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RIVER DAY: प्राकृतिक जल स्रोतों के सूखने पर पर्यावरणविदों ने जताई चिंता

ग्लोबल वार्मिंग के चलते आज देश और दुनिया में दिन पे दिन प्राकृतिक जल स्रोत जैसे नदियां, गाड़-गदेरे सूखने की कगार पर पहुंच गए हैं. जिस पर पर्यावरण विदों ने चिंता जाहिर की है.

प्रदेश में मनाया गया रिवर डे.
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Published : Sep 29, 2019, 3:11 PM IST

देहरादून: प्रदेश में हर साल की तरह सितंबर माह के आखिरी रविवार को रिवर डे मनाया जा रहा है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य आम जनमानस को नदियों के साथ ही प्राकृतिक जल स्रोतों को बचाने के प्रति जागरूक करना है. वहीं, पर्यावरणविद् का मानना है कि पेड़-पौधों की कमी के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं.

प्रदेश में मनाया गया रिवर डे.

बता दें ग्लोबल वार्मिंग के चलते आज देश और दुनिया में दिन पे दिन प्राकृतिक जल स्रोत जैसे नदियां, गाड़-गदेरे सूखने की कगार पर पहुंच गए हैं. वहीं, पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड की बात करें तो बीते कुछ सालों में यहां भी मौसम के बदलते मिजाज का असर साफ देखा जा सकता है. जिसका गहरा प्रभाव हमारी नदियों पर भी पड़ रहा है.

ये भी पढ़ें: WORLD HEART DAY: इन चीजों से खुद को रखें दूर, दिल रहेगा दुरुस्त

सूबे के जाने माने पर्यावरणविद पद्मश्री डॉ. अनिल जोशी ने ग्लोबल वार्मिंग के चलते दिन पर दिन सूख रहे गाड़- गदेरे और नदियों के घटते जलस्तर पर चिंता जाहिर की है. डॉ. जोशी के मुताबिक, ये ग्लोबल वार्मिंग का ही असर है जो ग्लेशियर्स दिन पर दिन पिघलते जा रहे हैं. उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि ग्लेशियर्स धरती पर मौजूद हर एक जीवित वस्तु के लिए पानी का एक बहुत कीमती स्रोत है. उनके मुताबिक, उच्च हिमालयी क्षेत्रों से निकलने वाली जितनी भी नदियां हैं. उनमें ग्लेशियर्स या बारिश का पानी ही बहता है. ऐसे में यदि ग्लेशियर्स ही नहीं रहेंगे तो भविष्य में नदियां भी नहीं रहेंगी.

पर्यावरणविद् अनिल जोशी के मुताबिक, यदि हम अपनी आने वाली पीढ़ी के भविष्य को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो हमें नदियों को बचाने के लिए सबसे पहले जंगलों को बचाना होगा. सभी को ये प्रण लेना होगा कि वहां किसी भी खास मौके पर अपने परिवार के साथ मिलकर पेड़ जरूर लगाएंगे. जब इस तरह हर एक परिवार पेड़ लगाना शुरु करेगा तो जंगल अपने आप बढ़ने लगेंगे.

देहरादून: प्रदेश में हर साल की तरह सितंबर माह के आखिरी रविवार को रिवर डे मनाया जा रहा है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य आम जनमानस को नदियों के साथ ही प्राकृतिक जल स्रोतों को बचाने के प्रति जागरूक करना है. वहीं, पर्यावरणविद् का मानना है कि पेड़-पौधों की कमी के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं.

प्रदेश में मनाया गया रिवर डे.

बता दें ग्लोबल वार्मिंग के चलते आज देश और दुनिया में दिन पे दिन प्राकृतिक जल स्रोत जैसे नदियां, गाड़-गदेरे सूखने की कगार पर पहुंच गए हैं. वहीं, पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड की बात करें तो बीते कुछ सालों में यहां भी मौसम के बदलते मिजाज का असर साफ देखा जा सकता है. जिसका गहरा प्रभाव हमारी नदियों पर भी पड़ रहा है.

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सूबे के जाने माने पर्यावरणविद पद्मश्री डॉ. अनिल जोशी ने ग्लोबल वार्मिंग के चलते दिन पर दिन सूख रहे गाड़- गदेरे और नदियों के घटते जलस्तर पर चिंता जाहिर की है. डॉ. जोशी के मुताबिक, ये ग्लोबल वार्मिंग का ही असर है जो ग्लेशियर्स दिन पर दिन पिघलते जा रहे हैं. उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि ग्लेशियर्स धरती पर मौजूद हर एक जीवित वस्तु के लिए पानी का एक बहुत कीमती स्रोत है. उनके मुताबिक, उच्च हिमालयी क्षेत्रों से निकलने वाली जितनी भी नदियां हैं. उनमें ग्लेशियर्स या बारिश का पानी ही बहता है. ऐसे में यदि ग्लेशियर्स ही नहीं रहेंगे तो भविष्य में नदियां भी नहीं रहेंगी.

पर्यावरणविद् अनिल जोशी के मुताबिक, यदि हम अपनी आने वाली पीढ़ी के भविष्य को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो हमें नदियों को बचाने के लिए सबसे पहले जंगलों को बचाना होगा. सभी को ये प्रण लेना होगा कि वहां किसी भी खास मौके पर अपने परिवार के साथ मिलकर पेड़ जरूर लगाएंगे. जब इस तरह हर एक परिवार पेड़ लगाना शुरु करेगा तो जंगल अपने आप बढ़ने लगेंगे.

Intro:This is a special story on River Day

Desk sending the File footage of river from FTP

FTP Folder- uk_deh_01_world_river_day_pkg_7201636

देहरादून- हर साल सितंबर माह के आखिरी रविवार को world Rivers day मनाया जाता है । जिसका उद्देश्य आम जनमानस को नदियों के साथ ही हमारे प्राकृतिक जल स्रोतों को बचाने के प्रति जागरूक करना है ।

बता दें ग्लोबल वार्मिंग के चलते आज देश और दुनिया में दिन पर दिन प्राकृतिक जल स्रोत जैसे नदिया ,गाड़- गदेरे सूखने की कगार पर पहुंच गए हैं। वहीं पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड की बात करें तो बीते कुछ सालों में यहाँ भी मौसम के बदलते मिज़ाज़ का असर साफ देखा जा सकता है । जिसका कहीं न कहीं गहरा प्रभाव हमारी नदियों पर भी पड रहा है ।




Body:सूबे के जाने माने पर्यावरणविद पद्मश्री डॉ. अनिल जोशी ने ग्लोबल वार्मिंग के चलते दिन पर दिन सुख रहे गाड़- गदेरे, और नदियों के घटते जलस्तर पर चिंता जाहिर की है । डॉ जोशी के मुताबिक यह ग्लोबल वार्मिंग का ही असर है जो ग्लेशियर्स दिन पर दिन पिघलते जा रहे हैं । उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि क्लैशेस धरती पर मौजूद हर एक जीवित वस्तु के लिए पानी का एक बहुत कीमती स्रोत है । उनके मुताबिक ऊंच हिमालयी क्षेत्रों से निकलने वाली जितनी भी नदियां हैं उनमें ग्लेशियर्स या बरसात का पानी ही बहता है । ऐसे में यदि ग्लेशियर्स ही नहीं रहेंगे तो भविष्य में नदियां भी नहीं रहेंगी । वहीं क्योंकि जल ही जीवन है ऐसे में जब नदिया ही नहीं रहेंगी तो धरती से जीवन भी खत्म होने लगेगा।




Conclusion:पर्यावरणविद अनिल जोशी के मुताबिक यदि हम अपनी आने वाली पीढ़ी के भविष्य को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो हमें नदियों को बचाने के लिए सबसे पहले जंगलों को बचाना होगा । सभी को यह प्रण लेना होगा कि वहां किसी भी खास मौके पर अपने परिवार के साथ मिलकर पेड़ जरूर लगाएंगे । जब इस तरह हर एक परिवार पेड़ लगाना शुरु करेगा तो जंगल अपने आप बढ़ने लगेंगे । जिससे हरियाली होगी और अपने आप ग्लोबल वार्मिग का असर कम होने लगेगा
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