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उत्तराखंड में फ्री बिजली के वादों से असल मुद्दों को लगेगा झटका?

आने वाले चुनावों में फ्री बिजली के वादों के बीच अन्य चुनावी मुद्दे राजनीतिक दलों के लिए बहुत मायने रखते हैं. ऐसे में क्या आने वाले चुनावों में जनता से जुड़े असल मुद्दे गायब हो जाएंगे?

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उत्तराखंड में फ्री बिजली के वादों से असल मुद्दों को लगेगा 'झटका'
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Published : Jul 18, 2021, 8:57 PM IST

Updated : Jul 18, 2021, 9:46 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में इन दिनों मुफ्त बिजली दिए जाने के वादे से चुनावी सियासत गरमाई हुई है. बीजेपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी जैसे सभी राजनीतिक दल इन दिनों फ्री बिजली के वादे पर सवार होकर 2022 विधानसभा चुनाव जीतने का सपना संजो रहे हैं. अटकलें लगाई जा रही है कि आगामी विधानसभा चुनाव में मुफ्त बिजली का मुद्दा काफी अहम होने वाला है. ऐसे में बड़ा सवाल खड़ा होता है कि फ्री बिजली के वादों के बीच प्रदेश की जनता से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे गायब तो नहीं हो जाएंगे?

विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दल जनता से जुड़े तमाम मुद्दों को उठातें हैं. वे इससे संबंधित वादे भी करती हैं. इस बार ऊर्जा मंत्री की ओर से मुफ्त बिजली दिए जाने के दावे के बाद, राजनीतिक पार्टियों ने भी मुफ्त बिजली दिए जाने की घोषणा करते हुए इसके प्रचार-प्रसार में जुट गईं हैं. आम आदमी पार्टी ने 300 यूनिट मुफ्त बिजली दिए जाने की कवायद भी तेज कर दी है. आप लगातार जनता के बीच अपने इस मुफ्त बिजली के वादे को पहुंचाने के लिए घर-घर जाकर गारंटी कार्ड बांट रही है. जिसमें इस बात का जिक्र है कि आम आदमी पार्टी उत्तराखंड के सभी नागरिकों को 300 यूनिट बिजली मुफ्त में देगी.

उत्तराखंड में फ्री बिजली के वादों से असल मुद्दों को लगेगा 'झटका'

पढ़ें-उत्तराखंड : मुफ्त बिजली के वादों में कितना दम, कितनी कीमतें होंगी कम? जानें

हरीश रावत ने कही 200 यूनिट मुफ्त बिजली देने की बात: उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सबसे पहले मुफ्त बिजली दिए जाने की बात कही थी. उन्होंने करीब 6 महीने पहले कहा था कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो प्रदेश की जनता को 200 यूनिट मुफ्त बिजली देगी. उस दौरान मुफ्त बिजली के इस वादे पर किसी का इतना ध्यान नहीं गया. ऊर्जा मंत्री हरक सिंह रावत के 100 यूनिट बिजली मुफ्त दिए जाने के बाद इस मामले की चर्चा तेज हुई. हरक सिंह रावत के वादे के बाद ही आम आदमी पार्टी ने भी 300 यूनिट मुफ्त बिजली दिए जाने की बात कह डाली.

पढ़ें-उत्तराखंड में सियासी 'बिजली' से जलेगा जीत का बल्ब ! जानें, मुफ्त बिजली, सपना या स्टंट?

मुफ्त बिजली के बीच गुम न हो जाए प्रदेश के असल मुद्दे: मुफ्त बिजली दिए जाने की चर्चाएं इन दिनों चारों तरफ है. सभी राजनीतिक पार्टियां मुफ्त बिजली दिए जाने जैसी घोषणाएं कर रही हैं, लेकिन कोई भी प्रदेश की मुख्य समस्याओं की ओर ध्यान नहीं दे रहा है. न ही उस पर बात करना चाह रहा है. ऐसे में एक बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि, क्या आखिर आगामी साल 2022 विधानसभा चुनाव में मुफ्त बिजली दिए जाने का मुद्दा ही चर्चाओं में रहेगा. जिस तरह से मुफ्त बिजली को लेकर सियासत चमकाने की कोशिश हो रही है उससे साफ जाहिर है कि आने वाले समय में भी मुफ्त बिजली दिए जाने का मुद्दा अहम रहने वाला है.

पढ़ें- 'बीजेपी-कांग्रेस ने 20 सालों में उत्तराखंड को लूटा, हम करेंगे विकास'

वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा बताते हैं कि वर्तमान समय में मुफ्त बिजली का मुद्दा चर्चाओं में है. इसी मुफ्त बिजली ने सभी राजनीतिक दलों को झटका दिया है. जिसके चलते राजनीतिक दल अपने स्तर पर मुफ्त बिजली देने का वादा कर रहे हैं. इसके कारण प्रदेश में अन्य मुद्दे कहीं गुम से हो गए हैं. शर्मा बताते हैं कि राज्य में बेरोजगारी, अवस्थापना सुविधाओं से जुड़े कार्य, गरीबों तक सरकारी योजनाओं को पहुंचाना, स्वास्थ्य, सड़क, शिक्षा, भू- कानून समेत तमाम ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर काम होना बाकी है. मगर जो हालात प्रदेश में अभी बन रहे हैं ऐसे में लग रहा है कि कहीं बिजली के झटके से ये मुद्दे गायब ही न हो जाएं.

यही नहीं, भागीरथ शर्मा ने बताया कि चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियां वादे करती हैं, वह जनआकांक्षाओं के अनुसार होनी चाहिए. क्योंकि जनता ने मुफ्त बिजली नहीं मांगी है. राजनीतिक पार्टियां मुफ्त बिजली देने की सियासत में जुटी हुई हैं. जनता सड़क, स्वास्थ्य, पेयजल सुविधा, बेहतर शिक्षा रोजगार आदि चीजों को मांग रही है. ऐसे में राजनीतिक पार्टियों को जनआकांक्षाओं के अनुरूप वादे करने चाहिए.

पढ़ें- Etv Bharat की खबर पर CM केजरीवाल की मुहर, उत्तराखंड को दी ये 4 गारंटी

वहीं, विपक्षी दल कांग्रेस भी मुफ्त बिजली के वादे के अलावा अन्य कई जनता से जुड़े मुद्दों पर वादा करने की बात कह रही है. प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने बताया कि वर्तमान समय में भू कानून, बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य समेत तमाम मुद्दे हैं, जो प्रदेश की मुख्य समस्याएं हैं. उन्होंने कहा पहाड़ के लोग बहुत स्वाभिमानी होते हैं. उन्हें मुफ्त की कोई चीज बर्दाश्त नहीं है. ऐसे में भाजपा और आम आदमी पार्टी मुफ्त बिजली के नाम पर जनता को उलझाने का काम कर रहीं हैं. गरिमा ने बताया हरीश रावत ने मुफ्त बिजली दिए जाने की बात करीब 6 महीने पहले ही कह दी थी, लेकिन उस उस दौरान हरीश रावत ने तर्क दिया था कि जो हमारे संसाधन हैं, उसका फायदा प्रदेशवासियों को मिलना चाहिए.

पढ़ें- अरविंद केजरीवाल के बयान पर कांग्रेस का पलटवार, 'आप' को बताया बीजेपी की B टीम

मुफ्त बिजली देने के मुद्दे पर शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल ने बताया कि जब ऊर्जा मंत्री हरक सिंह रावत ने मुफ्त बिजली की घोषणा की तो खुद आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को देहरादून आना पड़ा. उसके बाद उन्हें भी मुफ्त बिजली की घोषणा करनी पड़ी. जिससे साफ जाहिर है कि इससे आम आदमी पार्टी बैकफुट पर आ गई है. इसके अतिरिक्त कांग्रेस को भी चिंता सताने लगी है. चुनाव के मुद्दे के सवाल पर उन्होंने कहा घोषणा पत्र जारी होने के बाद सारी चीजें स्पष्ट हो जाएंगी.

पढ़ें- देवस्थानम् बोर्ड को भंग करने की मांग को लेकर तीर्थ पुरोहितों का धरना जारी

क्या हैं पर्वतीय क्षेत्र की मूलभूत जरूरतें: उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते पर्वतीय क्षेत्रों में विकास का नाम पहाड़ जैसी चुनौती है. अगर राज्य सरकार चाहे तो क्या नहीं कर सकती. आज भी उत्तराखंड राज्य के सैकड़ों गांव ऐसे हैं जहां मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. मूलभूत सुविधाओं की बात करें तो सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं जो उन्हें मिलनी चाहिए, यहां हमेशा ही उनका अभाव रहा है. आए दिन स्वास्थ्य की लचर व्यवस्था का असर पर्वतीय क्षेत्रों में देखा जा सकता है. इसके अलावा पलायन, रोजगार भी उत्तराखंड में बड़े चुनावी मुद्दे हैं.

पेयजल, ट्रैफिक, भ्रष्टाचार, विकास ये सभी मुद्दे चुनावों में छाये रहते हैं. मगर चुनावी साल से ठीक पहले प्रदेश की सियासी फिजाओं में फ्री बिजली के वादों की गूंज सुनाई दे रही है. जिसके कारण आने वाले समय में असल मुद्दों को 'झटका' लग सकता है.

देहरादून: उत्तराखंड में इन दिनों मुफ्त बिजली दिए जाने के वादे से चुनावी सियासत गरमाई हुई है. बीजेपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी जैसे सभी राजनीतिक दल इन दिनों फ्री बिजली के वादे पर सवार होकर 2022 विधानसभा चुनाव जीतने का सपना संजो रहे हैं. अटकलें लगाई जा रही है कि आगामी विधानसभा चुनाव में मुफ्त बिजली का मुद्दा काफी अहम होने वाला है. ऐसे में बड़ा सवाल खड़ा होता है कि फ्री बिजली के वादों के बीच प्रदेश की जनता से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे गायब तो नहीं हो जाएंगे?

विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दल जनता से जुड़े तमाम मुद्दों को उठातें हैं. वे इससे संबंधित वादे भी करती हैं. इस बार ऊर्जा मंत्री की ओर से मुफ्त बिजली दिए जाने के दावे के बाद, राजनीतिक पार्टियों ने भी मुफ्त बिजली दिए जाने की घोषणा करते हुए इसके प्रचार-प्रसार में जुट गईं हैं. आम आदमी पार्टी ने 300 यूनिट मुफ्त बिजली दिए जाने की कवायद भी तेज कर दी है. आप लगातार जनता के बीच अपने इस मुफ्त बिजली के वादे को पहुंचाने के लिए घर-घर जाकर गारंटी कार्ड बांट रही है. जिसमें इस बात का जिक्र है कि आम आदमी पार्टी उत्तराखंड के सभी नागरिकों को 300 यूनिट बिजली मुफ्त में देगी.

उत्तराखंड में फ्री बिजली के वादों से असल मुद्दों को लगेगा 'झटका'

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हरीश रावत ने कही 200 यूनिट मुफ्त बिजली देने की बात: उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सबसे पहले मुफ्त बिजली दिए जाने की बात कही थी. उन्होंने करीब 6 महीने पहले कहा था कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो प्रदेश की जनता को 200 यूनिट मुफ्त बिजली देगी. उस दौरान मुफ्त बिजली के इस वादे पर किसी का इतना ध्यान नहीं गया. ऊर्जा मंत्री हरक सिंह रावत के 100 यूनिट बिजली मुफ्त दिए जाने के बाद इस मामले की चर्चा तेज हुई. हरक सिंह रावत के वादे के बाद ही आम आदमी पार्टी ने भी 300 यूनिट मुफ्त बिजली दिए जाने की बात कह डाली.

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मुफ्त बिजली के बीच गुम न हो जाए प्रदेश के असल मुद्दे: मुफ्त बिजली दिए जाने की चर्चाएं इन दिनों चारों तरफ है. सभी राजनीतिक पार्टियां मुफ्त बिजली दिए जाने जैसी घोषणाएं कर रही हैं, लेकिन कोई भी प्रदेश की मुख्य समस्याओं की ओर ध्यान नहीं दे रहा है. न ही उस पर बात करना चाह रहा है. ऐसे में एक बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि, क्या आखिर आगामी साल 2022 विधानसभा चुनाव में मुफ्त बिजली दिए जाने का मुद्दा ही चर्चाओं में रहेगा. जिस तरह से मुफ्त बिजली को लेकर सियासत चमकाने की कोशिश हो रही है उससे साफ जाहिर है कि आने वाले समय में भी मुफ्त बिजली दिए जाने का मुद्दा अहम रहने वाला है.

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वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा बताते हैं कि वर्तमान समय में मुफ्त बिजली का मुद्दा चर्चाओं में है. इसी मुफ्त बिजली ने सभी राजनीतिक दलों को झटका दिया है. जिसके चलते राजनीतिक दल अपने स्तर पर मुफ्त बिजली देने का वादा कर रहे हैं. इसके कारण प्रदेश में अन्य मुद्दे कहीं गुम से हो गए हैं. शर्मा बताते हैं कि राज्य में बेरोजगारी, अवस्थापना सुविधाओं से जुड़े कार्य, गरीबों तक सरकारी योजनाओं को पहुंचाना, स्वास्थ्य, सड़क, शिक्षा, भू- कानून समेत तमाम ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर काम होना बाकी है. मगर जो हालात प्रदेश में अभी बन रहे हैं ऐसे में लग रहा है कि कहीं बिजली के झटके से ये मुद्दे गायब ही न हो जाएं.

यही नहीं, भागीरथ शर्मा ने बताया कि चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियां वादे करती हैं, वह जनआकांक्षाओं के अनुसार होनी चाहिए. क्योंकि जनता ने मुफ्त बिजली नहीं मांगी है. राजनीतिक पार्टियां मुफ्त बिजली देने की सियासत में जुटी हुई हैं. जनता सड़क, स्वास्थ्य, पेयजल सुविधा, बेहतर शिक्षा रोजगार आदि चीजों को मांग रही है. ऐसे में राजनीतिक पार्टियों को जनआकांक्षाओं के अनुरूप वादे करने चाहिए.

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वहीं, विपक्षी दल कांग्रेस भी मुफ्त बिजली के वादे के अलावा अन्य कई जनता से जुड़े मुद्दों पर वादा करने की बात कह रही है. प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने बताया कि वर्तमान समय में भू कानून, बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य समेत तमाम मुद्दे हैं, जो प्रदेश की मुख्य समस्याएं हैं. उन्होंने कहा पहाड़ के लोग बहुत स्वाभिमानी होते हैं. उन्हें मुफ्त की कोई चीज बर्दाश्त नहीं है. ऐसे में भाजपा और आम आदमी पार्टी मुफ्त बिजली के नाम पर जनता को उलझाने का काम कर रहीं हैं. गरिमा ने बताया हरीश रावत ने मुफ्त बिजली दिए जाने की बात करीब 6 महीने पहले ही कह दी थी, लेकिन उस उस दौरान हरीश रावत ने तर्क दिया था कि जो हमारे संसाधन हैं, उसका फायदा प्रदेशवासियों को मिलना चाहिए.

पढ़ें- अरविंद केजरीवाल के बयान पर कांग्रेस का पलटवार, 'आप' को बताया बीजेपी की B टीम

मुफ्त बिजली देने के मुद्दे पर शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल ने बताया कि जब ऊर्जा मंत्री हरक सिंह रावत ने मुफ्त बिजली की घोषणा की तो खुद आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को देहरादून आना पड़ा. उसके बाद उन्हें भी मुफ्त बिजली की घोषणा करनी पड़ी. जिससे साफ जाहिर है कि इससे आम आदमी पार्टी बैकफुट पर आ गई है. इसके अतिरिक्त कांग्रेस को भी चिंता सताने लगी है. चुनाव के मुद्दे के सवाल पर उन्होंने कहा घोषणा पत्र जारी होने के बाद सारी चीजें स्पष्ट हो जाएंगी.

पढ़ें- देवस्थानम् बोर्ड को भंग करने की मांग को लेकर तीर्थ पुरोहितों का धरना जारी

क्या हैं पर्वतीय क्षेत्र की मूलभूत जरूरतें: उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते पर्वतीय क्षेत्रों में विकास का नाम पहाड़ जैसी चुनौती है. अगर राज्य सरकार चाहे तो क्या नहीं कर सकती. आज भी उत्तराखंड राज्य के सैकड़ों गांव ऐसे हैं जहां मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. मूलभूत सुविधाओं की बात करें तो सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं जो उन्हें मिलनी चाहिए, यहां हमेशा ही उनका अभाव रहा है. आए दिन स्वास्थ्य की लचर व्यवस्था का असर पर्वतीय क्षेत्रों में देखा जा सकता है. इसके अलावा पलायन, रोजगार भी उत्तराखंड में बड़े चुनावी मुद्दे हैं.

पेयजल, ट्रैफिक, भ्रष्टाचार, विकास ये सभी मुद्दे चुनावों में छाये रहते हैं. मगर चुनावी साल से ठीक पहले प्रदेश की सियासी फिजाओं में फ्री बिजली के वादों की गूंज सुनाई दे रही है. जिसके कारण आने वाले समय में असल मुद्दों को 'झटका' लग सकता है.

Last Updated : Jul 18, 2021, 9:46 PM IST
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