बेरीनाग: देवभूमि अतीत से ही ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रही है. जहां उन्होंने अपने तपोबल से आध्यात्म को आत्मसात किया है. लेकिन आज हम आपको भोलेनाथ के ऐसे रहस्यलोक के दर्शन कराने जा रहे हैं. जो अद्भुत, अविश्वसनीय अकल्पनीय है. जिसके दर्शन मात्र से चारों धामों का पुण्य मिलता है.
दिव्य हिमालय की गुफा
हिमालय अपनी दिव्यता, प्राकृतिक सौंदर्य और गुफाओं के लिए भी देश-विदेश में विख्यात है. जहां की गुफाएं आज भी विज्ञान के लिए आश्चर्य बनी हुई हैं. हिमालय की इन्हीं वादियों के बीच एक ऐसी गुफा मौजूद है, जो भगवान शिव के रहस्यलोक को समेटे हुई है. आज हम आपको ऐसी ही गुफा से रूबरू कराने जा रहे हैं जिसके बारे में आप जरूर जानना चाहेंगे. जी हां हम बात कर रहे हैं पाताल भुवनेश्वर गुफा की. जहां गुफा में कभी भगवान शिव दिखाई देते हैं तो कहीं 33 कोटि देवी-देवता महादेव की उपासना करते दिखाई देते हैं. गुफा के अंदर का ये संसार अपने आप में दिव्य और अकल्पनीय है. मान्यता है कि गुफा के दर्शन करने मात्र से ही चारों धामों का पुण्य मिलता है.
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दुनिया भर से दर्शन के लिए आते हैं लोग
सीढ़ियों से उतरकर गुफा की दीवारों में उकरी आकृतियां श्रद्धालुओं की आस्था को प्रगाढ़ करती हैं. जहां हर श्रद्धालु बाबा भोलेनाथ को शीष नवाते दिखाई देता हैं. पाताल भुवनेश्वर गुफा गंगोलीहाट तहसील से करीब 16 किलोमीटर दूर स्थित है. पाताल भुवनेश्वर गुफा में भगवान राम, भगवान शिव और पांडवों से कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं.
गुफा के अंदर कई आकृतियां
यह गुफा विशालकाय पहाड़ी के करीब 90 फीट अंदर है. जहां शिलाओं पर कई देवी-देविताओं की आकृतियां उभरी हुई हैं. पौराणिक मान्यता है कि इस गुफा में भगवान शिव स्वयं विराजमान रहते हैं. जिनकी उपासना करने के देवता यहां पहुंचते हैं. जहां द्वापर युग में पाण्डवों ने यहां चौपड़ खेला तो वहीं त्रेता युग में अयोध्या के राजा ऋतुपर्ण ने हिरण का पीछा करते हुए इस गुफा में पहुंच गए थे. जहां उन्होंने बाबा भोलेनाथ के साथ ही अन्य देवताओं के साक्षात दर्शन किए थे.
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चार धाम से गुफा का कनेक्शन
इस गुफा का चार धामों से भी खास कनेक्शन भी है. पुराणों के अनुसार उत्तराखंड के पाताल भुवनेश्वर के अलावा कोई ऐसा स्थान नहीं है, जहां एक साथ चारों धाम के दर्शन होते हों. पाताल भुवनेश्वर गुफा में केदारनाथ, बदरीनाथ और अमरनाथ के दर्शन भी होते हैं. गुफा के चारधामों में जैसे भगवानों के लिंग है वैसे ही यहां पर बने हुए हैं जिन्हें साफ देखा जा सकता है.
शेषनाग के फन पर ब्रह्मांड
साथ ही गुफा का चार युगों से जुड़ी काफी रोचक पत्थर और द्वार बने हुए हैं. इनमें से एक पत्थर जिसे कलियुग का प्रतीक माना जाता है, वह धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है. माना जाता है कि जिस दिन यह कलियुग का प्रतीक पत्थर दीवार से टकरा जायेगा उस दिन कलियुग का अंत हो जाएगा. वहीं इस गुफा के अंदर शेषनाग फन फैलाए ब्रह्मांड को अपने सिर पर लिए दिखाई देते हैं.
शिव की जटाओं से निकली गंगा
वहीं इस गुफा के अंदर भक्त शेषनाग की रीड पर चलते हैं. आगे चलकर ऐरावत हाथी के दर्शन होते हैं. उससे आगे चलकर भगवान शिव की जटाएं देखने को मिलती है जहां गंगाधर का श्रृंगार मां गंगा करती रहती है. मान्यता है कि गुफा में भगवान गणेश के कटे मस्तक के पिण्डी रूप में दर्शन होते हैं. यही नहीं, ब्रह्मकमल से भगवान गणेश के मस्तक पर दिव्य बूंदें गिरती रहती हैं.
गुफा के अंदर कालभैरव की जीभ
गुफा के अंदर कालभैरव की जीभ से लार टपकती रहती है. गुफा के अन्दर बढ़ते हुए छत से गाय के थन की आकृति नजर आती है. यह आकृति कामधेनु गाय का थन माना जाता है. मान्यता है कि देवताओं के समय में इस थन से दुग्ध धारा बहती थी. कलियुग में अब दूध के बदले इससे पानी टपक रहा है. गुफा के अंदर मुड़ी गर्दन वाला हंस एक कुंड के ऊपर बैठा दिखाई देता है.
गुफा के अंदर भगवान शिव की पिण्डी
माना जाता है कि कलियुग में जगद्गुरु शंकराचार्य का 722 ई. के आसपास जब इस गुफा से साक्षत्कार हुआ तो उन्होंने मंदिर के अंदर स्थित शिवलिंग को तांबे से बंद कर दिया था, क्योंकि इस शिवलिंग में इतना तेज था कि कोई भी व्यक्ति इसे नग्न आंखों से नहीं देख सकता है. इसके बाद जाकर कहीं चंद राजाओं ने इस गुफा को खोजा था.