देहरादून: कोविड-19 के दौर में गरीबों और प्रवासियों के लिए सरकारी राशन की मदद एक बड़ी राहत के रूप में रही. खाद्य एवं आपूर्ति विभाग ने सस्ते गल्ले या कन्ट्रोल की दुकान पर तो राशन पहुंचाया ही साथ ही मरीजों के खाने की व्यवस्था करने से लेकर प्रवासियों और गरीबों को भी मदद दी. हालांकि, इस दौरान कई शिकायतें भी सामने आईं. ईटीवी भारत ने राशन आपूर्ति को लेकर व्यवस्थाओं और लोगों की राय पर आधारित एक खास रिपोर्ट तैयार की..
उत्तराखंड की 1 करोड़ से ज्यादा की जनसंख्या ने कोरोनाकाल में लॉकडाउन की बंदिशों को सहा. इस दौरान अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए खूब हाथ-पांव भी मारे. लेकिन राहत की बात ये रही कि खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के जरिये सरकार ने लोगों को मुफ्त राशन भी बंटवाया और सस्ते गल्ले की दुकानों पर सब्सिडी युक्त राशन भी मिलता रहा. ईटीवी भारत ने राशन की दुकानों पर इन्हीं मौजूदा व्यवस्थाओं को बारीकी से समझने की कोशिश की.
तीन तरह के कार्डों पर दिया जाता है राशन-
प्रदेश में 23 लाख राशन कार्ड धारक
बता दें, उत्तराखंड में कुल 23 लाख राशन कार्ड होल्डर हैं. इसमें करीब 13 लाख 30 हजार कार्ड NFSA योजना में यानी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और अंत्योदय के हैं. 10 लाख राज्य खाद्य योजना यानी पीले कार्ड धारक हैं. प्रदेश में कोविड-19 के दौरान राशन की दुकानों से लोगों को मुफ्त राशन यानी गेहूं और चावल दिया जा रहा है. ये योजना केवल राष्ट्रीय खाद्य योजना वाले कार्ड धारकों के लिए हैं.
प्रदेश में हर महीने करीब 1.85 लाख कुन्तल गेहूं की जरूरत
योजना के तहत प्रदेश में हर महीने करीब 1.85 लाख कुन्तल गेहूं की जरूरत है, जिसे सस्ते गल्ले की दुकानों में पहुंचा कर यहां से लोगों को वितरित करवाया जा रहा है. लेकिन इस दौरान योजना में लोगों को पारदर्शी तरीके से राशन मिल सके, इसके लिए भी अलग से व्यवस्था की गई है.
राज्य में जिला स्तर पर क्षेत्रीय राशन की दुकानों को लॉटरी के लिए अलग-अलग टीमें गठित की गई हैं. ये टीमें राशन बंटवारे को लेकर सस्ते गल्ले की दुकानों की मॉनिटरिंग करती हैं. इस दौरान दुकानों में मौजूद स्टाफ का भी निरीक्षण किया जाता है.
पारदर्शिता लाने के प्रयास कर रहा है विभाग- जसवंत सिंह कंडारी
जिला आपूर्ति अधिकारी जसवंत सिंह कंडारी ने बताया कि कोविड-19 के दौरान लोगों को सस्ता राशन मिले, इसके लिए खाद्य आपूर्ति विभाग प्रयास में जुटा है. इसमें पारदर्शिता के साथ लोगों तक राशन पहुंचे, इसके भी प्रयास किए जा रहे हैं.
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सरकारी राशन की गुणवत्ता खराब
वहीं, लोगों की मानें तो सरकार की तरफ से राशन तो दिया जा रहा है, लेकिन इसमें गुणवत्ता बेहद खराब है. आम लोगों की मानें तो राशन की दुकानों पर महीनों तक दाल उपलब्ध ही नहीं हो पाती, जबकि सरकार तो हर महीने दाल देने की बात कहती है.
वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि राशन की दुकानों पर जो राशन मिल रहा है, उसे मंत्रियों और विधायकों को भी खिलाया जाना चाहिए, ताकि उन्हें पता चले कि वे जनता को किस गुणवत्ता का राशन बांटवा रहे हैं.
बड़ी बात यह है कि प्रदेश में छिटपुट मामलों को छोड़ दिया जाए तो कहीं भी कोविड-19 के दौरान बड़ा राशन ब्लैक मार्केटिंग का कोई मामला पकड़ में नहीं आया है. हालांकि, हर हफ्ते राशन की मॉनिटरिंग करने वाली टीम को अपनी रिपोर्ट जिला पूर्ति कार्यालय में जमा करनी होती है. राजधानी देहरादून में टीम की तरफ से हर हफ्ते दुकानों के स्टॉक का निरीक्षण करना होता है, जिससे दुकान चलाने वालों पर काफी सख्ती बनी रहती है. इस बात में कोई शक नहीं कि कोविड-19 के दौरान सरकार ने बेहद ज्यादा मात्रा में राशन की खरीद की और राशन की दुकानों के जरिए लोगों तक भी राशन दिया गया, लेकिन अब गुणवत्ता पर उठ रहे सवाल बेहद गंभीर हैं.