देहरादून: राजधानी देहरादून के सबसे पुराने और ऐतिहासिक भवनों में से एक कनॉट प्लेस (Dehradun Connaught Place) की मंसाराम बिल्डिंग (historic MansaRam Building) का आखिर समय आ गया है. आगामी 21 सितंबर 2022 को ये भवन गिराया जाएगा. दशकों से इस बिल्डिंग में रह रहे लोगों के अंग्रेजों का शासनकाल, भारत की आजादी और हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के बंटवारे का दर्द भी देखा (People pain over demolition) है. 5 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में फैली इस बिल्डिंग में ढाई सौ से अधिक दुकानें और कई आवासीय भवन है.
मंसाराम ने बनाई थी ये भव्य इमारत: देहरादून में रहने वाले सेठ मंसाराम ने इस भव्य इमारत को साल 1934 से 40 के बीच में बनवाया था. बताया जाता है कि मंसाराम ने उस वक्त इस विशालकाय भवन में उन लोगों को पनाह दी थी जो लोग बंटवारे के बाद देहरादून आये थे. आज इस इमारत में लगभग 250 से अधिक दुकानें हैं, जिनके ऊपर रहने के मकान बने हुए हैं. हालांकि, काफी समय पहले भवन की स्थिति को देखते हुए इसे गिरासू घोषित कर दिया गया था. यही कारण है कि कभी भी ढह जाने वाले इन भवनों को अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार आगामी 21 सितंबर 2022 को ध्वस्त किया जाना है.
लोगों के सामने बड़ी परेशानी: इस भवन के गिरने के बाद जहां एक ओर यहां दुकान करने वाले व्यापारियों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा तो वहीं यहां के आवसीय भवनों में रहने वाले परिवारों को भी अपने सिर की छत छिनने की चिंता सता रही है. इस बिल्डिंग के गिरने के बाद आखिर वो जाएं तो जाएं कहां. दशकों से यहां रह रहे लोगों का कहना है कि उन्होंने अपनी जीवन यहीं पर बिताया है. इन्हीं घरों में हंसते खेलते वे बड़े हुए हैं. इस बिल्डिंग से उनकी कई यादें जुड़ी हैं. जिसको वह उजड़ने के बाद कैसे भुला पाएंगे?
परिवारों का दर्द: कनॉट प्लेस के मंशाराम भवन में 60 से 70 वर्षों से रहने और अपनी रोजी-रोटी चलाने वाले व्यापारियों का कहना है कि उन्हें इस बारे में आज तक जानकारी नहीं हुई कि इस भवन को कैसे गिरासू घोषित कर दिया. वर्तमान में एलआईसी इस भवन के स्वामी है, जिनके द्वारा सुप्रीम कोर्ट से इसको ध्वस्त करने का आदेश लाया गया.
कुछ व्यापारियों का यह भी कहना है कि जिस तरह के ऐतिहासिक भवनों गिराकर उनमें रहे लोगों को उजाड़ा जा रहा है, उसी तरह उन्हें बसाने की भी योजना होनी चाहिए. 1965 से इस बिल्डिंग में रह रहे बुजुर्ग दंपति का कहना है कि उनका सारा जीवन यहीं पर बीत गया. उम्र के आखिर पड़ाव में उन्हें यहां से हटाया जा रहा है. बच्चे शादीशुदा होने के बाद उनसे दूर हो चुके हैं. जिंदगी के बाकी बचे दिनों में उन्हें इस बात की ही तसल्ली थी जहां उन्होंने सारा जीवन काटा है. वहीं, उनकी आखिरी सांस भी जाएगी. लेकिन जिस तरह से इस भवन के ध्वस्त की तारीख नजदीक आ गई है, इससे उनका दिल बैठ गया है.