देहरादून: अपने बेबाक अंदाज और स्वच्छ राजनीतिक छवि के लिए पहचाने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी का आज जन्मदिन है. खंड़ूड़ी आज 87 साल के हो गए हैं. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ट्वीट कर उन्हें जन्मदिवस की शुभकामनाएं दी हैं. हालांकि, खंडूड़ी बीते दो साल से राजनीति में एक्टिव नहीं हैं. बढ़ती उम्र और सेहत ठीक नहीं रहने की वजह से साल 2019 में ही खंड़ूड़ी ने राजनीति से संन्यास ले लिया था. आइए जानते हैं खंड़ूड़ी के राजनीतिक सफर के बारे में...
मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी बीजेपी के दिग्गज नेताओं में शुमार हैं. जिन्होंने दो बार उत्तराखंड की कमान संभाली है. साथ ही वो केंद्र में मंत्री भी रहे हैं. खंडूड़ी की बेदाग छवि को भुनाने की कोशिश में बीजेपी ने 2012 का चुनाव 'खंडूड़ी है ज़रूरी' नाम से लड़ा था.
पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में खंडूड़ी सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मामलों के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रह चुके हैं. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में खंडूड़ी दो बार विदेश राज्य मंत्री रहे. अपनी स्वच्छ छवि के लिए पहचान बना चुके भारतीय सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल बीसी खंडूड़ी को बीते साल सितंबर में रक्षा मामलों की संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष के ओहदे से हटा दिया गया था. उनकी जगह पूर्व केन्द्रीय मंत्री कलराज मिश्र को समिति का चेयरमैन बनाया गया. वजह दी गई नरेंद्र मोदी के कैबिनेट नियम, जिसके तहत 75 साल से अधिक उम्र वाले केन्द्रीय मंत्री या लोकसेवकों को पद नहीं दिया जाता.
कौन हैं बीसी खंडूड़ी
- 1 अक्टूबर 1933 को जन्मे 84 वर्षीय बीसी खंडूड़ी पौड़ी के मूल निवासी हैं.
- दो बार राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे हैं.
- पहली बार 2007 से 2009 तक और दूसरी बार 2011 से 2012 तक.
- वह पहली बार 8 मार्च 2007 से 27 जून 2009 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे.
- फिर 11 सितंबर 2011 को तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के इस्तीफे के बाद वे वापस उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने.
- राजनीति में आने से पहले उन्होंने 1954 से लेकर 1990 तक भारतीय सेना में 36 साल नौकरी की थी.
- 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध में वो रेजीमेंट कमांडर रह चुके हैं.
- खंडूड़ी को 1982 में अतिविशिष्ट सेना मेडल से सम्मानित किया गया था.
- खंडूड़ी की पढ़ाई-लिखाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय, सैन्य अभियांत्रिकी महाविद्यालय (सीएमई) पुणे, इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स, नई दिल्ली और रक्षा प्रबंध संस्थान सिकन्दराबाद में हुई.
- सेवानिवृत्ति के बाद वो राजनीति में आए और 1991 तथा बाद के चुनावों में उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए.
दरअसल, भारत की रक्षा तैयारियों को लेकर मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी के नेतृत्व वाली स्थायी समिति की ओर से लगातार आलोचनात्मक रिपोर्ट आती रही है. मार्च 2018 में ये रिपोर्ट संसद के पटल पर रखी गई थी, जिसमें रक्षा स्टॉक की कमी के लिए सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया गया था. रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि भारतीय सुरक्षा बलों के पास 68 फीसदी हथियार बेहद पुराने जमाने के हैं.
उत्तराखंड की राजनीति के पुराने पन्ने पलटे जाएं तो 2007 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जीत हासिल हुई थी. मुख्यमंत्री पद के लिए भारी खींचतान और विरोध के बीच खंडूड़ी मुख्यमंत्री बनाए गए, लेकिन निशंक और कोश्यारी गुट ने हथियार नहीं डाले. साल 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस ने राज्य की पांचों सीटों पर कब्ज़ा कर लिया और बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी तो खंडूड़ी के खिलाफ रही लॉबी को हाथों-हाथ मुद्दा मिल गया.
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इस बीच 2009 में खंडूड़ी को हटाकर निशंक को सीएम बनाया गया, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते निशंक को 2011 में मुख्यमंत्री पद बीच में ही छोड़ना पड़ा और फिर बीजेपी के पास खंडूड़ी के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा.
2011 में खंडूड़ी को वापस मौका मिला. सत्ता दोबारा खंडूड़ी को सौंप दी गई. खंडूड़ी की साफ छवि का फायदा उठाने की कोशिश में 2012 में खंडूड़ी के नाम से चुनाव लड़ा गया, लेकिन सत्ता विरोधी लहर जारी रही और बीजेपी हार से बच नहीं पाई.
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बहरहाल, किसी जमाने में उत्तराखंड के लिए जरूरी खंड़ूड़ी की राजनीति का सूरज ढल गया है. उम्र और सेहत के चलते उन्होंने 2019 में राजनीति को अलविदा कह दिया था. उनकी बेटी ऋतु खंड़ूड़ी उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही हैं. जो यमकेश्वर विधानसभा सीट से विधायक हैं. जबकि, उनके बेट मनीष खंड़ूड़ी ने 2019 में कांग्रेस के टिकट से पौड़ी लोकसभी सीट का चुनाव लड़ा था और उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. खैर, ईटीवी भारत की ओर से पूर्व सीएम भुवन चंद्र खंडू़ड़ी को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकानाएं.