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शपथ ग्रहण समारोह में रेखा आर्य का दिखा अलग अंदाज, कुमाऊंनी वेशभूषा में आईं नजर - REKHA ARYA SWEARS BY WEARING TRADITIONAL COSTUMES

सोमेश्वर सीट से विधायक रेखा आर्य ने मंत्री पद की शपथ ली. शपथ के दौरान वह पारंपरिक कुमाऊनी वेशभूषा में नजर आईं. लोग उनकी पारंपरिक उत्तराखंडी पोशाक देखते रह गए.

rekha arya
रेखा आर्य
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Published : Mar 23, 2022, 3:46 PM IST

Updated : Mar 23, 2022, 4:04 PM IST

देहरादूनः परेड ग्राउंड में आज पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. साथ ही उनके साथ 8 विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली. लेकिन शपथ ग्रहण की असली रौनक तब दिखी जब अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर सीट से विधायक रेखा आर्य शपथ लेने आईं. रेखा ने पारंपरिक उत्तराखंडी परिधान पहने थे. आर्य ने लाल रंग का पिछौड़ा पहन रखा था. इसे पहाड़ में हर मांगलिक आयोजन पर पहनते हैं. मांग टीका रेखा आर्य के ठेठ पहाड़ी कल्चर को दर्शा रहा था. रेखा आर्य ने मोटी सी नथुली भी पहनी थी. अब यदा-कदा ही दिखाई देने वाला गुलोबंद भी रेखा ने पहन रखा था. सोमेश्वर विधायक ने गले में हंसुली भी पहन रखी थी. शपथ ग्रहण करने आई रेखा आर्य ने लंबे से झुमके भी कान में पहन रखे थे.

क्या होता है पिछौड़ाः देवभूमि उत्तराखंड में खास मौकों पर महिलाएं रंगीला-पिछौड़ा पहनती हैं. शादी और अन्य मांगलिक कार्य में इस परिधान को महिलाएं पहनती हैं. इसका उत्तराखंड में खास महत्व है. इसे शादीशुदा महिलाओं के सुहाग का प्रतीक माना जाता है. साथ ही देवभूमि की महिलाओं को ये पारंपरिक परिधान खास बनाता है. इसके बिना हर त्योहार और मांगलिक कार्य अधूरा सा लगता है.

शपथ ग्रहण समारोह में रेखा आर्य का दिखा अलग अंदाज

उत्तराखंड की संस्कृति और विरासत को देखने हर साल देश-विदेश से लाखों लोग आते हैं. देवभूमि में कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में यहां के स्थानीय परिधान लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं. पर्वतीय अंचलों में रंगीला- पिछौड़ा इस हद तक रचा बसा है कि किसी भी मांगलिक अवसर पर घर की महिलाएं इसे अनिवार्य रूप से पहन कर ही रस्म पूरी करती हैं. रंगीली- पिछौड़ा हल्के फैब्रिक और एक विशेष डिजाइन के प्रिंट का होता है. पिछौड़े के पारंपरिक डिजाइन को स्थानीय भाषा में रंग्वाली कहा जाता है.

इसके खास महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विवाह, नामकरण, त्योहार, पूजन-अर्चन जैसे मांगलिक अवसरों पर बिना किसी बंधन के विवाहित महिलायें इसका प्रयोग करती हैं. साथ ही सुहागिन महिला की तो अन्तिम यात्रा में भी उस पर पिछौड़ा जरूर डाला जाता है. वहीं, इस परिधान पर भी अब आधुनिकता की मार पड़ रही है. उत्तराखंड की शान कहे जाने वाले रंगीली-पिछौड़े के पहनावे का क्रेज युवा पीढ़ी में कम होता जा रहा है. ऐसे में जरूरत है तो इस पारंपरिक परिधान के अस्तित्व को बनाए रखने की.
ये भी पढ़ेंः धामी मंत्रिमंडल का हुआ गठन, 8 विधायकों ने ली मंत्री पद की शपथ, तीन नए चेहरे शामिल

खास होती है नथुलीः उत्तराखंड की महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले आभूषणों में से एक है 'नथुली' या 'नथ' है. इसे पहाड़ी महिलाओं द्वारा नाक में पहना जाता है. सोने की नथ को कीमती माणिक और मोतियों से सजाया जाता है. यह उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र की महिलाओं द्वारा पहनी जाती है.

मांग टीकाः इसे माथे के ऊपर मांग पर सजाया जाता है. ये भी सोने का आभूषण है. उत्तराखंड में मांगलिक मौकों पर महिलाएं अनपे श्रृंगार के रूप में पहनती हैं. जिसकी जैसी सामर्थ्य होती है वो उतने साइज का मांग टीका बनवाता है.

गुलोबंद: ये उत्तराखंड का एक जाना-माना गहना है. जैसा कि इसके नाम से ही प्रतीत हो रहा है इसे गले में पहना जाता है. इसमें कपड़े के एक चौड़े पट्टे पर सोने को चपटी पीस में करीने से शेप देकर लगाया जाता है. एक गलोबंद पर सोने की कई टिक्कियां होती हैं. पुराने समय के लोग इन गहनों को इसलिए भी बनाते थे कि जब धन की कमी होगी या कोई ऐसी परिस्थिति आ जाए कि रुपयों की जरूरत हो तो इसे काम में लाया जाता था.

देहरादूनः परेड ग्राउंड में आज पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. साथ ही उनके साथ 8 विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली. लेकिन शपथ ग्रहण की असली रौनक तब दिखी जब अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर सीट से विधायक रेखा आर्य शपथ लेने आईं. रेखा ने पारंपरिक उत्तराखंडी परिधान पहने थे. आर्य ने लाल रंग का पिछौड़ा पहन रखा था. इसे पहाड़ में हर मांगलिक आयोजन पर पहनते हैं. मांग टीका रेखा आर्य के ठेठ पहाड़ी कल्चर को दर्शा रहा था. रेखा आर्य ने मोटी सी नथुली भी पहनी थी. अब यदा-कदा ही दिखाई देने वाला गुलोबंद भी रेखा ने पहन रखा था. सोमेश्वर विधायक ने गले में हंसुली भी पहन रखी थी. शपथ ग्रहण करने आई रेखा आर्य ने लंबे से झुमके भी कान में पहन रखे थे.

क्या होता है पिछौड़ाः देवभूमि उत्तराखंड में खास मौकों पर महिलाएं रंगीला-पिछौड़ा पहनती हैं. शादी और अन्य मांगलिक कार्य में इस परिधान को महिलाएं पहनती हैं. इसका उत्तराखंड में खास महत्व है. इसे शादीशुदा महिलाओं के सुहाग का प्रतीक माना जाता है. साथ ही देवभूमि की महिलाओं को ये पारंपरिक परिधान खास बनाता है. इसके बिना हर त्योहार और मांगलिक कार्य अधूरा सा लगता है.

शपथ ग्रहण समारोह में रेखा आर्य का दिखा अलग अंदाज

उत्तराखंड की संस्कृति और विरासत को देखने हर साल देश-विदेश से लाखों लोग आते हैं. देवभूमि में कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में यहां के स्थानीय परिधान लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं. पर्वतीय अंचलों में रंगीला- पिछौड़ा इस हद तक रचा बसा है कि किसी भी मांगलिक अवसर पर घर की महिलाएं इसे अनिवार्य रूप से पहन कर ही रस्म पूरी करती हैं. रंगीली- पिछौड़ा हल्के फैब्रिक और एक विशेष डिजाइन के प्रिंट का होता है. पिछौड़े के पारंपरिक डिजाइन को स्थानीय भाषा में रंग्वाली कहा जाता है.

इसके खास महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विवाह, नामकरण, त्योहार, पूजन-अर्चन जैसे मांगलिक अवसरों पर बिना किसी बंधन के विवाहित महिलायें इसका प्रयोग करती हैं. साथ ही सुहागिन महिला की तो अन्तिम यात्रा में भी उस पर पिछौड़ा जरूर डाला जाता है. वहीं, इस परिधान पर भी अब आधुनिकता की मार पड़ रही है. उत्तराखंड की शान कहे जाने वाले रंगीली-पिछौड़े के पहनावे का क्रेज युवा पीढ़ी में कम होता जा रहा है. ऐसे में जरूरत है तो इस पारंपरिक परिधान के अस्तित्व को बनाए रखने की.
ये भी पढ़ेंः धामी मंत्रिमंडल का हुआ गठन, 8 विधायकों ने ली मंत्री पद की शपथ, तीन नए चेहरे शामिल

खास होती है नथुलीः उत्तराखंड की महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले आभूषणों में से एक है 'नथुली' या 'नथ' है. इसे पहाड़ी महिलाओं द्वारा नाक में पहना जाता है. सोने की नथ को कीमती माणिक और मोतियों से सजाया जाता है. यह उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र की महिलाओं द्वारा पहनी जाती है.

मांग टीकाः इसे माथे के ऊपर मांग पर सजाया जाता है. ये भी सोने का आभूषण है. उत्तराखंड में मांगलिक मौकों पर महिलाएं अनपे श्रृंगार के रूप में पहनती हैं. जिसकी जैसी सामर्थ्य होती है वो उतने साइज का मांग टीका बनवाता है.

गुलोबंद: ये उत्तराखंड का एक जाना-माना गहना है. जैसा कि इसके नाम से ही प्रतीत हो रहा है इसे गले में पहना जाता है. इसमें कपड़े के एक चौड़े पट्टे पर सोने को चपटी पीस में करीने से शेप देकर लगाया जाता है. एक गलोबंद पर सोने की कई टिक्कियां होती हैं. पुराने समय के लोग इन गहनों को इसलिए भी बनाते थे कि जब धन की कमी होगी या कोई ऐसी परिस्थिति आ जाए कि रुपयों की जरूरत हो तो इसे काम में लाया जाता था.

Last Updated : Mar 23, 2022, 4:04 PM IST
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