देहरादून: उत्तराखंड में हर साल करीब 3 करोड़ पर्यटक पहुंचते हैं और चारधाम यात्रा के दौरान ये संख्या सर्वाधिक होती है. ऐसे में राज्य के लिए स्वच्छता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती रहता है. न केवल पर्यटकों के स्तर पर बल्कि स्थानीय स्तर पर भी जमा होने वाले कचरे का प्रबंधन राज्य सरकार के लिए काफी मुश्किल होता है. हालांकि, कचरा प्रबंधन पर जिम्मेदार संस्थाओं की तरफ से कई दावे किए जाते रहे हैं, लेकिन इनकी हकीकत धरातल पर कुछ और ही दिखाई देती है. बहरहाल, आज बात देहरादून की है. जाहिर है राजधानी में कोई भी व्यवस्था और सुविधा सबसे बेहतर होती है. इसी नजरिए के साथ ईटीवी भारत ने देहरादून में कूड़ा प्रबंधन के हालात का जायजा लिया.
देहरादून नगर निगम के स्तर पर 98 वार्डों का कूड़ा निस्तारित किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं. इसके लिए देहरादून शहर में 113 वाहन कूड़ा उठाने के लिए लगाए गए हैं. डोर-टू-डोर कूड़ा उठान की व्यवस्था के तहत इन सभी 98 वार्डों में निजी कंपनी की गाड़ियों द्वारा कूड़ा उठाया जाता है. कूड़े को घरों से लाने के लिए 500 से ज्यादा कर्मचारी शहर में लगाए गए हैं. इसमें नगर निगम के साथ ही आउट सोर्स पर भी दिन के हिसाब से कर्मचारी तैनात किए जाते हैं. उधर, देहरादून के मेयर सुनील उनियाल गामा कहते हैं कि इस पूरी व्यवस्था की मॉनिटरिंग के लिए स्वास्थ्य अधिकारी से लेकर अन्य दूसरे कर्मचारियों को भी लगाया गया है. कूड़ा बेहतर तरीके से उठान हो इसके लिए नगर निगम की तरफ से पूरी व्यवस्था की जा रही है.
सॉलिड वेस्ट मैनेजमैंट प्लांट का स्थिति: देहरादून नगर निगम के स्तर पर इस दावे के बीच राजधानी में कूड़ा प्रबंधन की असल स्थिति शीशमबाड़ा में बनाए गए कूड़ा प्रबंधन प्लांट से समझी जा सकती है. दरअसल, राजधानी में कूड़ा प्रबंधन के लिए जो प्लांट लगाया गया है वो पूरी तरह से फेल हो गया है और यहीं से राजधानी की कूड़े के प्रबंधन को लेकर स्थिति डगमगाती हुई दिखाई देती है.
साल 2008 से ही देहरादून में कूड़ा निस्तारण के लिए प्लांट स्थापित करने के प्रयास शुरू कर दिए गए थे, इसके लिए जमीन पर चिन्हीकरण से लेकर प्लांट के लिए एनओसी लेने तक कई साल लग गए. 2014 में इस प्लांट को स्थापित करने के लिए केंद्र के साथ ही ग्रीन ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट से नगर निगम को एनओसी मिल पाई. इसके बाद टेंडर के जरिए रेमकी कंपनी को प्लांट स्थापित करने का काम दे दिया गया. करीब 13 महीने में इसके लिए निर्माण कार्य किया गया और 2016 में तत्कालीन नगर निगम मेयर विनोद चमोली ने इस प्लांट का शिलान्यास कर दिया.
45 करोड़ रुपए जाएंगे डूब?: शीशमबाड़ा प्लांट सवा 8 एकड़ में बनाया गया है और इसके स्थापित होने के बाद सालों तक राजधानी देहरादून को कूड़ा निस्तारण में कोई दिक्कत नहीं होने की बात कही गई थी. लेकिन हालत ये हैं कि अब इस प्लांट को यहां से हटाने की तैयारी की जा रही है. जाहिर है कि प्लांट पर लगे करीब 45 करोड़ रुपए तो डूबने जा ही रहे हैं, साथ ही बेहतर कूड़ा प्रबंधन की व्यवस्था भी ठप होने जा रही है.
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शीशमबाड़ा ट्रंचिंग ग्राउंड न केवल देहरादून शहर के 98 वार्ड से निकलने वाले 250 मीट्रिक टन कूड़े के निस्तारण के लिए बनाया गया था, बल्कि यहां पर हरबर्टपुर, विकासनगर, सेलाकुई और मसूरी समेत छावनी परिषद का कूड़ा भी लाया जा रहा था. इस तरह इस प्लांट पर हर दिन करीब 350 से 400 मीट्रिक टन कूड़ा पहुंच रहा है.
शीशमबाड़ा के लोगों की परेशानी: दावा किया गया था कि ये प्लांट देश के उन गिने-चुने प्लांट में शामिल होगा जो पूरी तरह से कवर्ड होगा और इस प्लांट से कोई भी दुर्गंध नहीं आएगी, लेकिन न तो इसे पूरी तरह से कवर किया गया और न ही इससे दुर्गंध रोकी जा सकी. स्थिति ये है कि ग्रामीण कई बार यहां पर हंगामा कर चुके हैं और यहां से आने वाली दुर्गंध के कारण लोग बीमार होने तक की शिकायत कर चुके हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस क्षेत्र में मच्छर, मक्खी और तमाम छोटे कीटाणुओं का अंबार हो चुका है जिससे लोग बीमार पड़ रहे हैं.
देहरादून नगर निगम भी कम दोषी नहीं: शीशमबाड़ा प्लांट में रेमकी कंपनी की तरफ से कूड़ा निस्तारण में की गई लापरवाही ने लोगों को परेशानी में डाल दिया है. पिछले 2 महीनों में दो बार इस प्लांट में रखे गए कूड़े के पहाड़ पर आग लग चुकी है. अप्रैल में जब यह आग लगी तो स्थिति इतनी खराब हो गई कि कई अग्निशमन की गाड़ियां भी इस आग को नहीं बुझा पाईं और कई दिनों तक कूड़े में आग लगी रही. प्लांट पर कमियों की एक लंबी चौड़ी फेहरिस्त है जिसे न केवल इस कंपनी की गलती के रूप में देखा जा सकता है बल्कि नगर निगम भी इसके लिए कम दोषी नहीं है.
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प्लांट के आसपास न तो कैमरों की व्यवस्था है और न ही यहां पर पहुंच रहे कूड़े का ठीक से निस्तारण ही किया जा रहा है. स्थिति यह है कि कूड़ा निस्तारण के बाद बचने वाले अवशेष के लिए बनाया गया लैंडफिल कुछ ही सालों में पूरी तरह से भर गया है. इतने कम समय में इतना ऊंचा कूड़े का पहाड़ बनने के पीछे की वजह कंपनी की तरफ से कूड़े को ही लैंडफिल में डालना माना जा रहा है. यहां से निकलने वाले गंदे पानी से लेकर यहां मौजूद चेंबर तक को लेकर कई तरह की शिकायतें आ रही हैं.
इतना ही नहीं, कूड़ा निस्तारण के दौरान बनने वाली खाद और आरडीएफ यानी रिफ्यूज्ड ड्राई फ्यूल के बड़े जखीरे के यहां पड़े होने की बात कही जा रही है. इसके बावजूद इन सवालों का जवाब देने के बजाय नगर निगम शीशमबाड़ा प्लांट पर मीडिया को जाने की अनुमति नहीं दे रहा है. चौंकाने वाली बात ये है कि कंपनी के अधिकारी इस प्लांट में घुसने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा चुके हैं. उधर, नगर निगम भी इन कमियों को छुपाने के लिए प्लांट में जाने की अनुमति से जुड़ी औपचारिकताओं को पूरा करने से बच रहा है. उधर, प्रभारी मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी डॉ अविनाश खन्ना इन कमियों पर बात करने के बजाय अपनी व्यवस्थाओं को लेकर खुद की पीठ थपथपा रहे हैं.
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ये भी बता दें कि देहरादून नगर निगम की तरफ से संबंधित कंपनी को हर महीने करीब 98 लाख रुपए दिए जाते हैं. जाहिर है कि प्लांट के कूड़ा निस्तारण को लेकर पूरी तरह से फेल होने के बाद अब देहरादून शहर समेत आसपास के नगर निकायों का कूड़ा कहां जाएगा इसको लेकर चिंता सरकार को भी है और प्रशासन को भी. हालांकि, ये भी सच है कि अब इस प्लांट को यहां से हटाना सरकार के लिए मुश्किल होगा क्योंकि दूसरी जगह चिन्हित करने से लेकर इसके लिए एनओसी लेने की प्रक्रिया बेहद जटिल है. लिहाजा आने वाले दिनों में लोगों की कूड़ा प्रबंधन की समस्या बढ़ना भी तय है.