देहरादून: प्रदेश में हर साल की तरह सितंबर माह के आखिरी रविवार को रिवर डे मनाया जा रहा है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य आम जनमानस को नदियों के साथ ही प्राकृतिक जल स्रोतों को बचाने के प्रति जागरूक करना है. वहीं, पर्यावरणविद् का मानना है कि पेड़-पौधों की कमी के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं.
बता दें ग्लोबल वार्मिंग के चलते आज देश और दुनिया में दिन पे दिन प्राकृतिक जल स्रोत जैसे नदियां, गाड़-गदेरे सूखने की कगार पर पहुंच गए हैं. वहीं, पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड की बात करें तो बीते कुछ सालों में यहां भी मौसम के बदलते मिजाज का असर साफ देखा जा सकता है. जिसका गहरा प्रभाव हमारी नदियों पर भी पड़ रहा है.
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सूबे के जाने माने पर्यावरणविद पद्मश्री डॉ. अनिल जोशी ने ग्लोबल वार्मिंग के चलते दिन पर दिन सूख रहे गाड़- गदेरे और नदियों के घटते जलस्तर पर चिंता जाहिर की है. डॉ. जोशी के मुताबिक, ये ग्लोबल वार्मिंग का ही असर है जो ग्लेशियर्स दिन पर दिन पिघलते जा रहे हैं. उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि ग्लेशियर्स धरती पर मौजूद हर एक जीवित वस्तु के लिए पानी का एक बहुत कीमती स्रोत है. उनके मुताबिक, उच्च हिमालयी क्षेत्रों से निकलने वाली जितनी भी नदियां हैं. उनमें ग्लेशियर्स या बारिश का पानी ही बहता है. ऐसे में यदि ग्लेशियर्स ही नहीं रहेंगे तो भविष्य में नदियां भी नहीं रहेंगी.
पर्यावरणविद् अनिल जोशी के मुताबिक, यदि हम अपनी आने वाली पीढ़ी के भविष्य को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो हमें नदियों को बचाने के लिए सबसे पहले जंगलों को बचाना होगा. सभी को ये प्रण लेना होगा कि वहां किसी भी खास मौके पर अपने परिवार के साथ मिलकर पेड़ जरूर लगाएंगे. जब इस तरह हर एक परिवार पेड़ लगाना शुरु करेगा तो जंगल अपने आप बढ़ने लगेंगे.