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कैप्टन दीपक साठे ने देहरादून से की थी स्कूलिंग, केरल विमान हादसे में जान देकर बचाई 170 जिंदगियां

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Published : Aug 8, 2020, 10:43 PM IST

Updated : Aug 9, 2020, 12:10 AM IST

कैप्टन दीपक साठे ने देहरादून के कैंट क्षेत्र में स्थित कैंब्रियन हॉल स्कूल से स्कूलिंग की थी. कैंब्रियन हॉल से ही अपनी 10वीं और 11वीं की परीक्षा पास की. कुशाग्र बुद्धि के दीपक का एनडीए में चयन हुआ था. जहां उन्हें गोल्ड मेडल भी मिला था.

captain deepak sathe
कैप्टन दीपक साठे

देहरादूनः केरल के कोझिकोड हवाई अड्डे पर अपनी सूझबूझ और हिम्मत के जरिए 170 लोगों की जान बचाने वाले कैप्टन दीपक वसंत साठे का देहरादून से खास नाता रहा है. कैप्टन दीपक ने अपनी स्कूलिंग का महत्वपूर्ण समय देहरादून में बिताया था. उन्होंने दून के कैंब्रियन हॉल स्कूल से पढ़ाई की थी. दिवंगत कैप्टन दीपक बचपन से ही काफी होनहार थे. वो गोल्ड मेडलिस्ट भी रहे.

केरल विमान हादसे का शिकार हुए दिवंगत कैप्टन दीपक साठे आज हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनकी शानदार यादें उनसे जुड़े लोगों को हमेशा उनकी याद दिलाती रहेंगी. कैप्टन दीपक ने हवाई अड्डे पर लैंडिंग के दौरान अपनी सूझबूझ के जरिए करीब 170 लोगों की जान बचाई. उनकी इसी हिम्मत और बलिदान को देश याद कर रहा है.

बता दें कि कैप्टन दीपक की स्कूलिंग का महत्वपूर्ण समय देहरादून में बीता है. दरअसल, दीपक के पिता भारतीय सेना में ही अफसर थे और देहरादून के इंडियन मिलिट्री एकेडमी में साल 1966 के दौरान उन्हें पोस्टिंग दी गई थी. तब दीपक के पिता सेना में कैप्टन थे. इस दौरान दीपक को पिता ने देहरादून के कैंट क्षेत्र में स्थित कैंब्रियन हॉल स्कूल में एडमिशन दिलवाया था.

जानकारी देते कैंब्रियन हॉल स्कूल के प्रिसिंपल डॉक्टर एसी ब्याला.

कैंब्रियन हॉल स्कूल के प्रिसिंपल डॉक्टर एसी ब्याला बताते हैं कि करीब एक साल ही कैंब्रियन हाल में पढ़ने के दौरान उनके पिता का तबादला किसी दूसरे राज्य में हो गया. जिसके चलते कैप्टन दीपक को स्कूल छोड़ना पड़ा, लेकिन इसके बाद साल 1970 में एक बार फिर बतौर मेजर दीपक के पिता की पोस्टिंग देहरादून के आईएमए में हुई. इसके बाद कैप्टन दीपक ने कैंब्रियन हॉल से ही अपनी दसवीं और 11वीं की परीक्षा पास की.

ये भी पढ़ेंः केरल विमान हादसा : मृतकों में एक कोरोना संक्रमित, परिजनों को ₹10-10 लाख मुआवजा

साल 1976 में 11वीं पास करने के बाद दीपक के पिता का तबादला कहीं और हो गया. खास बात यह है कि दीपक के बड़े भाई भी इसी स्कूल से पढ़े हैं. जिन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान अपनी शहादत दी थी. बेहद कुशाग्र बुद्धि के दीपक का पहले एनडीए में सलेक्शन हुआ. जहां उन्हें गोल्ड मेडल मिला. कैप्टन दीपक ने इसके बाद वायु सेना को चुना और उन्होंने कारगिल युद्ध में भी अपनी भूमिका निभाई.

1990 प्लेन क्रैश में बची थी जान
कैप्टन दीपक साल 1990 में भी प्लेन क्रैश में बाल-बाल बचे थे. उन्होंने कारगिल युद्ध में भी अहम भूमिका निभाई थी. वायु सेना में करीब 22 साल की नौकरी के बाद उन्होंने कमर्शियल पायलट के रूप में काम करना शुरू किया, लेकिन किसी को पता नहीं था कि उनका भाग्य इस बार उनका साथ नहीं देगा.

स्कूल के दौरान कैप्टन दीपक हिस्ट्री, कल्चरल हिस्ट्री, मैथ और साइंस में बेहद ज्यादा रुचि रखते थे और इसी सब्जेक्ट में उन्हें महारथ हासिल थी. कैंब्रियन हॉल के प्रिंसिपल डॉक्टर एससी ब्याला बताते हैं कि उस दौरान 6 सब्जेक्ट 15 ग्रेड में होना एक बड़ी उपलब्धि थी. इससे यह जाहिर होता है कि कैप्टन दीपक का पढ़ने लिखने में बेहद लगाव था.

देहरादूनः केरल के कोझिकोड हवाई अड्डे पर अपनी सूझबूझ और हिम्मत के जरिए 170 लोगों की जान बचाने वाले कैप्टन दीपक वसंत साठे का देहरादून से खास नाता रहा है. कैप्टन दीपक ने अपनी स्कूलिंग का महत्वपूर्ण समय देहरादून में बिताया था. उन्होंने दून के कैंब्रियन हॉल स्कूल से पढ़ाई की थी. दिवंगत कैप्टन दीपक बचपन से ही काफी होनहार थे. वो गोल्ड मेडलिस्ट भी रहे.

केरल विमान हादसे का शिकार हुए दिवंगत कैप्टन दीपक साठे आज हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनकी शानदार यादें उनसे जुड़े लोगों को हमेशा उनकी याद दिलाती रहेंगी. कैप्टन दीपक ने हवाई अड्डे पर लैंडिंग के दौरान अपनी सूझबूझ के जरिए करीब 170 लोगों की जान बचाई. उनकी इसी हिम्मत और बलिदान को देश याद कर रहा है.

बता दें कि कैप्टन दीपक की स्कूलिंग का महत्वपूर्ण समय देहरादून में बीता है. दरअसल, दीपक के पिता भारतीय सेना में ही अफसर थे और देहरादून के इंडियन मिलिट्री एकेडमी में साल 1966 के दौरान उन्हें पोस्टिंग दी गई थी. तब दीपक के पिता सेना में कैप्टन थे. इस दौरान दीपक को पिता ने देहरादून के कैंट क्षेत्र में स्थित कैंब्रियन हॉल स्कूल में एडमिशन दिलवाया था.

जानकारी देते कैंब्रियन हॉल स्कूल के प्रिसिंपल डॉक्टर एसी ब्याला.

कैंब्रियन हॉल स्कूल के प्रिसिंपल डॉक्टर एसी ब्याला बताते हैं कि करीब एक साल ही कैंब्रियन हाल में पढ़ने के दौरान उनके पिता का तबादला किसी दूसरे राज्य में हो गया. जिसके चलते कैप्टन दीपक को स्कूल छोड़ना पड़ा, लेकिन इसके बाद साल 1970 में एक बार फिर बतौर मेजर दीपक के पिता की पोस्टिंग देहरादून के आईएमए में हुई. इसके बाद कैप्टन दीपक ने कैंब्रियन हॉल से ही अपनी दसवीं और 11वीं की परीक्षा पास की.

ये भी पढ़ेंः केरल विमान हादसा : मृतकों में एक कोरोना संक्रमित, परिजनों को ₹10-10 लाख मुआवजा

साल 1976 में 11वीं पास करने के बाद दीपक के पिता का तबादला कहीं और हो गया. खास बात यह है कि दीपक के बड़े भाई भी इसी स्कूल से पढ़े हैं. जिन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान अपनी शहादत दी थी. बेहद कुशाग्र बुद्धि के दीपक का पहले एनडीए में सलेक्शन हुआ. जहां उन्हें गोल्ड मेडल मिला. कैप्टन दीपक ने इसके बाद वायु सेना को चुना और उन्होंने कारगिल युद्ध में भी अपनी भूमिका निभाई.

1990 प्लेन क्रैश में बची थी जान
कैप्टन दीपक साल 1990 में भी प्लेन क्रैश में बाल-बाल बचे थे. उन्होंने कारगिल युद्ध में भी अहम भूमिका निभाई थी. वायु सेना में करीब 22 साल की नौकरी के बाद उन्होंने कमर्शियल पायलट के रूप में काम करना शुरू किया, लेकिन किसी को पता नहीं था कि उनका भाग्य इस बार उनका साथ नहीं देगा.

स्कूल के दौरान कैप्टन दीपक हिस्ट्री, कल्चरल हिस्ट्री, मैथ और साइंस में बेहद ज्यादा रुचि रखते थे और इसी सब्जेक्ट में उन्हें महारथ हासिल थी. कैंब्रियन हॉल के प्रिंसिपल डॉक्टर एससी ब्याला बताते हैं कि उस दौरान 6 सब्जेक्ट 15 ग्रेड में होना एक बड़ी उपलब्धि थी. इससे यह जाहिर होता है कि कैप्टन दीपक का पढ़ने लिखने में बेहद लगाव था.

Last Updated : Aug 9, 2020, 12:10 AM IST
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