देहरादून: पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Former CM Harish Rawat) के ट्वीट से कांग्रेस में सियासी घमासान मचा हुआ है. बीते दिन हरीश रावत ने ट्वीट कर पार्टी के खिलाफ नाराजगी जाहिर की है. हरीश रावत के ये बगावती तेवर अचानक नहीं आए हैं. हरीश रावत लंबे समय से सभी पहलुओं को देख रहे थे और कुछ नेता उन पर लगातार निशाना साध रहे थे.
हरीश रावत का विरोधी खेमा अत्यधिक सक्रिय: हरीश रावत को साइडलाइन करने की कवायद उसी दिन से शुरू हो गई थी जिस दिन से कांग्रेस के एक खेमे को यह लगा कि अगर 2022 में पार्टी सत्ता में आई तो कहीं हरीश रावत दोबारा मुख्यमंत्री ना बन जाएं. इसका जीता-जागता उदाहरण कांग्रेस नेता राहुल गांधी की देहरादून रैली में देखने को मिला था, जब हरीश रावत के करीबी राजीव जैन से मंच का संचालन ले लिया गया था. इस घटना ने उत्प्रेरक का कार्य किया था. दरअसल हरीश रावत की नाराजगी के बीज तो पहले की कुछ घटनाओं ने बो दिए थे.
पहली घटना- पिथौरागढ़ में प्रीतम को ज्यादा तवज्जो से नाराजगी: बीते दिनों पिथौरागढ़ की जनसभा में जिस तरह से कांग्रेस के प्रति अपार जनसमूह उमड़ा, उसके बाद हरीश रावत कुमाऊं में अपना दमखम दिखाने के लिए तैयार थे. उत्तराखंड कांग्रेस के प्रभारी देवेंद्र यादव ने उस जनसभा में नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह को भी मंच पर बैठाने और स्वागत करवाने की भरपूर कोशिश की. वहीं यह दिखाने की कोशिश की कि प्रीतम सिंह ही बड़े नेता हैं. हरीश रावत को यह मालूम नहीं था कि प्रीतम सिंह को भी मंच पर जगह दी जा रही है. लेकिन अचानक से कुछ नेताओं की कुर्सी लगने के बाद यह मामला साफ हो गया कि दिल्ली से ही देवेंद्र यादव को कुछ अतिरिक्त करने की सलाह दी जा रही है.
दूसरी घटना- अविनाश पांडे की एंट्री: अविनाश पांडे की उत्तराखंड में एंट्री ने हरीश रावत की नाराजगी का पारा और चढ़ा दिया. अविनाश पांडे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं और लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी ने उन्हें उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी चुनने के लिए पर्यवेक्षक के तौर पर भेजा था. इस बार भी हरीश रावत को बिना बताए ऐसी जानकारी है कि अविनाश पांडे को देहरादून भेज दिया गया. अविनाश पांडे देहरादून हरिद्वार उधमसिंह नगर और तमाम जगहों पर प्रत्याशियों के बायोडाटा इकट्ठा कर रहे हैं और उसके आधार पर ही नेताओं के टिकट फाइनल होंगे. हरीश रावत को यह लगता है कि पार्टी आलाकमान देवेंद्र यादव को ज्यादा तवज्जो दे रहा है. इसी वजह से हरीश रावत का यह गुस्सा फूटा. अविनाश पांडे राजस्थान में भी टिकटों के बंटवारे में अहम भूमिका निभा चुके हैं.
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तीसरी घटना- राहुल गांधी की रैली में समर्थक से छीना मंच संचालन: 16 दिसंबर को देहरादून के परेड ग्राउंड में राहुल गांधी की बड़ी रैली हुई. राहुल गांधी और उत्तराखंड कांग्रेस के लिए रैली भले ही सफल साबित हुई हो लेकिन हरीश रावत यहां से कड़वा अनुभव लेकर लौटे. कांग्रेस नेता राहुल गांधी की देहरादून रैली में हरीश रावत के समर्थन में नारे लगने लगे तो पार्टी के सह प्रभारी को खुद मंच से किसी भी पार्टी नेता की व्यक्तिगत नारेबाजी न करने की बात कहनी पड़ी. दरअसल, मंच पर हरीश रावत के करीबी राजीव जैन जनसभा का संचालन करते हुए दिखाई दे रहे थे. इस दौरान उन्होंने मंच से हरीश रावत के समर्थन में बड़े ही जोश के साथ नारेबाजी की. हालांकि इसके बाद उन्होंने बाकी नेताओं के नाम भी लिए, लेकिन इसके बाद फौरन पार्टी के सह प्रभारी ने मंच संभाला और किसी को भी किसी नेता के पक्ष में व्यक्तिगत नारेबाजी करने से बचने की बात कही. बड़ी बात ये है कि इसके बाद हरीश रावत के करीबी राजीव जैन मंच के संचालन से दूर हो गए और सह प्रभारी राजेश धर्माणी ने मंच संभाल लिया.
हरीश रावत समर्थक राजीव जैन को मंच से किया किनारे: जानकार कह रहे हैं कि हरीश रावत की नाराजगी की एक वजह ये भी हो सकती है. वहीं मंच पर पार्टी की एकजुटता दिखाने के लिए करीब 60 कुर्सियां लगाई गई थीं, ताकि पार्टी के सभी नेताओं को मंच पर जगह मिल सके और एकजुटता का संदेश दिया जा सके. उधर हरीश रावत और प्रीतम सिंह मंच पर एक साथ दिखाई दिए थे. रैली के दौरान राजीव जैन मंच से किनारे हो गए. हरीश रावत और उनके खेमे को यह बात बुरी लगी. हालांकि बताया जाता है कि यह पहली बार नहीं हुआ. इससे पहले भी कई चुनावी सभाओं और चुनावी कार्यक्रमों में इस तरह की घटनाएं सामने आ चुकी हैं.
और हरीश रावत का धैर्य जवाब दे गया: एक के बाद एक इतनी घटनाओं ने हरीश रावत के अंदर के स्वाभिमानी 'दबंग' राजनीतिज्ञ को जगा दिया. अब तक उत्तराखंड में अपनी हर बात मनवाते और जो मर्जी करते आ रहे हरीश रावत के लिए ये बड़े रोड़े और झटके थे. हरीश रावत ने काफी सोच-विचार के बाद एक ऐसी पोस्ट लिखी जिसने कांग्रेस को अंदर तक हिला दिया. सिर्फ कांग्रेस ही नहीं इसकी चर्चा उत्तराखंड की तमाम राजनीतिक पार्टियों के साथ दिल्ली तक है. हरीश रावत को करीब से जानने वाले राजनीति के जानकार मानते हैं कि ये प्रेशर पॉलिटिक्स के अलावा कुछ नहीं है. हरीश रावत अपने घर-परिवार और नजदीकी लोगों को टिकट दिलवाना चाहते हैं. इस बार दावेदारों के इंटरव्यू होने से उन्हें लग रहा है कि ऐसा होना थोड़ा मुश्किल है. ऐसे में हरीश रावत दबाव की राजनीति पर उतर आए हैं. दरअसल एक या दो हफ्ते के अंदर कांग्रेस अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी करने वाली है. हरीश रावत ने जो पोस्ट लिखी जरा उसकी भाषा और लक्ष्य समझिए...
हरीश रावत का पोस्ट-
चुनाव रूपी समुद्र है न अजीब सी बात, चुनाव रूपी समुद्र को तैरना है, सहयोग के लिए संगठन का ढांचा अधिकांश स्थानों पर सहयोग का हाथ आगे बढ़ाने के बजाय या तो मुंह फेर करके खड़ा हो जा रहा है या नकारात्मक भूमिका निभा रहा है'. 'जिस समुद्र में तैरना है, जिनके आदेश पर तैरना है, उनके नुमाइंदे मेरे हाथ-पांव बांध रहे हैं. मन में बहुत बार विचार आ रहा है कि हरीश रावत अब बहुत हो गया, बहुत तैर लिये, अब विश्राम का समय है'. चुपके से मन के एक कोने से आवाज उठ रही है, 'न दैन्यं न पलायनम. बड़ी उहापोह की स्थिति में हूं, नया साल शायद रास्ता दिखा दे. मुझे विश्वास है कि भगवान केदारनाथ जी इस स्थिति में मेरा मार्गदर्शन करेंगे. सत्ता ने वहां कई मगरमच्छ छोड़ रखे हैं, जिनके आदेश पर तैरना है, उनके नुमाइंदे मेरे हाथ-पांव बांध रहे हैं. मन में बहुत बार विचार आ रहा है कि हरीश रावत अब बहुत हो गया, बहुत तैर लिये, अब विश्राम का समय है'.