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उत्तराखंड में अब नहीं दिखेगी 'गांधी पुलिस'! धामी सरकार के इस फैसले से पुलिस को मिलेगा और 'बल' - पटवारी सिस्टम

अंकिता की मौत के बाद आखिरकार उत्तराखंड सरकार भी नींद से जागी और बिट्रिश राज से चले आ रहे 200 साल पुराने राजस्व पुलिस व्यवस्था को खत्म (revenue policing system) करने का निर्णय लिया (Uttarakhand cabinet decision) और पूरे प्रदेश में रेगुलर पुलिस सिस्टम लागू करने का फैसला लिया. सरकार के इस फैसले पर उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी एबी लाल (former DGP AB Lal) से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की और जाना की आखिर प्रदेश में राजस्व पुलिस व्यवस्था खत्म (abolition revenue policing) करना क्यों जरूरी था. कैसे अपराधी इस सिस्टम का फायदा उठा रहे थे.

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Published : Oct 12, 2022, 8:57 PM IST

Updated : Oct 12, 2022, 10:15 PM IST

देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अध्यक्षता में बुधवार को कैबिनेट बैठक हुई. बैठक में कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए है, जिसमें एक प्रदेश में पिछले 200 साल से चली आ रही राजस्व पुलिस व्यवस्था यानी पटवारी सिस्टम (revenue policing system) को खत्म करने का (cabinet decision on abolition revenue policing) है. सरकार ने कैबिनेट बैठक में निर्णय लिया (Uttarakhand cabinet decision) है कि चरणबद्ध तरीके से राजस्व पुलिस के क्षेत्र में आने वाले इलाकों को रेगुलर पुलिस को सौंपा जाएगा और आने वाले वक्त में राजस्व पुलिस व्यवस्था को पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा.

सरकार की माने तो पहले चरण में वो इलाके होंगे, जहां पर पर्यटक गतिविधियां ज्यादा है. इसीलिए सरकार ने पहले चरण में 6 थाने और 20 पुलिस चौकियां खोलने का निर्णय लिया है. हालांकि इसमें कितना समय लगेगा ये कह पाना अभी मुश्किल है.

धामी सरकार के इस फैसले से पुलिस को मिलेगा और 'बल'
पढ़ें- कैबिनेट फैसले: राजस्व पुलिस पर बड़ा निर्णय, महिला आरक्षण पर अध्यादेश, न्यायिक सेवा संशोधन नियमावली को भी मंजूरी

बता दें कि साल 2018 के अपने एक फैसले में उत्तराखंड हाईकोर्ट भी राज्य सरकार को आदेश दे चुका है कि प्रदेश में राजस्व पुलिस सिस्टम को खत्म कर रेगुलर पुलिस को जिम्मेदारी दी जाए, लेकिन अभीतक राज्य सरकार उत्तराखंड हाईकोर्ट के इस फैसले पर अमल नहीं कर पाई थी, लेकिन अंकिता भंडारी हत्याकांड के बाद राजस्व पुलिस व्यवस्था पर जिस तरह से सवाल खड़े हुए उसके बाद दबाव में ही सही, लेकिन सरकार ने इसमें बदलाव करने का मन बनाया.

200 साल पुरानी व्यवस्था: राजस्व पुलिस व्यवस्था को खत्म करने के क्या मायने हैं और इसका प्रदेश पर क्या प्रभाव पड़ेगा, ये सब समझने के लिए ईटीवी भारत ने उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी एबी लाल से खास बातचीत की. पूर्व डीजीपी एबी लाल (former DGP AB Lal) ने कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में बिट्रिश राज से चली आ रही करीब 200 साल पुरानी राजस्व पुलिस व्यवस्था को खत्म करना ऐतिहासिक फैसला है.
पढ़ें- अंकिता की मौत के बाद नींद से जागी सरकार, 160 साल पुराने 'सिस्टम' को खत्म करने की तैयारी

पहाड़ों में क्राइम बढ़ा: एबी लाल ने कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में अब स्थिति पहले जैसे नहीं है. बढ़ते विकास के साथ पहाड़ों में क्राइम का ग्राफ भी बढ़ा हैं, जिस पर अंकुश लगा पाने में राजस्व पुलिस नाकाम साबित हो रही थी. ऐसे में बढ़ते क्राइम ग्राफ पर लगाम के लिए सरकार का ये फैसला स्वागत योग्य है. एबी लाल की माने तो बिट्रिश शासन काल से ही राजस्व पुलिस बिना संसाधनों और बगैर प्रशिक्षण की काम कर रही थी, जो सिर्फ अंग्रेजों की गुलामी को ही कायम रखने जैसा था.

अपराधी उठाते हैं फायदा: राजस्व पुलिस व्यवस्था में जो खामियां थी, उसका फायदा अक्सर अपराधी उठाते हैं. दरअसल, छोटे-मोटे मामलों में राजस्व पुलिस कार्रवाई कर देती थी, लेकिन हाईप्रोफाइल केस और संगीन अपराधों की विवेचना करने में राजस्व पुलिस अक्सर फेल साबित हुई है. क्योंकि न तो राजस्व पुलिस के पास संसाधन होते है और न ही मैन पवार. साथ ही तकनीकि प्रशिक्षण का अभाव अलग से. ऐसे में होता ये था कि राजस्व पुलिस पुलिस से मामले रेगुलर पुलिस को ट्रांसफर होता था. ऐसे में अपराधी को सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने और खुद को बचाने का समय मिल जाता था.

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नए थाने और चौकियों की लिस्ट

शुरुआती चुनौतियां: राज्य सरकार ने राजस्व पुलिस व्यवस्था को खत्म कर रेगुलर पुलिस लागू करने का जो फैसला लिया है, उसमें सरकार के सामने कई तरह की चुनौतियां भी सामने आएंगी. हालांकि ये चुनौतियों शुरुआती दौर में होगी. बाद में धीरे-धीरे रेगुलर पुलिस का ढांचा पूरे प्रदेश में विकसित हो जाएगा.

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नए थाने और चौकियों की लिस्ट
पढ़ें- अंकिता भंडारी हत्याकांड की फास्ट ट्रैकिंग होगी, राजस्व पुलिस की व्यवस्था खत्म करने की सिफारिश

पूर्व डीजीपी एबी लाल की माने तो राजस्व क्षेत्र में रेगुलर पुलिस का इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के लिए केंद्र से वित्तीय सहायता जरूरी है. इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ मैन पावर की भी खासी जरूरत पड़ेगी. इससे प्रदेश पर वित्तिय भार पड़ेगा. जबकि उत्तराखंड की पहले से ही वित्तिय स्थिति काफी खराब है. इसके अलावा कुछ इलाकों में राजनीतिक वजह से रेगुलर पुलिस का विरोध भी किया जाएगा. क्योंकि रेगुलर पुलिस के हाथों में काम आने से राजनेता अपना वर्चस्व पहले की तरह कायम नहीं रख पाएंगे.

30 से 40 थाने खोलने की जरूरत: पूर्व डीजीपी एबी लाल ने बताया कि पूरे प्रदेश में रेगुलर पुलिस सिस्टम को लागू करने के लिए 30 से 40 थाने और 100 से ज्यादा पुलिस चौकियां खोलने की जरूरत पड़ेगा. पूर्व डीजीपी एबी लाल के अलावा ईटीवी भारत ने उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा से भी इस मुद्दे पर बात की है. उन्होंने बताया कि राजस्व पुलिस व्यवस्था उस दौर की है कि जब लोगों घरों में ताले भी नहीं लगाते थे, लेकिन अब वक्त के साथ राजस्व पुलिस व्यवस्था को खत्म करने की जरूरत महसूस की जाने लगी थी. और सरकार ने ये अच्छा फैसला लिया है.

क्यों कहते हैं गांधी पुलिस: दरअसल राजस्व पुलिस व्यवस्था के अंतर्गत पटवारी के पास अपराधियों से मुकाबले के लिए अस्त्र-शस्त्र के नाम पर महज एक लाठी ही होती है और पुलिस बल के नाम पर एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी. इसीलिए यहां राजस्व पुलिस को गांधी पुलिस भी कहा जाता है.

देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अध्यक्षता में बुधवार को कैबिनेट बैठक हुई. बैठक में कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए है, जिसमें एक प्रदेश में पिछले 200 साल से चली आ रही राजस्व पुलिस व्यवस्था यानी पटवारी सिस्टम (revenue policing system) को खत्म करने का (cabinet decision on abolition revenue policing) है. सरकार ने कैबिनेट बैठक में निर्णय लिया (Uttarakhand cabinet decision) है कि चरणबद्ध तरीके से राजस्व पुलिस के क्षेत्र में आने वाले इलाकों को रेगुलर पुलिस को सौंपा जाएगा और आने वाले वक्त में राजस्व पुलिस व्यवस्था को पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा.

सरकार की माने तो पहले चरण में वो इलाके होंगे, जहां पर पर्यटक गतिविधियां ज्यादा है. इसीलिए सरकार ने पहले चरण में 6 थाने और 20 पुलिस चौकियां खोलने का निर्णय लिया है. हालांकि इसमें कितना समय लगेगा ये कह पाना अभी मुश्किल है.

धामी सरकार के इस फैसले से पुलिस को मिलेगा और 'बल'
पढ़ें- कैबिनेट फैसले: राजस्व पुलिस पर बड़ा निर्णय, महिला आरक्षण पर अध्यादेश, न्यायिक सेवा संशोधन नियमावली को भी मंजूरी

बता दें कि साल 2018 के अपने एक फैसले में उत्तराखंड हाईकोर्ट भी राज्य सरकार को आदेश दे चुका है कि प्रदेश में राजस्व पुलिस सिस्टम को खत्म कर रेगुलर पुलिस को जिम्मेदारी दी जाए, लेकिन अभीतक राज्य सरकार उत्तराखंड हाईकोर्ट के इस फैसले पर अमल नहीं कर पाई थी, लेकिन अंकिता भंडारी हत्याकांड के बाद राजस्व पुलिस व्यवस्था पर जिस तरह से सवाल खड़े हुए उसके बाद दबाव में ही सही, लेकिन सरकार ने इसमें बदलाव करने का मन बनाया.

200 साल पुरानी व्यवस्था: राजस्व पुलिस व्यवस्था को खत्म करने के क्या मायने हैं और इसका प्रदेश पर क्या प्रभाव पड़ेगा, ये सब समझने के लिए ईटीवी भारत ने उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी एबी लाल से खास बातचीत की. पूर्व डीजीपी एबी लाल (former DGP AB Lal) ने कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में बिट्रिश राज से चली आ रही करीब 200 साल पुरानी राजस्व पुलिस व्यवस्था को खत्म करना ऐतिहासिक फैसला है.
पढ़ें- अंकिता की मौत के बाद नींद से जागी सरकार, 160 साल पुराने 'सिस्टम' को खत्म करने की तैयारी

पहाड़ों में क्राइम बढ़ा: एबी लाल ने कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में अब स्थिति पहले जैसे नहीं है. बढ़ते विकास के साथ पहाड़ों में क्राइम का ग्राफ भी बढ़ा हैं, जिस पर अंकुश लगा पाने में राजस्व पुलिस नाकाम साबित हो रही थी. ऐसे में बढ़ते क्राइम ग्राफ पर लगाम के लिए सरकार का ये फैसला स्वागत योग्य है. एबी लाल की माने तो बिट्रिश शासन काल से ही राजस्व पुलिस बिना संसाधनों और बगैर प्रशिक्षण की काम कर रही थी, जो सिर्फ अंग्रेजों की गुलामी को ही कायम रखने जैसा था.

अपराधी उठाते हैं फायदा: राजस्व पुलिस व्यवस्था में जो खामियां थी, उसका फायदा अक्सर अपराधी उठाते हैं. दरअसल, छोटे-मोटे मामलों में राजस्व पुलिस कार्रवाई कर देती थी, लेकिन हाईप्रोफाइल केस और संगीन अपराधों की विवेचना करने में राजस्व पुलिस अक्सर फेल साबित हुई है. क्योंकि न तो राजस्व पुलिस के पास संसाधन होते है और न ही मैन पवार. साथ ही तकनीकि प्रशिक्षण का अभाव अलग से. ऐसे में होता ये था कि राजस्व पुलिस पुलिस से मामले रेगुलर पुलिस को ट्रांसफर होता था. ऐसे में अपराधी को सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने और खुद को बचाने का समय मिल जाता था.

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नए थाने और चौकियों की लिस्ट

शुरुआती चुनौतियां: राज्य सरकार ने राजस्व पुलिस व्यवस्था को खत्म कर रेगुलर पुलिस लागू करने का जो फैसला लिया है, उसमें सरकार के सामने कई तरह की चुनौतियां भी सामने आएंगी. हालांकि ये चुनौतियों शुरुआती दौर में होगी. बाद में धीरे-धीरे रेगुलर पुलिस का ढांचा पूरे प्रदेश में विकसित हो जाएगा.

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नए थाने और चौकियों की लिस्ट
पढ़ें- अंकिता भंडारी हत्याकांड की फास्ट ट्रैकिंग होगी, राजस्व पुलिस की व्यवस्था खत्म करने की सिफारिश

पूर्व डीजीपी एबी लाल की माने तो राजस्व क्षेत्र में रेगुलर पुलिस का इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के लिए केंद्र से वित्तीय सहायता जरूरी है. इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ मैन पावर की भी खासी जरूरत पड़ेगी. इससे प्रदेश पर वित्तिय भार पड़ेगा. जबकि उत्तराखंड की पहले से ही वित्तिय स्थिति काफी खराब है. इसके अलावा कुछ इलाकों में राजनीतिक वजह से रेगुलर पुलिस का विरोध भी किया जाएगा. क्योंकि रेगुलर पुलिस के हाथों में काम आने से राजनेता अपना वर्चस्व पहले की तरह कायम नहीं रख पाएंगे.

30 से 40 थाने खोलने की जरूरत: पूर्व डीजीपी एबी लाल ने बताया कि पूरे प्रदेश में रेगुलर पुलिस सिस्टम को लागू करने के लिए 30 से 40 थाने और 100 से ज्यादा पुलिस चौकियां खोलने की जरूरत पड़ेगा. पूर्व डीजीपी एबी लाल के अलावा ईटीवी भारत ने उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा से भी इस मुद्दे पर बात की है. उन्होंने बताया कि राजस्व पुलिस व्यवस्था उस दौर की है कि जब लोगों घरों में ताले भी नहीं लगाते थे, लेकिन अब वक्त के साथ राजस्व पुलिस व्यवस्था को खत्म करने की जरूरत महसूस की जाने लगी थी. और सरकार ने ये अच्छा फैसला लिया है.

क्यों कहते हैं गांधी पुलिस: दरअसल राजस्व पुलिस व्यवस्था के अंतर्गत पटवारी के पास अपराधियों से मुकाबले के लिए अस्त्र-शस्त्र के नाम पर महज एक लाठी ही होती है और पुलिस बल के नाम पर एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी. इसीलिए यहां राजस्व पुलिस को गांधी पुलिस भी कहा जाता है.

Last Updated : Oct 12, 2022, 10:15 PM IST
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