देहरादून: 5 सितंबर को हर साल शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. ऐसे में हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसी स्कूल के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका भला प्रदेश के दो-दो मुख्यमंत्रियों की घोषणाओं के बावजूद नहीं हो पाया. मामला पौड़ी के कांडाखाल इंटर कॉलेज का है. इसके प्रांतीयकरण (अधिग्रहण) की घोषणा हरीश रावत और त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बतौर मुख्यमंत्री रहते अपने-अपने कार्यकाल में की थी. यह घोषणाएं फाइलों में ही दब कर रह गईं. प्रांतीयकरण का मतलब है कि सरकार इन स्कूलों के सभी खर्चे उठाती है.
उत्तराखंड में शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं. राज्य सरकार इन दावों को पूरा करने का आश्वासन भी देती है, लेकिन चुनाव के बाद न तो वादे पूरे होते हैं और ना ही घोषणाएं. प्रदेश में मुख्यमंत्रियों की घोषणाओं का भी हाल कुछ ऐसा ही है. ताजा मामला कांडाखाल इंटर कॉलेज का है. इसके प्रांतीयकरण (अधिग्रहण) के लिए स्थानीय लोगों द्वारा लंबे समय मांग की जाती रही है.
साल 1996 में जब इस विद्यालय का हाई स्कूल से इंटरमीडिएट के लिए उच्चीकरण हुआ, तब इसमें नए अध्यापकों की नियुक्ति नहीं की गई. जिसका स्थानीय लोगों ने जबरदस्त विरोध किया. लोगों कहना था कि जब इंटरमीडिएट के छात्र इस विद्यालय में पढ़ने जा रहे हैं तो फिर शिक्षकों की संख्या के साथ उनके स्तर को भी बढ़ाया जाना चाहिए. उधर विद्यालय में शिक्षकों की आपसी राजनीति पर भी स्थानीय लोगों को घोर आपत्ति है. हालांकि, करीब 6 महीने पहले इस विद्यालय में 3 नए शिक्षकों की नियुक्ति कर दी गई है, लेकिन इन नियुक्तियों में भी गड़बड़ी की आशंका लोगों ने जताई है.
अशासकीय विद्यालयों में क्या होती है व्यवस्था: अशासकीय विद्यालय स्थानीय लोगों की भूमि पर निर्मित होते हैं, लेकिन इसके संचालन की पूरी व्यवस्था राज्य सरकार देखती है. यानी राज्य सरकार की तरफ से ही शिक्षकों के वेतन समेत विद्यालय की जरूरतों को लेकर बजट जारी किया जाता है. आपको बता दें कि उत्तराखंड में अशासकीय विद्यालयों में भर्ती में गड़बड़ी के मामले पहले भी आते रहे है.
पिछले साल अशासकीय विद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती में गड़बड़ी की शिकायत के बाद कुछ समय के लिए शिक्षकों की नियुक्ति पर रोक लगाई गई थी और राज्य सरकार ने इसके मानक भी बदले थे. पैमाने के अनुसार इन विद्यालयों में 25 नंबर का इंटरव्यू प्रबंधन की तरफ से लिया गया था और उसी आधार पर नियुक्ति की जाती थी, लेकिन इसके बाद व्यवस्था में बदलाव किया गया और अब मेरिट के आधार पर 7 शिक्षको का नाम तय करने और इसके बाद इंटरव्यू लेने की व्यवस्था तय की गई है. हालांकि स्थानीय लोगों की मानें तो इसमें भी प्रबंधन की तरफ से गड़बड़ियां की जा रही है.
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अशासकीय विद्यालयों में टेंपरेरी शिक्षक रखने का भी प्रावधान है. इन शिक्षकों को करीब ₹10000 मानदेय दिया जाता है. इसी व्यवस्था के तहत कांडाखाल इंटर कॉलेज में भी कुछ पीटीए शिक्षक कार्यरत हैं. इस विद्यालय में 8 से 10 ग्राम सभाओं के बच्चे पढ़ते हैं. आज इसमें विद्यार्थियों की संख्या घटकर महज 250 रह गई है. जबकि एक समय यहां 500 से ज्यादा बच्चे पढ़ते थे. मुख्यमंत्री के पास विद्यालय के प्रांतीयकरण (अधिग्रहण) की मांग को लेकर पहुंचे सत्य प्रसाद कंडवाल कहते हैं कि इस विद्यालय को लेकर मुख्यमंत्री रहते हरीश रावत और त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी इसके प्रांतीयकरण (अधिग्रहण) घोषणा की थी, लेकिन सभी घोषणाएं हवा-हवाई साबित हुई हैं.
इस मामले पर ईटीवी भारत ने जब दूरभाष से यमकेश्वर विधानसभा से भाजपा विधायक रितु खंडूरी से बात की तो उन्होंने इस मामले में जानकारी देते हुए कहा कि उनकी तरफ से कई बार इस विद्यालय को शासकीय किए जाने के प्रयास किए गए हैं और उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और हरीश रावत द्वारा इसको लेकर घोषणा किए जाने की बात भी स्वीकारी है.
खास बात यह है कि रितु खंडूरी अशासकीय विद्यालयों में वित्तीय अड़चनें आने और विद्यालय की अंदरूनी राजनीति को प्रांतीय करण नहीं हो पाने के पीछे एक बड़ी वजह बताती हैं. विधायक रितु खंडूरी इस बात से भी इनकार नहीं करती कि अशासकीय विद्यालयों में नियुक्ति के दौरान गड़बड़ी की जाती है. बहरहाल विधायक ने एक बार फिर इस मामले को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सामने जोर-जोर से उठाने की बात कही है.