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CM पुष्कर सिंह धामी भी नहीं तोड़ पाए 'मनहूस' बंगले का मिथक, पढ़ें क्या है इसका राज - उत्तराखंड विधानसभा परिणाम 2022

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी सीट भी नहीं बचा पाए हैं. धामी को कांग्रेस प्रत्याशी भुवन चंद कापड़ी ने करीब 5 हजार वोट से हराया है. सीएम धामी की हार के साथ ही उत्तराखंड सीएम आवास और उससे जुड़ा मिथक चर्चाओं में आ गया है, जिसे सीएम धामी भी तोड़ने में नाकाम रहे हैं.

CM पुष्कर सिंह धामी
CM पुष्कर सिंह धामी
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Published : Mar 10, 2022, 3:26 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी 'मनहूस' बंगले का मिथक नहीं तोड़ पाए. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी उधमसिंह नगर जिले की खटीमा विधानसभा सीट से चुनाव हार गए हैं. राजधानी देहरादून में स्थित सीएम आवास से एक मिथक जुड़ा हुआ है कि जो भी सीएम इस बंगले में रहता है वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता है और न ही दोबारा सीएम बनता है.

'मनहूस' माना जाता है आवास: उत्तराखंड के सीएम आवास को लेकर सियासी गलियारों में कई तरह की चर्चाएं हैं. इस आवास को 'मनहूस' माना जाता है. धारणा यह है कि जो मुख्यमंत्री इस सदन में रहे हैं उनमें से कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है. दिलचस्प बात यह है कि पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत ने इस घर से दूर रहना पसंद किया, लेकिन फिर भी उन्हें सीएम पद से जल्दी बाहर निकलना पड़ा.
पढ़ें- लालकुआं के चुनावी युद्ध में चित हुए हरीश रावत, BJP के मोहन बिष्ट ने 14 हजार से ज्यादा वोट से हराया

पुष्कर सिंह धामी से पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत भी मुख्यमंत्री बनने के बाद इस बंगले में रहने आए थे, लेकिन वो भी इस मिथक को नहीं तोड़ पाए थे और बीजेपी हाईकमान ने त्रिवेंद्र को अपना कार्यकाल पूरा नहीं करने दिया था. चार साल पूरे होने से पहले ही त्रिवेंद्र सिंह रावत से सीएम की कुर्सी छीन ली गई थी.

निशंक और विजय बहुगुणा हटाए गए: इस आवास के मनहूस होने के लेकर चर्चाएं तब सामने आईं, जब पूर्व सीएम निशंक और बाद में यहां रहे विजय बहुगुणा को उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले ही हटा दिया गया था. माना जा रहा है कि पूर्व सीएम हरीश रावत इसी वजह से सरकारी आवास में शिफ्ट नहीं हुए और इसके बजाय स्टेट गेस्ट हाउस में रहना पसंद किया था. लेकिन फिर भी वो 2017 का चुनाव हार गए थे.
पढ़ें- ELECTION 2022: उत्तराखंड ये प्रत्याशी बने मुकद्दर का सिकंदर, बड़ी जीत के साथ पहुंचे विधानसभा

10 एकड़ पर बना है बंगला: 'पहाड़ी' शैली में डिज़ाइन किया गया 60 कमरों वाला विशाल बंगला 2010 में बनाया गया था. इसमें एक बैडमिंटन कोर्ट, स्विमिंग पूल, कई लॉन, सीएम और उनके स्टाफ सदस्यों के लिए अलग-अलग कार्यालय हैं. इस मुख्यमंत्री आवास का निर्माण नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में शुरू हुआ था, जो भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी के पहले कार्यकाल में पूरा हुआ. खंडूड़ी ही सर्वप्रथम इस आवास में रहे, लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें पद से हटना पड़ा था.

खंडूडी के बाद मुख्यमंत्री बने डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक भी मुख्यमंत्री के रूप में इस आवास में रहते हुए ज्यादा दिनों तक पद पर नहीं रह पाए. भुवन चंद्र खंडूड़ी जब सितंबर 2011 में दोबारा मुख्यमंत्री बने, तो करीब छह माह आवास में रहने के बाद पार्टी चुनाव हार गई. खुद खंडूड़ी सीएम होने के बावजूद कोटद्वार से चुनाव हार गए थे.

इसके बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और इसके मुखिया बने विजय बहुगुणा. उनको भी यही मुख्यमंत्री आवास मिला और वह भी करीब एक साल और 11 माह तक ही पद पर रह पाए. पार्टी ने ही केदारनाथ आपदा के बाद उन्हें हटा दिया था.

देहरादून: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी 'मनहूस' बंगले का मिथक नहीं तोड़ पाए. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी उधमसिंह नगर जिले की खटीमा विधानसभा सीट से चुनाव हार गए हैं. राजधानी देहरादून में स्थित सीएम आवास से एक मिथक जुड़ा हुआ है कि जो भी सीएम इस बंगले में रहता है वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता है और न ही दोबारा सीएम बनता है.

'मनहूस' माना जाता है आवास: उत्तराखंड के सीएम आवास को लेकर सियासी गलियारों में कई तरह की चर्चाएं हैं. इस आवास को 'मनहूस' माना जाता है. धारणा यह है कि जो मुख्यमंत्री इस सदन में रहे हैं उनमें से कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है. दिलचस्प बात यह है कि पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत ने इस घर से दूर रहना पसंद किया, लेकिन फिर भी उन्हें सीएम पद से जल्दी बाहर निकलना पड़ा.
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पुष्कर सिंह धामी से पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत भी मुख्यमंत्री बनने के बाद इस बंगले में रहने आए थे, लेकिन वो भी इस मिथक को नहीं तोड़ पाए थे और बीजेपी हाईकमान ने त्रिवेंद्र को अपना कार्यकाल पूरा नहीं करने दिया था. चार साल पूरे होने से पहले ही त्रिवेंद्र सिंह रावत से सीएम की कुर्सी छीन ली गई थी.

निशंक और विजय बहुगुणा हटाए गए: इस आवास के मनहूस होने के लेकर चर्चाएं तब सामने आईं, जब पूर्व सीएम निशंक और बाद में यहां रहे विजय बहुगुणा को उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले ही हटा दिया गया था. माना जा रहा है कि पूर्व सीएम हरीश रावत इसी वजह से सरकारी आवास में शिफ्ट नहीं हुए और इसके बजाय स्टेट गेस्ट हाउस में रहना पसंद किया था. लेकिन फिर भी वो 2017 का चुनाव हार गए थे.
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10 एकड़ पर बना है बंगला: 'पहाड़ी' शैली में डिज़ाइन किया गया 60 कमरों वाला विशाल बंगला 2010 में बनाया गया था. इसमें एक बैडमिंटन कोर्ट, स्विमिंग पूल, कई लॉन, सीएम और उनके स्टाफ सदस्यों के लिए अलग-अलग कार्यालय हैं. इस मुख्यमंत्री आवास का निर्माण नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में शुरू हुआ था, जो भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी के पहले कार्यकाल में पूरा हुआ. खंडूड़ी ही सर्वप्रथम इस आवास में रहे, लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें पद से हटना पड़ा था.

खंडूडी के बाद मुख्यमंत्री बने डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक भी मुख्यमंत्री के रूप में इस आवास में रहते हुए ज्यादा दिनों तक पद पर नहीं रह पाए. भुवन चंद्र खंडूड़ी जब सितंबर 2011 में दोबारा मुख्यमंत्री बने, तो करीब छह माह आवास में रहने के बाद पार्टी चुनाव हार गई. खुद खंडूड़ी सीएम होने के बावजूद कोटद्वार से चुनाव हार गए थे.

इसके बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और इसके मुखिया बने विजय बहुगुणा. उनको भी यही मुख्यमंत्री आवास मिला और वह भी करीब एक साल और 11 माह तक ही पद पर रह पाए. पार्टी ने ही केदारनाथ आपदा के बाद उन्हें हटा दिया था.

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