देहरादून: भारतीय जनता पार्टी की सरकार केंद्र से लेकर राज्यों तक जीरो टॉलरेंस का नारा देती है, लेकिन हकीकत इसके कुछ उलट ही दिखती है. भाजपा सरकार शासित प्रदेशों में ही एससी और एसटी छात्रों के शिक्षण संस्थानों में फर्जी प्रवेश के नाम पर करोड़ों की छात्रवृत्ति का घोटाला करने वाले अधिकारियों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है. इन घोटालों की जांच कर रही एसआईटी को चार राज्यों के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति नहीं दी गई है. जिसके कारण एक वर्ष का समय होने के बाद भी एसआईटी की टीम इन घोटालेबाज अधिकारियों पर कोई एक्शन नहीं ले पाई है. इन अधिकारियों पर अलग-अलग स्थानों पर 80 से भी अधिक मुकदमे दर्ज हैं.
बता दें साल 2017 में करोड़ो के छात्रवृत्ति घोटाले का मामला सामने आया था. यह घोटाला इतना बड़ा था कि 200 से अधिक शिक्षण संस्थानों ने अपने यहां अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्र-छात्राओं के फर्जी एडमिशन दिखाकर करीब 300 करोड़ से अधिक का घोटाला किया गया. मामला खुलने और चर्चित होने के बाद उत्तराखंड सरकार ने 2019 में मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया. एसआईटी ने जब मामले की जांच शुरू की, तो इसमें कई बड़े खुलासे हुए. इसके साथ ही कई बड़े अधिकारियों का नाम भी इसमें सामने आए. उसके बाद इन अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत 13 से अधिक मुकदमे हरिद्वार और देहरादून के अलग-अलग थानों में दर्ज किए.
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इस घोटाले में उत्तराखंड सहित उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा के कई अधिकारियों के नाम भी सामने आया है. जिसमें कुछ अधिकारियों को गिरफ्तार भी किया गया, मगर आज भी कई अधिकारी इस जांच से बाहर हैं. जिसमें उत्तराखंड के 11, उत्तर प्रदेश के 9, हिमाचल के 2 व हरियाणा का एक अधिकारी शामिल है. जिनके खिलाफ एसआईटी ने जांच और कार्रवाई के लिए इन चारों राज्यों की सरकारों से अनुमति मांगी, लेकिन एक वर्ष हो जाने के बाद भी अभी तक अनुमति नहीं मिल पाई है.
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बड़ा सवाल यह उठता है कि इन चारों राज्यो में भाजपा शासित सरकारें और जो लगातार जीरो टॉलरेंस का नारा देती हैं, उसके बाद भी इन सरकारों ने करोड़ों के घोटालेबाज अधिकारियों पर कार्रवाई का अनुमति नहीं दी.