देहरादून: पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जालौन के कथेरी गांव में बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन करने पहुंचे थे. पीएम ने एक्सप्रेस-वे की खूब तारीफ की थी. लेकिन एक्सप्रेस वे बनाने वाले इंजीनियरों और ठेकेदारों के काम की जमीनी हकीकत महज 5 दिनों में ही सबके सामने आ गई थी. महज चंद घंटों की बारिश ने बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे पर किए गए काम की पोल खोलकर रख दी थी. बारिश के चलते एक्सप्रेस-वे की सड़क पर करीब दो फीट गहरा गड्ढा हो गया, ये गड्ढा करीब 8 फीट लंबा भी था, जिसके कारण एक कार एक्सीडेंट भी हुआ.
यूपी सरकार ने बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे का जमकर प्रचार किया था. कहा गया कि देश के बड़े-बड़े इंजीनियर्स ने इस पर बहुत की बारीकी से काम किया है. लेकिन, पहली ही बारिश ने एक्सप्रेस-वे में दरार पैदा कर दी और मजबूती की पोल खोल दी. ऐसे वाकये सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि, उत्तराखंड और यूपी से सटे मध्य प्रदेश से भी सामने आये हैं.
बात उत्तराखंड की करें...लेकिन उससे पहले आपको मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल कर रुख करा लेते हैं. जहां, 25 जुलाई को भोपाल को मंडीदीप से जोड़ने वाले NH-46 पर बने एक पुल का एक हिस्सा गिर गया. कलियासोत डैम पर बना पुल पानी का बहाव नहीं झेल सका. उसकी 20-20 मीटर की दो रिटेनिंग वॉल के साथ पुल का हिस्सा भी पानी में धंस गया. 40 मीटर का हिसाब बुरी तरह से ढह गया. इसके अलावा पुल के बड़े हिस्से में क्रैक पड़ गए हैं.
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अब बात करते हैं देवभूमि उत्तराखंड की. क्योंकि उत्तराखंड की कहानी भी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से मिलती-जुलती ही है. उत्तराखंड की ऑलवेदर रोड मानसून की पहली बारिश भी झेल नहीं पाई. जबकि ये पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक है. ऑलवेदर रोड का निर्माण सामरिक दृष्टि से भी किया गया है, क्योंकि यह सड़क सीधे चीन बॉर्डर तक जाती है. बीते 13 जुलाई को पहली बारिश के बाद ऋषिकेश-बदरीनाथ ऑलवेदर रोड हाईवे पर पुरसाड़ी के पास सड़क किनारे बनी आरसीसी दीवार का एक बड़ा हिस्सा ढह गया था, जिससे पूरा हाईवे बाधित हो गया था.
इस घटना के बाद एक बार फिर ऑलवेदर रोड की गुणवत्ता सवाल खड़े हो रहे हैं. जिस रोड को सरकार सामरिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण मानकर बनवा रही है. जो रास्ता सीधा चीन बॉर्डर तक जाता है, वो रोड बारिश की मार भी नहीं झेल पा रही है.
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रुद्रप्रयाग में पुल की शटरिंग गिरी: रुद्रप्रयाग के नरकोटा में बीते 20 जुलाई को ऑलवेदर रोड के निर्माणाधीन पुल की शटरिंग गिरने से तीन मजदूरों की मौत हो गई थी. बताया जा रहा है कि ये पुल 65 करोड़ की लागत से बन रहा है. दरअसल, जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से 7 किमी दूर नरकोटा में ऋषिकेश बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर ऑलवेदर रोड के तहत 65 करोड़ की लागत से डबल लेन मोटर पुल का निर्माण कार्य किया जा रहा है. 20 जुलाई बुधवार सुबह लगभग 9 बजे मजदूर पुल पर कार्य कर रहे थे. इस दौरान मजदूरों के ऊपर लोहे की शटरिंग गिर गई और 10 मजदूर दब गए थे, जिसमें से 3 की मौत हो गई थी. इस मामले में तीन इंजीनियरों के खिलाफ कार्रवाई की गई है.
उत्तराखंड में ऑलवेदर रोड को वरदान माना जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहाड़ के लोगों की परेशानी को देखते हुए यहां की सड़कों को ऐसा बनाा चाहते हैं जिससे बारहों महीने आवागमन सुगम बना रहे. लेकिन पहली बरसात में ही ठेकेदारों द्वारा कराए गए काम की पोल खुल गई है. हर मौसम को झेलने का दावा करने वाली ऑलवेदर रोड मानसून की पहली बारिश भी नहीं झेल पाई. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक उत्तराखंड की ऑलवेदर रोड में निर्माण कार्यों में किस तरह की अनदेखी की जा रही है वो इन हादसों से साफ समझा जा सकता है.
देवप्रयाग में बदरीनाथ हाईवे का 50 मीटर हिस्सा धंसा: 26 जुलाई को देवप्रयाग के पास पंत गांव में बारिश से नेशनल हाईवे-58 का 50 मीटर हिस्सा धंस गया. विभाग की मानें तो सड़कों के किनारे विद्युत पोल लगाने के दौरान किए गए गड्ढों में पानी जमा होने के कारण मार्ग धंसा है.
क्या कहते हैं अधिकारी: ऑलवेदर रोड में दो बड़े अफसरों को लेकर एनएच चीफ का कहना है इन दोनों मामलों की जांच हो रही है. ऐसा नहीं है कि गुणवत्ता के साथ कोई समझौता किया गया हो. लेकिन जांच के बाद ही पता चलेगा कि आखिरकार इस हादसे का कारण क्या रहा होगा.
ऑलवेदर रोड में लगातार हो रहे हादसों को लेकर सवाल उठने लगे हैं, जिस पर एनएच के चीफ इंजीनियर प्रमोद कुमार का कहना है कि बड़े प्रोजेक्ट में सड़क कार्य को अच्छा खासा समय दिया जाता है. जिससे जमीन पूरी तरह बैठ सके. कई बार जल्दीबाजी में हादसे होते हैं, हालांकि ऑलवेदर रोड में काफी सेफ्टी को लेकर काम किए गए हैं. अब इन हादसों की विस्तृत जांच से ही पता चलेगा कि आखिरकार इसके क्या कारण थे.
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क्या है ऑल वेदर रोड: उत्तराखंड में ऑल वेदर रोड की घोषणा साल 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देहरादून स्थित परेड ग्राउंड में एक भव्य कार्यक्रम में की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की मौजूदगी में इस योजना का शुभारंभ हुआ. तब लक्ष्य रखा गया कि उत्तराखंड में साल 2022 तक ऑलवेदर रोड का काम पूरा हो जाएगा. हालांकि इस बीच में कोरोना की वजह से काम को भी रोकना भी पड़ा. लिहाजा अब इसके काम को पूरा करने की डेडलाइन बढ़ा दी गई है.
उत्तराखंड में ऑलवेदर रोड के तहत 889 किलोमीटर लंबी सड़क को डबल लेन किया जा रहा है. इस योजना का खर्च लगभग 12 हजार करोड़ रुपए का बताया जा रहा है. सड़क परिवहन एवं राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय ने 53 हिस्सों में इस काम को बांटा है. अभी तक लगभग 90% काम इस परियोजना में हो चुका है.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि उत्तराखंड में ऑलवेदर रोड के बनने की वजह से चारधाम यात्रा और दूसरे धार्मिक और पर्यटक स्थलों पर यात्रियों को पहुंचने में बेहद कम समय लग रहा है. ऑलवेदर रोड के निर्माण की वजह से सेना बॉर्डर तक पहले के समय के मुकाबले बेहद जल्दी पहुंच जाती है. चारधाम यात्रा के मंदिरों में पहुंचने में जो समय उस वक्त 12 से 13 घंटे का लगता था. अब वह घटकर लगभग 7 से 8 घंटे हो गया है. ऑल वेदर रोड का काम ऋषिकेश से बदरीनाथ ऋषिकेश से गंगोत्री टिहरी गढ़वाल जैसे जिलों में तेजी से पूरा हुआ है.
पीएम का है ड्रीम प्रोजेक्ट: ये परियोजना पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार इस परियोजना की मॉनिटरिंग करते रहते हैं. तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत हों या मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट के बारे में अपडेट लेते रहते हैं. इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद अपने कार्यालय में बैठकर कई बार ड्रोन के माध्यम से इस सड़क का काम देखा है.
आखिर क्या हैं भूस्खलन के कुछ प्रमुख कारण: वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों के मुताबिक हिमालयी क्षेत्रों में होने वाली बर्फबारी के बाद जब गर्मी में बर्फ पिघलती है तो चट्टानों और मिट्टी को मुलायम बना देती है. उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ढलानों पर गुरुत्वाकर्षण बल अधिक होने की वजह से चट्टानें और मिट्टी नीचे खिसकने लगती हैं, यही भूस्खलन का कारण बनतीं हैं.
इतना ही नहीं वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के चलते उत्तराखंड समेत देश के तमाम पर्वतीय राज्यों में कम समय में बहुत अधिक बारिश भी भूस्खलन का कारण बन रही है. वैज्ञानिकों के मुताबिक उत्तराखंड समेत देश के तमाम हिमालयी राज्यों में अंधाधुंध तरीके से सड़कों के निर्माण समेत तमाम विकास कार्य, वनों की कटाई और जलाशयों से पानी का रिसाव भूस्खलन का बड़ा कारण साबित हो रहा है.
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आखिर कितने प्रकार का होता है भूस्खलन: वैज्ञानिकों के अनुसार भूस्खलन कई प्रकार के होते हैं, जिसमें स्लाइड्स, फाल्स, प्रवाह, मलबे का प्रवाह, मलबा हिमस्खलन, मड फ्लो, टोपल्स, फैलाव समेत कई प्रकार होते हैं.
260 फीट प्रति सेकेंड की गति से होता है भूस्खलन: वैज्ञानिक शोधों में यह बात सामने आई है कि उत्तराखंड समेत दुनिया में भूस्खलन की जितनी भी बड़ी घटनाएं हुईं, उनमें से ज्यादातर में भूस्खलन की गति 260 फीट प्रति सेकंड के आसपास रही. वैज्ञानिकों की मानें तो गुरुत्वाकर्षण बल अधिक होने के कारण भूस्खलन के दौरान मलबा तेजी से नीचे गिरता है और भारी तबाही होती है.
देश में कुल भूमि का 12 फ़ीसदी क्षेत्रफल भूस्खलन प्रभावित: आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में कुल जमीन में से 12 फ़ीसदी जमीन ऐसी है, जो भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील है. भूस्खलन के लिहाज से उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के अलावा देश के पश्चिमी घाट में नीलगिरि की पहाड़ियां, कोंकण क्षेत्र में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और गोवा, आंध्र प्रदेश का पूर्वी क्षेत्र, पूर्वी हिमालय क्षेत्रों में दार्जिलिंग, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश, पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड के कई इलाके भूस्खलन के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं.