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पंतनगर विश्वविद्यालय की रंग लाई मेहनत, एक बार फिर खेतों में लहलहाएगी दून बासमती

दून बासमती की दुनिया में एक अलग पहचान है. इसकी पहचान को बनाए रखने के लिए पंतनगर विश्वविद्यालय बीते तीन साल से इस पर काम कर रहा था. जिसमें उसे सफलता मिली.

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Published : Oct 9, 2019, 7:50 PM IST

दून बासमती

देहरादून: देश-विदेश में अपनी खुशबू के लिए मशूहर देहरादून का प्रसिद्ध बासमती एक बार फिर खेतों में लहलहाती हुई दिखाई देगी. गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर ने दून बासमती का जैविक प्रजनक बीज (सीड) तैयार कर लिया है. इस बीज को ओपन मार्केट में एक निजी कंपनी को उपलब्ध करवा दिया गया है.

दुनिया में अपनी अलग पहचान रखने वाले दून बासमती की खुशबू धीरे-धीरे खत्म होता जा रही थी. दून बासमती की खुशबू को बचाए रखने के लिए पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय इस पर पिछले तीन सालों से काम कर रहा था. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बासमती (धान) का 'टाइप थ्री' जैविक बीज तैयार कर लिया है.

पढ़ें- पिथौरागढ़ से पहली फ्लाइट पहुंचेगी हिंडन एयरपोर्ट, 11 अक्टूबर से होगी सेवा शुरू

विश्वविद्यालय ने प्रथम चरण में 10 क्विंटल तैयार किया है, जिसे निजी कंपनी को दे दिया गया है. जिससे फिलहाल करीब 350 हेक्टेयर कृषि भूमि पर दून बासमती का उत्पादन हो सकेगा. इसके बाद जैसे-जैसे बीज की डिमांड आएगी उसी हिसाब से विश्वविद्यालय बीजों को तैयार किया जाएगा.

पढ़ें- ऐसे में कैसे स्वच्छ होगा देश, विकास भवन के पास ही लगा गंदगी का अंबार

गौरतलब है कि बीज प्रमाणीकरण कंपनियों की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार साल 1981 तक देहरादून जिले में करीब 6000 एकड़ कृषि भूमि में बासमती की पैदावार हुआ करती थी, लेकिन साल 1990 में यह घटकर 200 एकड़ रह गई. साल 2010 तक आते-आते बासमती की पैदावार मात्र 55 एकड़ में सिमट कर रह गई. इस समय मात्र 11 एकड़ कृषि भूमि पर ही दून बासमती उगाई जा रही है. इसमें भी टाइप थ्री दून बासमती की पैदावार काफी कम है.

देहरादून: देश-विदेश में अपनी खुशबू के लिए मशूहर देहरादून का प्रसिद्ध बासमती एक बार फिर खेतों में लहलहाती हुई दिखाई देगी. गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर ने दून बासमती का जैविक प्रजनक बीज (सीड) तैयार कर लिया है. इस बीज को ओपन मार्केट में एक निजी कंपनी को उपलब्ध करवा दिया गया है.

दुनिया में अपनी अलग पहचान रखने वाले दून बासमती की खुशबू धीरे-धीरे खत्म होता जा रही थी. दून बासमती की खुशबू को बचाए रखने के लिए पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय इस पर पिछले तीन सालों से काम कर रहा था. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बासमती (धान) का 'टाइप थ्री' जैविक बीज तैयार कर लिया है.

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विश्वविद्यालय ने प्रथम चरण में 10 क्विंटल तैयार किया है, जिसे निजी कंपनी को दे दिया गया है. जिससे फिलहाल करीब 350 हेक्टेयर कृषि भूमि पर दून बासमती का उत्पादन हो सकेगा. इसके बाद जैसे-जैसे बीज की डिमांड आएगी उसी हिसाब से विश्वविद्यालय बीजों को तैयार किया जाएगा.

पढ़ें- ऐसे में कैसे स्वच्छ होगा देश, विकास भवन के पास ही लगा गंदगी का अंबार

गौरतलब है कि बीज प्रमाणीकरण कंपनियों की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार साल 1981 तक देहरादून जिले में करीब 6000 एकड़ कृषि भूमि में बासमती की पैदावार हुआ करती थी, लेकिन साल 1990 में यह घटकर 200 एकड़ रह गई. साल 2010 तक आते-आते बासमती की पैदावार मात्र 55 एकड़ में सिमट कर रह गई. इस समय मात्र 11 एकड़ कृषि भूमि पर ही दून बासमती उगाई जा रही है. इसमें भी टाइप थ्री दून बासमती की पैदावार काफी कम है.

Intro:देहरादून- प्रदेश के किसान अब आसानी से देश-विदेश में अपनी अलग पहचान रखने वाली दून बासमती की खेती कर सकेंगे । दरअसल गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर ने दून बासमती का जैविक प्रजनक बीज तैयार कर लिया है । वहीं इस बीज को ओपन मार्केट में एक निजी कंपनी को भी उपलब्ध करवा दिया गया है ।

बता दे की गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय ने 3 सालों के शोध के बाद बासमती धान का 'टाइप थ्री' जैविक बीज तैयार किया है । ऐसे में प्रथम प्रथम चरण में 10 क्विंटल बीज निजी कंपनी को दे दिया गया है । जिससे फिलहाल करीब साढ़ें 300 हेक्टेयर कृषि भूमि में दून बासमती का उत्पादन हो सकेगा । इसके बाद जैसे- जैसे बीज की डिमांड आएगी । वैसे-वैसे ही विश्वविद्यालय प्रमाणिक सरकार बीज निगम और अन्य निजी बीज कंपनियों को बीज उपलब्ध करवाती रहेगी ।




Body:गौरतलब है कि बीज प्रमाणीकरण कंपनियों की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार साल 1981 तक देहरादून जिले में 6000 एकड़ कृषि भूमि में बासमती की पैदावार हुआ करती थी । लेकिन साल 1990 में यह घटकर 200 एकड़ रह गई । वही बात साल 2010 की करें तो साल 2010 आते-आते यह केवल 55 एकड़ में सिमट कर रह गई । वहीं अब यानी साल 2019 में मात्र 11 एकड़ कृषि भूमि में ही दून बासमती उगाई जा रही है। इसमें भी टाइप थ्री दून बासमती की पैदावार काफी कम है ।


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