देहरादून: नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की साल 2018 की रिपोर्ट के हिसाब से उत्तराखंड राज्य में नेशनल और स्टेट हाईवे पर चलना असुरक्षित माना जा रहा है. बीते दो सालों में उत्तराखंड के मैदानी और पहाड़ी इलाकों में 273 यात्रियों की मौत तेज रफ्तार वाहन की चपेट में आने से हो चुकी है. एनसीआरबी आंकड़ों के अनुसार, हिमालय राज्यों में उत्तराखंड पैदल हादसों में दूसरे स्थान पर है, जबकि पहले स्थान पर हिमाचल प्रदेश है, जहां बीते दो सालों में पैदल चलने वाले 353 लोग वाहन की चपेट में आकर काल का ग्रास बन चुके हैं.
उत्तराखंड राज्य में भले ही विगत सालों की अपेक्षा साल 2019 में सड़क हादसों में 10 प्रतिशत की कमी आई हो, लेकिन सड़क में पैदल चलने वाले यात्रियों की इतनी तादाद में मौत होना चिंता का विषय बनता जा रहा है.
उत्तराखंड में साल 2017 में 1451 सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिसमें मरने वालों की संख्या 856 थी. वहीं, घायलों की संख्या 1504 रही. साल 2018 में उत्तराखंड के पहाड़ी और मैदानी इलाकों में 1314 सड़क हादसे हुए, जिनमें 952 लोगों ने अपनी जान गंवाई, जबकि 1453 लोग इन घटनाओं में घायल हुए. ऐसे में इन 2 सालों के बढ़ते आंकड़ों पर रोकथाम लगाने के लिए पुलिस ने साल 2019 में कारणों को तलाश कर काफी हद तक कार्य किए गए, जिसका नतीजा ये रहा कि 2019 में जारी अधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2019 से नवंबर महीने तक पूरे राज्य में 1221 सड़क हादसे हुए, जिनमें 778 लोगों की मौत हो गई, जबकि 1322 लोग इन हादसों में घायल हुए.
ये भी पढ़ें: मसूरी: वन चौकी में ना बिजली है, ना पानी, क्या ऐसे होगी सुरक्षा?
वहीं, इस मामले में पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने बताया कि इस ग्राफ के हर साल बढ़ने का कारण नेशनल और स्टेट हाईवे में चारधाम और कांवड़ यात्रियों की तादात का बढ़ना है. डीजी अशोक कुमार के अनुसार, उधम सिंह नगर जैसे नेशनल हाईवे पर पैदल सड़क हादसों की वजह तेज रफ्तार और कोहरा का होना है. हालांकि, पैदल यात्रा में मरने वालों की संख्या चिंता का विषय बनी हुई है.
डीजी के अनुसार, सड़क हादसों पर अंकुश लगाने के लिए अब प्रदेशभर की पुलिस को आरोपित वाहनों के चालक और स्वामी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए निर्देशित किया गया है. जिससे इन हादसों पर लगाम लगाई जा सके.