देहरादून: जलवायु परिवर्तन, उत्तराखंड ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया का एक वैश्विक मुद्दा है. इसे लेकर समय-समय पर वैज्ञानिक देश को आगाह करते रहे हैं. जलवायु परिवर्तन का असर आम जनजीवन पर भी दिखाई दे रहा है. मुख्य रूप से अगर बात उत्तराखंड की करें तो राज्य में जलवायु परिवर्तन होने की वजह से आपदा आने की संभावना और अधिक बढ़ गई है. प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते राज्य में आपदा जैसे हालात बनते रहे हैं. यही वजह है कि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और पौड़ी गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत ने बीते दिन संसद में नियम 377 के तहत देश के हिमालयी क्षेत्र में हो रहे क्लाइमेट चेंज पर अपना वक्तव्य रखा.
तीरथ सिंह रावत ने संसद में जलवायु परिवर्तन का मुद्दा उठाया : सांसद तीरथ सिंह रावत ने कहा वैश्विक औसत की तुलना में हिमालयी क्षेत्र तेजी से गर्म हो रहे हैं. जिसका असर हिमालयी राज्यों के पर्वतीय क्षेत्रों समेत मैदानी इलाकों में देखा जा रहा है. जिसके चलते काफी वित्तीय नुकसान भी हो रहा है. लिहाजा, सांसद तीरथ सिंह रावत ने संसद में भारत सरकार से आग्रह करते हुए कहा कि उत्तराखंड में हो रहे जलवायु परिवर्तन को प्राकृतिक आपदा घोषित किया जाए. जलवायु परिवर्तन की वजह से वित्तीय बोझ पर पड़ने वाले असर को वहन करने के लिए भारत सरकार, राज्य को विशेष वित्तीय सहायता उपलब्ध करे.
सीएम रहते तीरथ सिंह ने की थी जलवायु बजट की घोषणा: यह कोई पहला मामला नहीं है, जब सांसद तीरथ सिंह रावत ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को उठाया हो, बल्कि, साल 2021 में तात्कालिक सीएम बने तीरथ सिंह रावत ने विश्व पर्यावरण दिवस पर 5 जून को अगले वित्तीय वर्ष से जलवायु बजट शुरू करने की घोषणा की थी, ताकि जलवायु परिवर्तन से संबंधित तमाम मुद्दों का समाधान किया जा सके. कुछ समय बाद ही तीरथ सिंह को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा. जिसके बाद से यह मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया.
जलवायु परिवर्तन से आपदा में बढ़ोत्तरी: उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन की वजह से आपदा में बढ़ोत्तरी देखी जा रही है. जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम चक्र में बड़ा बदलाव हो रहा है. जिसके चलते बेमौसम बरसात के साथ ही अचानक भारी बारिश के चलते प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में आपदा जैसे हालात पैदा हो जाते हैं. यही नहीं भारी बारिश के चलते लैंडस्लाइड पहाड़ों में दरारें बढ़ने जैसी घटनाएं भी बढ़ जाती हैं. इन सबके अलावा, पहाड़ों के स्प्रिंग्स और ग्राउंडवाटर सही ढंग से रिचार्ज भी नहीं हो पाते हैं. उत्तराखंड में पिछले कुछ सालों से खासकर साल 2020 से जलवायु परिवर्तन ने बड़ा बदलाव देखा जा रहा है, जो आने वाले समय में एक बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है.
जलवायु परिवर्तन से किसानों की अजीविका पर बड़ा असर: अत्यधिक बारिश की वजह से न सिर्फ फसलों को बड़ा नुकसान होता है, बल्कि भू कटाव भी एक बड़ी समस्या होती है. ऐसे में फसलों के नुकसान के साथ ही भू कटाव के चलते राज्य सरकार पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ता है. यही नहीं, प्रदेश के किसानों को उर्वरक और भारी मशीनरी उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार तमाम योजनाएं भी संचालित कर रही हैं. ऐसे में जब किसानों की फसल भारी बारिश के चलते बर्बाद हो जाती है, तो उसका नुकसान सरकार को होता है. साथ ही जो छोटे किसान हैं उन किसानों की अजीविका पर भी बड़ा फर्क पड़ता है.
जलवायु परिवर्तन को वैश्विक समस्या बता रहे वैज्ञानिक: वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. कालाचंद साईं ने बताया अभी जलवायु परिवर्तन का असर दिख रहा है, लेकिन इसके इंपैक्ट को स्टडी करने की जरूरत है. उन्होंने कहा जलवायु परिवर्तन का असर तो हो रहा है, लेकिन इसके अलावा चार अन्य फैक्टर्स पर ध्यान देने की जरूरत है. जिसके तहत लैंडस्केप (Landscape), जियोमॉर्फोलॉजी (Geomorphology), एनवायरमेंट डिग्रेडेशन (enviornment degradation) और एंथ्रोपोजेनिक एक्टिविटी (anthropogenic activity) पर भी एक साथ अध्ययन करने की जरूरत है.
अन्य फैक्टर्स पर अध्ययन करने की जरुरत: डॉ. कालाचंद साईं ने बताया प्रदेश में जो आपदा जैसे हालात बन रहे हैं, उसके लिए सिर्फ जलवायु परिवर्तन पर ही फोकस करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि, जब तक जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ अन्य फैक्टर्स पर अध्ययन नहीं करेंगे, तब तक यह स्टडी पूरी नहीं होगी. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कोई क्षेत्र भूस्खलन प्रोन क्षेत्र है, तो वहां पर लैंडस्लाइड किसी एक फैक्टर की वजह से नहीं होता है, बल्कि तमाम फैक्टर्स की वजह से भी भूस्खलन हो सकता है. मुख्य रूप से भारी बारिश होने, एंथ्रोपोजेनिक एक्टिविटी और ग्राउंड वाटर निकलने की वजह से भूस्खलन हो सकता है. ऐसे में सिर्फ जलवायु परिवर्तन पर ही फोकस करने की जरूरत नहीं है.
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जलवायु परिवर्तन से भारी बारिश का सिलसिला बढ़ा: डीएवी पीजी कॉलेज के पर्यावरण विज्ञान प्रोफेसर डॉ. विनीत बिश्नोई ने कहा किसी भी प्राकृतिक घटना की वजह से जान- माल का नुकसान होना आपदा है. जलवायु परिवर्तन होने की वजह से भारी बारिश का सिलसिला बढ़ रहा है. जिसके चलते कुछ समय में ही बहुत ज्यादा बारिश हो जाती है. जिससे भूस्खलन की घटनाएं, बादल फटने की घटना समेत जान माल का नुकसान होता है. ऐसे में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को आपदा के एक कारक के रूप में समझ सकते हैं.
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