें नहीं हटाया जाएगा. इसके लिए हाईकोर्ट में राज्य सरकार सही ढंग से पैरवी करेगी.

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राज्य आंदोलनकारियों को लेकर CM धामी के बयान से मचा घमासान
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Published : Oct 3, 2021, 9:29 PM IST

Updated : Oct 3, 2021, 10:53 PM IST

देहरादून: रामपुर तिराहा कांड को 27 साल होने पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य आंदोलनकारियों को बड़ी राहत देने की घोषणा की है, जिसके तहत राज्य आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण प्रक्रिया की समय सीमा बढ़ाने, मेडिकल कॉलेजों में मुफ्त इलाज, सरकारी नौकरी में 10 फीसदी आरक्षण के तहत काम कर रहे राज्य आंदोलनकारियों के लिए हाईकोर्ट में पैरवी करने की बात कही है. जिस पर न सिर्फ सक्रिय राज्य आंदोलनकारियों बल्कि जानकारों ने भी सवाल खड़े कर दिए हैं.

दरअसल, 2 अक्टूबर 1994 को रामपुर तिराहा कांड हुआ था. जिस दौरान कई आंदोलनकारियों ने अपनी शहादत दी थी. उस रात इंसानियत को शर्मसार करने वाली बर्बरता भी हुई थी, जिसके जख्म अभी भी नहीं भरे हैं. वहीं, 2 अक्टूबर को रामपुर तिराहा पहुंचे सूबे के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक बड़ी घोषणा की है. जिसके तहत जो राज्य आंदोलनकारी सरकारी नौकरी कर रहे हैं, उन्हें नहीं हटाया जाएगा. इसके लिए हाईकोर्ट में राज्य सरकार सही ढंग से पैरवी करेगी.

CM धामी की घोषणा पर घमासान

एनडी तिवारी सरकार ने दी थी 525 आंदोलनकारियों की नौकरी: राज्य गठन के बाद साल 2002 में पहली निर्वाचित सरकार में एनडी तिवारी ने बतौर मुख्यमंत्री राज्य की कमान संभाली थी. उस दौरान राज्य आंदोलनकारियों ने एनडी तिवारी से मुलाकात कर उनको सुविधा दिए जाने की बात कही थी. जिसके बाद एनडी तिवारी सरकार ने उस दौरान राज्य आंदोलनकारियों को सुविधा दिए जाने के लिए कुछ नियम बनाए थे. जिसके तहत जो आंदोलनकारी 7 दिन से अधिक का जेल और घायल हुआ हो, उसे सरकारी नौकरी दी जाएगी. इस प्रक्रिया के तहत उस दौरान करीब 525 राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी दी गई. इसके साथ ही 1 से 6 दिन तक जेल में रहने वाले आंदोलनकारियों के लिए 10% आरक्षण की व्यवस्था के तहत तमाम लोगों को नौकरी दी गई.

2010 में लागू की गई 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था: वो सक्रिय राज्य आंदोलनकारी जो ना कभी जेल गए और ना घायल हुए. उनको लेकर भी राज्य आंदोलनकारी लगातार राज्य सरकार से इस बात की मांग करते रहे कि उन्हें भी सुविधा दी जानी चाहिए. लेकिन तब तक राज्य में सरकार बदल गई. साल 2007 में सरकार बदलने के बाद भी आंदोलनकारी लगातार राज्य सरकार से मांग करते रहे. 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने चिन्हित राज्य आंदोलनकारियों के लिए 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई. जिससे करीब 200 आंदोलनकारियों को इसका लाभ मिला ही था कि एक राज्य आंदोलनकारी जिला प्रशासन की व्यवस्थाओं से नाखुश होकर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी.

पढ़ें- CM धामी ने रामपुर तिराहा कांड के शहीदों को दी श्रद्धांजलि, राज्य आंदोलनकारियों का होगा मुफ्त इलाज

क्षैतिज आरक्षण व्यवस्था पर हाईकोर्ट ने दिया स्थगन का आदेश: 26 अगस्त, 2013 को नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था पर स्थगन आदेश दे दिया. हाईकोर्ट ने इस बात का जिक्र किया कि अब से 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था के तहत कोई नियुक्ति नहीं की जाएगी, जिसके बाद से ही आज तक नियुक्त की सभी मामले पेंडिंग पड़े हुए हैं.

राज्य आंदोलनकारियों ने इस बाबत लगातार सरकार से मांग कर रहे थे कि इस संबंध में राज्य सरकार एक्ट बनाए, जिसके बाद साल 2015 में गैरसैंण में हुए विधानसभा सत्र के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सरकारी नौकरियों में राज्य आंदोलनकारियों को 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था संबंधी विधेयक पारित किया और उस विधेयक को राजभवन भेज दिया गया.

क्षैतिज आरक्षण के लिए हरीश रावत लाए थे विधेयक: हरीश रावत के सरकार में विधेयक को सदन से पारित करने के बाद राजभवन तो भेज दिया गया. लेकिन अभी तक राजभवन ने उस फाइल पर सहमति नहीं जताई है. पिछले 6 सालों से वह विधेयक राजभवन में ही पड़ा हुआ है.

राज्य आंदोलनकारियों के क्षैतिज आरक्षण से जुड़ा विधेयक, राजभवन भेजे जाने के बाद से अभी तक तीन राज्यपाल बदल चुके हैं, लेकिन अभी तक राज्य आंदोलनकारियों के इस विधेयक पर राजभवन ने अपनी मुहर नहीं लगाई है. इस संबंध में राज्य आंदोलनकारी पिछले दोनों राज्यपाल से कई बार मुलाकात भी कर चुके हैं. लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी है. ऐसे में अब उन्हें नए राज्यपाल गुरमीत सिंह से उम्मीद है कि वह जल्द ही इस विधेयक पर अपनी मुहर लगाएंगे.

राजभवन में विधेयक भेजे जाने के बाद से बदल चुके हैं 3 राज्यपाल: हरीश रावत के शासनकाल से अभी तक तीन राज्यपाल बदल चुके हैं, क्योंकि हरीश रावत के कार्यकाल के दौरान केके पॉल राज्यपाल की भूमिका निभा रहे थे. साल 2017 में राज्य में हुए चुनाव के बाद राज्यपाल भी बदल दिए गए. फिर बेबी रानी मौर्य को उत्तराखंड के राज्यपाल की जिम्मेदारी सौंपी गई.

बेबी रानी मौर्य का कार्यकाल पूरा होता, इससे पहले ही बेबी रानी मौर्य ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह को उत्तराखंड का नया राज्यपाल बनाया गया. ऐसे में अब राज्य आंदोलनकारी नए राज्यपाल से समय लेने की जुगत में जुटे हुए हैं. ताकि वह अपनी समस्याओं का समाधान करा सकें, जो कि पिछले 6 सालों से लंबित पड़ी हुई हैं.

पढ़ें- क्या उत्तराखंड में वाकई हो रहा डेमोग्राफिक बदलाव? पढ़िए ये ग्राउंड रिपोर्ट

हाईकोर्ट जाने की समय सीमा पहले ही हो चुकी है समाप्त: राज्य आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती ने बताया कि हाईकोर्ट में राज्य आंदोलनकारियों के लिए 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था की समय सीमा समाप्त हो चुकी है. ऐसे में राज्य सरकार को चाहिए या तो वह इस संबंध में अध्यादेश लेकर आए या फिर पिछले 6 सालों से राजभवन में पड़ी विधेयक पर राजभवन की सहमति के लिए पैरवी करे. शासन और सरकार के बीच एक बड़ा कम्युनिकेशन गैप है, जिस वजह से ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाईकोर्ट जाने की बात कही है, जबकि उच्च न्यायालय द्वारा दी गई समय सीमा बहुत पहले ही समाप्त हो चुकी है.

मुख्यमंत्री को जानकारी ना होना दुर्भाग्यपूर्ण: वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने बताया कि यह एक गंभीर बात है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस तरह का बयान दे रहे हैं. हालांकि, यह भी हो सकता है कि उन्हें उस विधेयक की जानकारी ना हो. लेकिन अगर उन्हें इसकी जानकारी नहीं है या फिर वो जानकर भी अनजान बन है, तो दोनों ही स्थितियां दुर्भाग्यपूर्ण है. ऐसे में मुख्यमंत्री का बयान, राज्य आंदोलनकारियों को बेवकूफ बनाने वाला है.

जय सिंह रावत ने कहा कि ऐसे राजभवन किसी भी फाइल को नहीं रोकता है, जब तक उसमें कोई कमी ना हो और अगर कमी होती है, तो वह फाइल को वापस भेज देता है और उसे ठीक कर दोबारा भेजने की बात करता है. यह आश्चर्य की बात है पिछले 6 सालों से राज्य आंदोलनकारियों से जुड़ी एक विधेयक राजभवन में पड़ा हुआ है. ऐसे में हाईकोर्ट जाने के बजाय राज्य सरकार को राजभवन में इस बाबत बातचीत करनी चाहिए.

राज्य आंदोलनकारियों को लेकर मुख्यमंत्री हैं काफी संवेदनशील: इस मामले पर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता शादाब शम्स ने कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य आंदोलनकारियों को लेकर जो बयान दिया है. उससे यह साफ जाहिर है कि मुख्यमंत्री राज्य आंदोलनकारियों को लेकर काफी संवेदनशील है. लिहाजा, वह चाहते हैं कि राज्य आंदोलनकारियों को उनका उचित सम्मान मिले. जो उत्तराखंड राज्य के दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. सभी उनके इस बयान का सम्मान करते हैं.

देहरादून: रामपुर तिराहा कांड को 27 साल होने पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य आंदोलनकारियों को बड़ी राहत देने की घोषणा की है, जिसके तहत राज्य आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण प्रक्रिया की समय सीमा बढ़ाने, मेडिकल कॉलेजों में मुफ्त इलाज, सरकारी नौकरी में 10 फीसदी आरक्षण के तहत काम कर रहे राज्य आंदोलनकारियों के लिए हाईकोर्ट में पैरवी करने की बात कही है. जिस पर न सिर्फ सक्रिय राज्य आंदोलनकारियों बल्कि जानकारों ने भी सवाल खड़े कर दिए हैं.

दरअसल, 2 अक्टूबर 1994 को रामपुर तिराहा कांड हुआ था. जिस दौरान कई आंदोलनकारियों ने अपनी शहादत दी थी. उस रात इंसानियत को शर्मसार करने वाली बर्बरता भी हुई थी, जिसके जख्म अभी भी नहीं भरे हैं. वहीं, 2 अक्टूबर को रामपुर तिराहा पहुंचे सूबे के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक बड़ी घोषणा की है. जिसके तहत जो राज्य आंदोलनकारी सरकारी नौकरी कर रहे हैं, उन्हें नहीं हटाया जाएगा. इसके लिए हाईकोर्ट में राज्य सरकार सही ढंग से पैरवी करेगी.

CM धामी की घोषणा पर घमासान

एनडी तिवारी सरकार ने दी थी 525 आंदोलनकारियों की नौकरी: राज्य गठन के बाद साल 2002 में पहली निर्वाचित सरकार में एनडी तिवारी ने बतौर मुख्यमंत्री राज्य की कमान संभाली थी. उस दौरान राज्य आंदोलनकारियों ने एनडी तिवारी से मुलाकात कर उनको सुविधा दिए जाने की बात कही थी. जिसके बाद एनडी तिवारी सरकार ने उस दौरान राज्य आंदोलनकारियों को सुविधा दिए जाने के लिए कुछ नियम बनाए थे. जिसके तहत जो आंदोलनकारी 7 दिन से अधिक का जेल और घायल हुआ हो, उसे सरकारी नौकरी दी जाएगी. इस प्रक्रिया के तहत उस दौरान करीब 525 राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी दी गई. इसके साथ ही 1 से 6 दिन तक जेल में रहने वाले आंदोलनकारियों के लिए 10% आरक्षण की व्यवस्था के तहत तमाम लोगों को नौकरी दी गई.

2010 में लागू की गई 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था: वो सक्रिय राज्य आंदोलनकारी जो ना कभी जेल गए और ना घायल हुए. उनको लेकर भी राज्य आंदोलनकारी लगातार राज्य सरकार से इस बात की मांग करते रहे कि उन्हें भी सुविधा दी जानी चाहिए. लेकिन तब तक राज्य में सरकार बदल गई. साल 2007 में सरकार बदलने के बाद भी आंदोलनकारी लगातार राज्य सरकार से मांग करते रहे. 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने चिन्हित राज्य आंदोलनकारियों के लिए 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई. जिससे करीब 200 आंदोलनकारियों को इसका लाभ मिला ही था कि एक राज्य आंदोलनकारी जिला प्रशासन की व्यवस्थाओं से नाखुश होकर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी.

पढ़ें- CM धामी ने रामपुर तिराहा कांड के शहीदों को दी श्रद्धांजलि, राज्य आंदोलनकारियों का होगा मुफ्त इलाज

क्षैतिज आरक्षण व्यवस्था पर हाईकोर्ट ने दिया स्थगन का आदेश: 26 अगस्त, 2013 को नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था पर स्थगन आदेश दे दिया. हाईकोर्ट ने इस बात का जिक्र किया कि अब से 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था के तहत कोई नियुक्ति नहीं की जाएगी, जिसके बाद से ही आज तक नियुक्त की सभी मामले पेंडिंग पड़े हुए हैं.

राज्य आंदोलनकारियों ने इस बाबत लगातार सरकार से मांग कर रहे थे कि इस संबंध में राज्य सरकार एक्ट बनाए, जिसके बाद साल 2015 में गैरसैंण में हुए विधानसभा सत्र के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सरकारी नौकरियों में राज्य आंदोलनकारियों को 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था संबंधी विधेयक पारित किया और उस विधेयक को राजभवन भेज दिया गया.

क्षैतिज आरक्षण के लिए हरीश रावत लाए थे विधेयक: हरीश रावत के सरकार में विधेयक को सदन से पारित करने के बाद राजभवन तो भेज दिया गया. लेकिन अभी तक राजभवन ने उस फाइल पर सहमति नहीं जताई है. पिछले 6 सालों से वह विधेयक राजभवन में ही पड़ा हुआ है.

राज्य आंदोलनकारियों के क्षैतिज आरक्षण से जुड़ा विधेयक, राजभवन भेजे जाने के बाद से अभी तक तीन राज्यपाल बदल चुके हैं, लेकिन अभी तक राज्य आंदोलनकारियों के इस विधेयक पर राजभवन ने अपनी मुहर नहीं लगाई है. इस संबंध में राज्य आंदोलनकारी पिछले दोनों राज्यपाल से कई बार मुलाकात भी कर चुके हैं. लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी है. ऐसे में अब उन्हें नए राज्यपाल गुरमीत सिंह से उम्मीद है कि वह जल्द ही इस विधेयक पर अपनी मुहर लगाएंगे.

राजभवन में विधेयक भेजे जाने के बाद से बदल चुके हैं 3 राज्यपाल: हरीश रावत के शासनकाल से अभी तक तीन राज्यपाल बदल चुके हैं, क्योंकि हरीश रावत के कार्यकाल के दौरान केके पॉल राज्यपाल की भूमिका निभा रहे थे. साल 2017 में राज्य में हुए चुनाव के बाद राज्यपाल भी बदल दिए गए. फिर बेबी रानी मौर्य को उत्तराखंड के राज्यपाल की जिम्मेदारी सौंपी गई.

बेबी रानी मौर्य का कार्यकाल पूरा होता, इससे पहले ही बेबी रानी मौर्य ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह को उत्तराखंड का नया राज्यपाल बनाया गया. ऐसे में अब राज्य आंदोलनकारी नए राज्यपाल से समय लेने की जुगत में जुटे हुए हैं. ताकि वह अपनी समस्याओं का समाधान करा सकें, जो कि पिछले 6 सालों से लंबित पड़ी हुई हैं.

पढ़ें- क्या उत्तराखंड में वाकई हो रहा डेमोग्राफिक बदलाव? पढ़िए ये ग्राउंड रिपोर्ट

हाईकोर्ट जाने की समय सीमा पहले ही हो चुकी है समाप्त: राज्य आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती ने बताया कि हाईकोर्ट में राज्य आंदोलनकारियों के लिए 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था की समय सीमा समाप्त हो चुकी है. ऐसे में राज्य सरकार को चाहिए या तो वह इस संबंध में अध्यादेश लेकर आए या फिर पिछले 6 सालों से राजभवन में पड़ी विधेयक पर राजभवन की सहमति के लिए पैरवी करे. शासन और सरकार के बीच एक बड़ा कम्युनिकेशन गैप है, जिस वजह से ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाईकोर्ट जाने की बात कही है, जबकि उच्च न्यायालय द्वारा दी गई समय सीमा बहुत पहले ही समाप्त हो चुकी है.

मुख्यमंत्री को जानकारी ना होना दुर्भाग्यपूर्ण: वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने बताया कि यह एक गंभीर बात है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस तरह का बयान दे रहे हैं. हालांकि, यह भी हो सकता है कि उन्हें उस विधेयक की जानकारी ना हो. लेकिन अगर उन्हें इसकी जानकारी नहीं है या फिर वो जानकर भी अनजान बन है, तो दोनों ही स्थितियां दुर्भाग्यपूर्ण है. ऐसे में मुख्यमंत्री का बयान, राज्य आंदोलनकारियों को बेवकूफ बनाने वाला है.

जय सिंह रावत ने कहा कि ऐसे राजभवन किसी भी फाइल को नहीं रोकता है, जब तक उसमें कोई कमी ना हो और अगर कमी होती है, तो वह फाइल को वापस भेज देता है और उसे ठीक कर दोबारा भेजने की बात करता है. यह आश्चर्य की बात है पिछले 6 सालों से राज्य आंदोलनकारियों से जुड़ी एक विधेयक राजभवन में पड़ा हुआ है. ऐसे में हाईकोर्ट जाने के बजाय राज्य सरकार को राजभवन में इस बाबत बातचीत करनी चाहिए.

राज्य आंदोलनकारियों को लेकर मुख्यमंत्री हैं काफी संवेदनशील: इस मामले पर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता शादाब शम्स ने कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य आंदोलनकारियों को लेकर जो बयान दिया है. उससे यह साफ जाहिर है कि मुख्यमंत्री राज्य आंदोलनकारियों को लेकर काफी संवेदनशील है. लिहाजा, वह चाहते हैं कि राज्य आंदोलनकारियों को उनका उचित सम्मान मिले. जो उत्तराखंड राज्य के दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. सभी उनके इस बयान का सम्मान करते हैं.

Last Updated : Oct 3, 2021, 10:53 PM IST
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