देहरादूनः राजधानी के दून अस्पताल में एक गर्भवती महिला ने अस्पताल की लिफ्ट के पास शिशु को जन्म दे दिया. इसके बाद अस्पताल प्रशासन में हड़कंप मच गया. इस बीच अस्पताल स्टाफ को जच्चा-बच्चा तक पहुंचने में 10 से 15 मिनट लग गए. गनीमत रही कि इस बीच कोई बड़ी अनहोनी नहीं हुई. अस्पताल प्रशासन का कहना है कि जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ हैं.
उत्तराखंड में बारिश से बंद होती सड़कों को देखते हुए राज्य भर की गर्भवतियों को प्रसव से 1 सप्ताह पहले अस्पताल पहुंचाने का निर्णय लिया गया है. ऐसे में गर्भवती महिलाएं अस्पताल पहुंच रही है. शनिवार को बिहार के रहने वाले विशेषर ने अपनी गर्भवती पत्नी को सुबह 4:30 बजे दून अस्पताल में भर्ती कराया. लेकिन दून अस्पताल में भर्ती गर्भवती ने अस्पताल के लिफ्ट के पास ही शिशु को जन्म दे दिया. बताया जा रहा है अस्पताल में भर्ती होने के बाद महिला अपने पति के साथ चाय पीने वार्ड से बाहर आई. महिला लिफ्ट के पास चाय पी ही रही थी कि इस दौरान डिलीवरी हो गई.
इसके बाद अस्पताल में हंगामा हो गया. अस्पताल प्रशासन को सूचना दी गई. प्रत्यक्षदर्शी के मुताबिक, सूचना के15 मिनट बाद अस्पताल के स्वास्थ्य कर्मी महिला के पास पहुंचे और महिला व शिशु को ओटी में ले गए. फिलहाल अस्पताल के मेडिकल स्टाफ और महिला के पति के मुताबिक, जच्चा-बच्चा दोनों की स्थिति सामान्य है. इस पूरे मामले पर दून अस्पताल के डिप्टी मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. धनंजय डोभाल का कहना है कि 33 वर्षीय कांति देवी नाम की महिला का प्रसव हुआ है. महिला सुबह डॉ. प्रज्ञा की देखरेख में महिला अस्पताल में एडमिट हुई थी. इस दौरान महिला चाय पीने के लिए लिफ्ट से जा रही थी, तभी महिला की डिलीवरी हो गई. उन्होंने बताया कि पेशेंट का अटेंडेंट ने अपनी गलती स्वीकार की है. अभी महिला और नवजात की स्थिति सामान्य है.
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महिला का आरोप: वहीं, रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि के निकटवर्ती गांव फलई की एक महिला ने श्रीनगर के एक अस्पताल के प्रबंधन, चिकित्सकों एवं सपोर्टिंग स्टाफ पर अभद्र व्यवहार करने तथा चिकित्सा के दौरान अनावश्यक रूप से परेशान करने का आरोप लगाया है. महिला का कहना है कि 18 जुलाई को वह डिलीवरी के लिए श्रीनगर के एक अस्पताल पहुंची थी. लेबर पेन नहीं होने पर शाम 7 बजे ऑपरेशन से स्वस्थ बेटी को जन्म दिया. महिला ने बताया कि अगले दिन अस्पताल स्टाफ ने कहा कि टांके सही से नहीं लगे हैं. इस पर चार टांके फिर लगाए गए.
इसके बाद 20 जुलाई को डॉक्टरों ने बच्ची को पीलिया बताया और दूसरी मंजिल पर मशीन के अंदर रखने की सलाह दी. महिला का कहना है कि इसके लिए उसे स्वयं न केवल पैदल दूसरी मंजिल पर ले जाना पड़ा, बल्कि समय-समय पर दूध पिलाने के लिए भी जाना पड़ा. जबकि उनका स्वयं का ऑपरेशन हुआ था. इसके बाद 25 जुलाई को वे डिस्चार्ज होकर घर आ गई. महिला ने बताया कि डॉक्टर्स ने उसे टांके कब कटवाने हैं इसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी. 29 जुलाई को टांकों पर दर्द होने पर वे सीएचसी अगस्त्यमुनि आई तो पता चला कि टांके काटने हैं. महिला का कहना है कि श्रीनगर के अस्पताल के चिकित्सकों और सपोर्टिंग स्टाफ का मरीजों के प्रति व्यवहार अच्छा नहीं है.
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