देहरादून: उत्तराखंड वन विभाग की अनुसंधान विंग ने विलुप्त हो रही पौधों की प्रजातियों को लेकर अपनी रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें करीब 1576 पौधों की प्रजातियों को सूचीबद्ध किया गया है, जिन्हें संरक्षित किया जा चुका है.
उत्तराखंड वन विभाग की अनुसंधान विंग ने इस तरह की पहली विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है. इसमें 415 प्रजाति के पेड़, 130 प्रजाति की झाड़ियां और 88 प्रजाति की घास समेत दूसरी कई किस्मों की प्रजातियों के बारे में बताया गया है. खास बात यह है कि इसमें करीब 73 प्रजातियां ऐसी हैं, जिन्हें आईयूसीएन (International Union for Conservation of Nature Red List) ने भी विलुप्त होती प्रजातियों में शामिल किया है.
इनमें करीब 54 प्रजातियां ऐसी हैं, जो पूरे विश्व में केवल उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्रों में ही पाई जाती हैं. हालांकि पिछले साल भी इससे जुड़ी एक रिपोर्ट तैयार की गई थी, जिसमें 1147 प्रजातियों की जानकारी दी गई थी. वन विभाग के प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी कहते हैं कि विभाग की अनुसंधान टीम की तरफ से इन प्रजातियों के विलुप्त होने की तरफ सभी का ध्यान खींचा गया है और इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट भी तैयार की गई है.
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संरक्षित होने वाली प्रजातियां
1576 संरक्षित प्रजातियों में लगभग पांच सौ प्रजातियों में औषधियां हैं. कुछ प्रमुख प्रजातियों में तेजपा, कल्पवृक्ष, ब्रह्म कमल, संजीवनी, बद्री तुलसी, तितली आर्किड, स्नो ऑर्किड, कृष्णवता, रुद्राक्ष, लेमनग्रास, केवड़ा, पारसपीपल, सिंदूरी, एपिस शामिल हैं. प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी के मुताबिक ये वो प्रजातियां हैं, जो धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही हैं. लेकिन उत्तराखंड वन विभाग इन्हें संरक्षित करने का प्रयास कर रहा है.
इन प्रजातियों में कुछ ऐसी प्रजातियां भी हैं, जो मेडिसन के रूप में इस्तेमाल की जा रही हैं और उनका संरक्षण भी किया जा रहा है. बड़ी बात यह है कि संरक्षित की जा रही तमाम प्रजातियां उनके मूल या प्राकृतिक प्रवास से हटकर संरक्षित की जा रही हैं. ऐसे में अनुसंधान विंग में ऐसी प्रजातियों के मूल प्राकृतिक प्रवास को भी चिह्नित करने की तरफ ध्यान दिया है.
वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक पिछले साल उत्तराखंड में संरक्षित पादप प्रजातियों की संख्या 1147 थी जो इस साल बढ़कर 1576 हो गई है. इनमें 73 पादप प्रजातियां संकटग्रस्त हैं, जिन्हें उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड ने संकटग्रस्त घोषित किया है या वे आईयूसीएन (International Union for Conservation of Nature Red List) की लाल सूची में शामिल हैं.
खतरे में ये प्रजातियां
उत्तराखंड में ब्रह्मकमल, रक्तचंदन, संजीवनी, कुटकी, वज्रदंती, जटामासी, सतवार, बद्री तुलसी, सीता अशोक, मीठा विष, किलमोड़ा, घिंघारू, तिमूर, सर्पगंधा, ब्राह्मी, पटवा, अतीस, थुनेर, भोजपत्र, सालमपंजा (ऑर्किड), त्रायमाण, कांसी, कलिहारी, गिलोय, अमेश, कूठ, बुरांश, तुलसी की 12 प्रजातियां, कृष्णा वट, द्रौपदीमाला (ऑर्किड), वन सतवा, तिमूर, अर्जुन, कासनी, हडीजोड़, हसराज, लिमोदा, चिरायता, वन ककड़ी, दमाबूटी, हिमालयन लिली, प्योली फूल, पटवा, रुद्राक्ष, वन पलाश, अग्नि पंठा, वन अजवायन, मुसली जैसी कई मशहूर वनस्पतियां हैं, जो समय के साथ खतरे में आ गई है. वन विभाग इन प्रजातियों को भी संरक्षित करने में जुटा हुआ है.