ETV Bharat / state

12 साल से ठंडे बस्ते में ग्लेशियर की स्टडी रिपोर्ट, चमोली ने भुगता खामियाजा

उत्तराखंड में ग्लेशियरों को लेकर तैयार स्टडी रिपोर्ट 12 साल से उपेक्षित है. इसका खामियाजा चमोली ने भुगता है.

author img

By

Published : Feb 15, 2021, 7:54 PM IST

study-report-prepared-on-glaciers
12 साल से ठंडे बस्ते में ग्लेशियर की स्टडी रिपोर्ट

देहरादून: चमोली आपदा के बाद उत्तराखंड सरकार प्रदेश में आपदा के संभावित खतरों को लेकर गंभीर नजर आ रही है. लेकिन बीते समय प्रदेश की सत्ता में रहीं सभी सत्ताधारी पार्टियों द्वारा ग्लेशियर के खतरे को लेकर शोधकर्ताओं की बातों को किस कदर नजरअंदाज किया गया है, इसकी बानगी 2008 में तैयार की गई एक रिपोर्ट बयां करती है.

12 साल से ठंडे बस्ते में ग्लेशियर की स्टडी रिपोर्ट.

उत्तराखंड में ग्लेशियर की स्टडी को लेकर 2008 में वैज्ञानिकों द्वारा एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर कुछ चिंताएं जाहिर की गईं थीं. अगर समय पर उत्तराखंड सरकार उन पर थोड़ा भी संजीदगी दिखाती तो आज यह हालात नहीं देखने पड़ते.

क्या थी 2008 की रिपोर्ट

2008 में सरकार द्वारा उत्तराखंड के सभी ग्लेशियरों पर ग्लोबल वार्मिंग के असर के साथ-साथ ग्लेशियरों से प्रभावित होने वाले सभी क्षेत्रों पर एक विस्तृत शोध करने के लिए समिति बनाई गई थी. भाजपा के ही कार्यकाल में बनी इस समिति के अध्यक्ष उस समय वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर डॉक्टर बीआर अरोड़ा थे. इस समिति के सदस्य सचिव मौजूदा आपदा प्रबंधन के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पीयूष रौतेला थे. इस समिति द्वारा हिमालय क्षेत्र के उत्तराखंड में आने वाले सभी ग्लेशियरों और उन पर पड़ रहे प्रभाव और भविष्य के जोखिमों को लेकर एक विस्तृत शोध रिपोर्ट तैयार की थी गई थी. रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी. लेकिन आज तक वह रिपोर्ट सचिवालय में धूल फांक रही है.

ये भी पढ़ें: जोशीमठ आपदा: प्रदेश की ये हैं बड़ी आपदाएं, जिसने जनमानस को हिलाकर रख दिया

समिति द्वारा दिए गए सुझाव

  • समिति ने कहा था कि ग्लेशियरों से आने वाले जोखिम से प्रभावित होने वाले गांवों का चिह्नीकरण होना चाहिए.
  • ग्लेशियरों के पिघलने से कम होते ग्लेशियरों और जलवायु परिवर्तन संबंधित डाटा तैयार किए जाने चाहिए.
  • तैयार किए गए डाटा से बाढ़ और ग्लेशियरों के पानी के बहाव का आकलन होना चाहिए और इसकी तुलना करके इसमें आने वाले अंतर को भी समझना चाहिए.
  • प्रदेश में स्थापित होने वाली सभी जलविद्युत परियोजनाओं के लिए नदियों के उद्गम क्षेत्र में मौसम केंद्र स्थापित होने थे. जिससे मौसम संबंधित आंकड़ों का निरंतर विश्लेषण होना था.
  • भागीरथी घाटी के केदार गंगा और केदार बामक के आसपास की ग्लेशियर झीलों और उससे आने वाले पानी पर लगातार मॉनिटरिंग के लिए कहा गया था.
  • स्कूल और कॉलेजों में ग्लेशियरों से जुड़ी आपदाओं और दुर्घटनाओं के प्रति बच्चों को और स्थानीय लोगों को जागरूक करने के लिए कहा गया था.
  • गंगोत्री और सतोपंथ ग्लेशियर में मानवीय आवाजाही को लेकर रोक लगाने के लिए कहा गया था और इसके लिए पर्यावरण संरक्षण कानून 1986 के प्रावधानों की मदद ले जाने की बात कही गई थी.
  • ग्लेशियरों को सूचीबद्ध किए जाने को कहा गया था, ताकि भविष्य में उन पर शोध किया जाए और उनकी पहचान की जा सके.
  • ग्लेशियरों पर सर्दी और गर्मी के मौसम में मैपिंग का आकलन और कवर पैटर्न का आकलन किया जाए.
  • माउंटिंग सिस्टम मजबूत हो पर्यावरण और बर्फ ग्लेशियर झीलों उनके बनने से संभावित बाढ़ की मॉनिटरिंग करने का सुझाव.
  • ग्लेशियरों के सिकुड़ने और उनके मॉस वॉल्यूम में हो रहे बदलाव के अलावा स्नोलाइन की मॉनिटरिंग की जाए, ताकि पर्यावरण की बेहतर समझ पैदा हो सके.

इतनी तगड़ी रिपोर्ट होने के बाद भी किसी ने इस पर ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी. अब चमोली आपदा में जब जन और धन का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है तो सरकार इसमें सुझाए इंतजामों को ही अमल में लाने पर लगी है. अगर पहले ही इस रिपोर्ट को पढ़कर, समझकर कदम उठाये गए होते तो आज चमोली आपदा में अपने सगे-संबंधियों को खोने वाले लोग शोकाकुल नहीं होते.

देहरादून: चमोली आपदा के बाद उत्तराखंड सरकार प्रदेश में आपदा के संभावित खतरों को लेकर गंभीर नजर आ रही है. लेकिन बीते समय प्रदेश की सत्ता में रहीं सभी सत्ताधारी पार्टियों द्वारा ग्लेशियर के खतरे को लेकर शोधकर्ताओं की बातों को किस कदर नजरअंदाज किया गया है, इसकी बानगी 2008 में तैयार की गई एक रिपोर्ट बयां करती है.

12 साल से ठंडे बस्ते में ग्लेशियर की स्टडी रिपोर्ट.

उत्तराखंड में ग्लेशियर की स्टडी को लेकर 2008 में वैज्ञानिकों द्वारा एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर कुछ चिंताएं जाहिर की गईं थीं. अगर समय पर उत्तराखंड सरकार उन पर थोड़ा भी संजीदगी दिखाती तो आज यह हालात नहीं देखने पड़ते.

क्या थी 2008 की रिपोर्ट

2008 में सरकार द्वारा उत्तराखंड के सभी ग्लेशियरों पर ग्लोबल वार्मिंग के असर के साथ-साथ ग्लेशियरों से प्रभावित होने वाले सभी क्षेत्रों पर एक विस्तृत शोध करने के लिए समिति बनाई गई थी. भाजपा के ही कार्यकाल में बनी इस समिति के अध्यक्ष उस समय वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर डॉक्टर बीआर अरोड़ा थे. इस समिति के सदस्य सचिव मौजूदा आपदा प्रबंधन के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पीयूष रौतेला थे. इस समिति द्वारा हिमालय क्षेत्र के उत्तराखंड में आने वाले सभी ग्लेशियरों और उन पर पड़ रहे प्रभाव और भविष्य के जोखिमों को लेकर एक विस्तृत शोध रिपोर्ट तैयार की थी गई थी. रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी. लेकिन आज तक वह रिपोर्ट सचिवालय में धूल फांक रही है.

ये भी पढ़ें: जोशीमठ आपदा: प्रदेश की ये हैं बड़ी आपदाएं, जिसने जनमानस को हिलाकर रख दिया

समिति द्वारा दिए गए सुझाव

  • समिति ने कहा था कि ग्लेशियरों से आने वाले जोखिम से प्रभावित होने वाले गांवों का चिह्नीकरण होना चाहिए.
  • ग्लेशियरों के पिघलने से कम होते ग्लेशियरों और जलवायु परिवर्तन संबंधित डाटा तैयार किए जाने चाहिए.
  • तैयार किए गए डाटा से बाढ़ और ग्लेशियरों के पानी के बहाव का आकलन होना चाहिए और इसकी तुलना करके इसमें आने वाले अंतर को भी समझना चाहिए.
  • प्रदेश में स्थापित होने वाली सभी जलविद्युत परियोजनाओं के लिए नदियों के उद्गम क्षेत्र में मौसम केंद्र स्थापित होने थे. जिससे मौसम संबंधित आंकड़ों का निरंतर विश्लेषण होना था.
  • भागीरथी घाटी के केदार गंगा और केदार बामक के आसपास की ग्लेशियर झीलों और उससे आने वाले पानी पर लगातार मॉनिटरिंग के लिए कहा गया था.
  • स्कूल और कॉलेजों में ग्लेशियरों से जुड़ी आपदाओं और दुर्घटनाओं के प्रति बच्चों को और स्थानीय लोगों को जागरूक करने के लिए कहा गया था.
  • गंगोत्री और सतोपंथ ग्लेशियर में मानवीय आवाजाही को लेकर रोक लगाने के लिए कहा गया था और इसके लिए पर्यावरण संरक्षण कानून 1986 के प्रावधानों की मदद ले जाने की बात कही गई थी.
  • ग्लेशियरों को सूचीबद्ध किए जाने को कहा गया था, ताकि भविष्य में उन पर शोध किया जाए और उनकी पहचान की जा सके.
  • ग्लेशियरों पर सर्दी और गर्मी के मौसम में मैपिंग का आकलन और कवर पैटर्न का आकलन किया जाए.
  • माउंटिंग सिस्टम मजबूत हो पर्यावरण और बर्फ ग्लेशियर झीलों उनके बनने से संभावित बाढ़ की मॉनिटरिंग करने का सुझाव.
  • ग्लेशियरों के सिकुड़ने और उनके मॉस वॉल्यूम में हो रहे बदलाव के अलावा स्नोलाइन की मॉनिटरिंग की जाए, ताकि पर्यावरण की बेहतर समझ पैदा हो सके.

इतनी तगड़ी रिपोर्ट होने के बाद भी किसी ने इस पर ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी. अब चमोली आपदा में जब जन और धन का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है तो सरकार इसमें सुझाए इंतजामों को ही अमल में लाने पर लगी है. अगर पहले ही इस रिपोर्ट को पढ़कर, समझकर कदम उठाये गए होते तो आज चमोली आपदा में अपने सगे-संबंधियों को खोने वाले लोग शोकाकुल नहीं होते.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.