देहरादून: चैत के महीने में देवभूमि में उगने वाले इस फल के कई मुरीद हैं. प्रकृति भी काफल के फलने का संकेत खुद-ब-खुद देने लगती है. कहा जाता है कि चैत के महीने में जब काफल पक कर तैयार होता है तो एक चिड़िया 'काफल पाको मैं नि चाख्यो' कहती है, जिसका अर्थ है कि काफल पक गए, मैंने नहीं चखे. वहीं, इन दिनों देहरादून की सड़कों पर भी आपको यह फल बिकता दिख जाएगा, जिसका आप खुलकर लुत्फ उठा सकते हैं.
पढ़ें- जानकीचट्टी में घोड़ा-खच्चर चालकों ने किया हंगामा, जिला पंचायत कार्यालय में की तोड़फोड़
काफल बेचने वाले व्यापारियों का कहना है कि स्थानीय निवासियों के साथ-साथ टूरिस्ट भी काफल की खूब खरीदारी कर रहे हैं. हालांकि, जंगलों से इन्हें तोड़ा जाता है. जिस वजह से देहरादून पहुंचने तक इनकी कीमत काफी बढ़ जाती है. इस समय 60 से 80 रुपये पाव काफल बिक रहा है.
काफल खाने में तो स्वादिष्ट है ही साथ ही कई औषधीय गुणों से भी भरपूर है. आयुर्वेद में काफल को भूख की अचूक दवा बताया गया है. साथ ही मधुमेह रोगियों के लिए भी यह किसी रामबाण से कम नहीं है. इसके अलावा विभिन्न शोधकर्ता काफल में एंटी ऑक्सीडेंट गुणों के होने की पुष्टि कर चुके हैं.