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दूनवासी भी उठा सकते हैं काफल का लुत्फ, ये नहीं खाया तो क्या खाया

देहरादून की सड़कों पर अब आप काफल का स्वाद चख सकते हैं. हालांकि, पहाड़ी इलाकों से यहां आने के बाद इसकी कीमत थोड़ी ज्यादा है.

देहरादून की सड़कों पर बिक रहा काफल
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Published : May 19, 2019, 10:29 PM IST

देहरादून: चैत के महीने में देवभूमि में उगने वाले इस फल के कई मुरीद हैं. प्रकृति भी काफल के फलने का संकेत खुद-ब-खुद देने लगती है. कहा जाता है कि चैत के महीने में जब काफल पक कर तैयार होता है तो एक चिड़िया 'काफल पाको मैं नि चाख्यो' कहती है, जिसका अर्थ है कि काफल पक गए, मैंने नहीं चखे. वहीं, इन दिनों देहरादून की सड़कों पर भी आपको यह फल बिकता दिख जाएगा, जिसका आप खुलकर लुत्फ उठा सकते हैं.

पढ़ें- जानकीचट्टी में घोड़ा-खच्चर चालकों ने किया हंगामा, जिला पंचायत कार्यालय में की तोड़फोड़

काफल बेचने वाले व्यापारियों का कहना है कि स्थानीय निवासियों के साथ-साथ टूरिस्ट भी काफल की खूब खरीदारी कर रहे हैं. हालांकि, जंगलों से इन्हें तोड़ा जाता है. जिस वजह से देहरादून पहुंचने तक इनकी कीमत काफी बढ़ जाती है. इस समय 60 से 80 रुपये पाव काफल बिक रहा है.

काफल खाने में तो स्वादिष्ट है ही साथ ही कई औषधीय गुणों से भी भरपूर है. आयुर्वेद में काफल को भूख की अचूक दवा बताया गया है. साथ ही मधुमेह रोगियों के लिए भी यह किसी रामबाण से कम नहीं है. इसके अलावा विभिन्न शोधकर्ता काफल में एंटी ऑक्सीडेंट गुणों के होने की पुष्टि कर चुके हैं.

देहरादून: चैत के महीने में देवभूमि में उगने वाले इस फल के कई मुरीद हैं. प्रकृति भी काफल के फलने का संकेत खुद-ब-खुद देने लगती है. कहा जाता है कि चैत के महीने में जब काफल पक कर तैयार होता है तो एक चिड़िया 'काफल पाको मैं नि चाख्यो' कहती है, जिसका अर्थ है कि काफल पक गए, मैंने नहीं चखे. वहीं, इन दिनों देहरादून की सड़कों पर भी आपको यह फल बिकता दिख जाएगा, जिसका आप खुलकर लुत्फ उठा सकते हैं.

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काफल बेचने वाले व्यापारियों का कहना है कि स्थानीय निवासियों के साथ-साथ टूरिस्ट भी काफल की खूब खरीदारी कर रहे हैं. हालांकि, जंगलों से इन्हें तोड़ा जाता है. जिस वजह से देहरादून पहुंचने तक इनकी कीमत काफी बढ़ जाती है. इस समय 60 से 80 रुपये पाव काफल बिक रहा है.

काफल खाने में तो स्वादिष्ट है ही साथ ही कई औषधीय गुणों से भी भरपूर है. आयुर्वेद में काफल को भूख की अचूक दवा बताया गया है. साथ ही मधुमेह रोगियों के लिए भी यह किसी रामबाण से कम नहीं है. इसके अलावा विभिन्न शोधकर्ता काफल में एंटी ऑक्सीडेंट गुणों के होने की पुष्टि कर चुके हैं.

Intro:देहरादून- पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड के जंगलों में होने वाले स्वादिष्ट और रसीले फल ' काफल ' का स्वाद यदि आप भी चखना चाहते हैं तो इसके लिए आपको पहाड़ों का रुख करने की जरूरत नहीं है। आप राजधानी देहरादून मे भी लाल रंग के दिखने वाले स्वादिष्ट काफल का स्वाद चख सकते हैं ।




Body:बता दें कि इन दिनों राजधानी की सड़कों में जगह-जगह ठेलियों में काफल बेचे जा रहे हैं । जिन्हें स्थानीय निवासियों के साथ ही बाहर से आने वाले टूरिस्ट खूब खरीद रहे हैं । स्थानीय व्यापारियों के मुताबिक स्थानीय निवासियों के साथ ही बाहर से आने वाले टूरिस्ट काफल की खूब खरीदारी कर रहे हैं । हालांकि मसूरी के दूरदराज के जंगलों से इन्हें तोड़ा जाता है । जिसकी वजह से देहरादून पहुंचने तक इनकी कीमत काफी बढ़ जाती है। वर्तमान में 60 से 80 रुपए पाव की दर पर इन्हें बेचा जा रहा है।

बता दें कि उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों के जंगलों में पैदा होने वाला फल ' काफल ' खाने में स्वादिष्ट होने के साथ ही कई औषधीय गुणों से भरपूर है । आयुर्वेद में काफल को भूख की अचूक दवा बताया गया है । साथ ही मधुमेह रोगियों के लिए भी यह किसी रामबाण से कम नहीं है । इसके अलावा विभिन्न शोधकर्ता काफल में एंटी ऑक्सीडेंट गुणों के होने की भी पुष्टि कर चुके हैं।


Conclusion:बरहाल कभी पहाड़ों का एक जंगली फल माने जाने वाला काफल आज गर्मी के मौसम में पहाड़ के ग्रामीण परिवारों की रोजी रोटी का जरिया बन चुका है। पहाड़ के ग्रामीण दूरदराज़ के जंगलों से काफल तोड़कर मैदानी इलाकों के व्यापारियों को बेच रहे हैं जिससे उन्हें अच्छा खासा मुनाफा हो रहा है।
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