उत्तराखंड में भालुओं के लिए बनाये जाएंगे रेस्क्यू सेंटर, होगी गणना - उत्तराखंड वन विभाग
चमोली और पिथौरागढ़ में भालुओं के लिए रेस्क्यू सेंटर बनाये जाएंगे. साथ ही उनकी गणना किए जाने पर भी विचार किया जा रहा है. जंगलों में भी फलदार पौधे रोपे जाएंगे.
देहरादूनः प्रदेश सरकार बंदरों के लिए रेस्क्यू सेंटर का प्रस्ताव केंद्र को भेज चुकी है. अब सरकार ने चमोली और पिथौरागढ़ जिले में भालुओं के लिए एक-एक रेस्क्यू सेंटर बनाने की घोषणा की है. पहाड़ों में लगातार हो रहे भालू के हमले के बाद ये निर्णय लिया गया है. लिहाजा, इसकी घोषणा सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने वन विभाग में ई-ऑफिस कार्यप्रणाली के शुभारंभ के अवसर पर की है.
प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने बताया कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के निर्देशानुसार भालू पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है. लिहाजा, प्रदेश में भालू से प्रभावित जो जोन हैं, उन्हें ध्यान में रखते हुए रेस्क्यू सेंटर बनाए जाने हैं. इसके लिए चमोली और पिथौरागढ़ जिलों को चुना गया है. साथ ही जयराज ने बताया कि वर्तमान समय में प्रदेश के जोशीमठ में भालू का बहुत प्रकोप है. जिसकी मुख्य वजह ये है कि वर्तमान समय में भालुओं के सोने यानी हाइबरनेशन का समय आ गया है, लेकिन मौजूदा हालत ये हैं कि इंसान हर जगह पहुंच गया है, जिसके चलते ये भालू सो नहीं पा रहे हैं.
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जयराज ने बताया कि फिलहाल राज्य के भीतर बंदरों के लिए रेस्क्यू सेंटर बनाने की बात की जा रही थी, लेकिन अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रदेश में भालुओं के लिए भी रेस्क्यू सेंटर बनाने की बात कही है. इस पर वन विभाग जल्द काम शुरू करेगा. साथ ही कहा कि जिस तरह से प्रदेश में भालुओं की संख्या बढ़ रही है. इस ओर भी वन विभाग का फोकस रहेगा कि कोई न कोई तरीका निकालकर, भालुओं की भी गणना की जाए.
हरेला पर्व पर लगाए जाएंगे एक करोड़ फलदार पौधे
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि अगले साल हरेला पर्व पर एक करोड़ फलदार पौधे लगाए जाएंगे. इसके लिए वन विभाग को निर्देश दिए गए हैं कि अभी से तैयारियां शुरू कर दें. हालांकि, ये फलदार पौधे जंगलों में भी लगाए जाएंगे. जिससे जंगली जानवर आबादी वाले क्षेत्रों में नहीं आएं. क्योंकि, जंगली जानवरों के आहार की उपलब्धता जंगलों में कम पड़ रही है. ऐसे में जानवरों को पर्याप्त भोजन मिल पाएगा.
पिरूल के विस्तारीकरण पर जोर
सीएम त्रिवेंद्र ने कहा कि राज्य में पिरूल पर चल रहे कार्यों को विस्तार देने की जरूरत है. पिरूल एकत्रीकरण पर राज्य सरकार 2 रुपये प्रति किलो और विकासकर्ता 1.5 रुपये प्रति किलो दे रहे हैं. जिसका उपयोग ऊर्जा के लिए तो किया ही जाएगा, इसका सबसे फायदा वन विभाग को भी होगा. क्योंकि, वनाग्नि और जंगली जानवरों की क्षति को रोकने में यह नीति काफी कारगर साबित होगी. स्थानीय स्तर पर गरीबों के लिए स्वरोजगार के लिए पिरूल एकत्रीकरण का कार्य एक अच्छा माध्यम बन रहा है.