देहरादूनः उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड की उच्च स्तरीय समिति में शासन ने चारधाम से नौ सदस्यों को नामित किया है. बकायदा इसके लिए धर्मस्व-तीर्थाटन सचिव की ओर से शासनादेश भी जारी हो चुका है. जिसमें तीर्थपुरोहित और हक हकूकधारी आदि शामिल हैं.
बता दें कि उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड पर हक हकूकधारियों के सुझाव, सहमति और विचार-विमर्श के लिए पूर्व राज्य सभा सांसद/बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष रह चुके मनोहर कांत ध्यानी को अध्यक्ष बनाया गया है. साथ ही उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया.
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आज धर्मस्व सचिव हरिचंद्र सेमवाल की ओर से जारी शासनादेश में चारों धामों से नौ सदस्य नामित किए गए हैं. जिसके तहत बदरीनाथ धाम से विजय कुमार ध्यानी, संजय शास्त्री एडवोकेट (ऋषिकेश) और रवींद्र पुजारी एडवोकेट (कर्णप्रयाग) शामिल हैं. जबकि, केदारनाथ से विनोद शुक्ला और लक्ष्मी नारायण जुगरान का नाम शामिल हैं. वहीं, गंगोत्री धाम से संजीव सेमवाल और रवींद्र सेमवाल सदस्य बनाए गए हैं. उधर, यमुनोत्री धाम से पुरुषोत्तम उनियाल और राजस्वरूप उनियाल नामित हुए हैं.
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शासनादेश में कहा गया है कि उत्तराखंड चारधाम देवस्थानय प्रबंधन बोर्ड के समस्त पहलुओं पर विचार विमर्श करने के लिए उच्च स्तरीय समिति में उपरोक्त सदस्यों को नामित किया गया है. अनु सचिव प्रेम सिंह राणा ने बताया कि धर्मस्व-तीर्थाटन एवं धार्मिक मेला अनुभाग सचिव हरिचंद सेमवाल की ओर से सदस्यों के नामित किए जाने का शासनादेश जारी हुआ है.
क्यों हो रहा देवस्थानम बोर्ड का विरोध: हर साल धामों में करोड़ों रुपए का चढ़ावा चढ़ता है. ऐसे में अब इस चढ़ावे का पूरा हिसाब-किताब रखा जाएगा. यानी जो चढ़ावा चढ़ता है, उसकी बंदरबांट नहीं हो पाएगी. इसके चलते भी तीर्थ पुरोहित और हक हकूकधारी बोर्ड का विरोध कर रहे हैं.
ये है देवस्थानम बोर्ड: चारधाम और उनके आसपास के 51 मंदिरों में अवस्थापना सुविधाओं का विकास, समुचित यात्रा संचालन एवं प्रबंधन के लिए उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम् प्रबंधन अधिनियम को राजभवन की मंजूरी मिलने के बाद चारधाम देवस्थानम बोर्ड अस्तित्व में आ गया है. मंदिरों के रखरखाव, बुनियादी सुविधाओं और ढांचागत सुविधाओं के लिए देवस्थानम बोर्ड का गठन किया. मुख्यमंत्री को इसका अध्यक्ष, संस्कृति एवं धर्मस्व मंत्री को उपाध्यक्ष और गढ़वाल मंडल के मंडालायुक्त को CEO की जिम्मेदारी दी गई. इस बोर्ड का वास्तविक मकसद यात्रा की व्यवस्था को बेहतर किया जाना है.
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क्यों शुरू हुई बोर्ड बनाने की कवायद: बदरीनाथ और केदारनाथ धाम की अपनी एक अलग ही मान्यता है. यही वजह है कि हर साल इन दोनों धामों में ही लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं. यह दोनों ही धाम पर्वतीय क्षेत्रों में मौजूद हैं, जहां सुख सुविधाएं विकसित करना पहाड़ जैसी चुनौती है. क्योंकि पहले से ही बदरी और केदार धाम के लिए मौजूद बीकेटीसी के माध्यम से तमाम व्यवस्थाएं मुकम्मल नहीं हो पा रही थीं. इसके अतिरिक्त गंगोत्री धाम के लिए अलग गंगोत्री मंदिर समिति और यमुनोत्री धाम के लिए अलग यमुनोत्री मंदिर समिति कार्य कर रही थीं.
बोर्ड करेगा धामों की संपत्तियों का रखरखाव: उत्तराखंड के कई जिलों सहित अन्य प्रांतों के कई स्थानों पर कुल 60 ऐसे स्थान हैं, जहां पर बाबा केदारनाथ और बदरीनाथ के नाम भू-सम्पत्तियां दस्तावेजों में दर्ज हैं. हालांकि इन संपत्तियों का रखरखाव अभी तक बदरी-केदार मंदिर समिति करती थी लेकिन अब बोर्ड बन जाने के बाद इन संपत्तियों का रखरखाव देवस्थानम बोर्ड कर रहा है. बोर्ड भी इस बात को मानता है कि जो भू संपत्तियां मंदिर के नाम हैं वह मंदिर के ही नाम रहेंगी, न कि इस बोर्ड के नाम होंगी.
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बता दें चारधाम में अभी भी देवस्थानम बोर्ड का विरोध हो रहा है. दीपावली पर तीर्थ पुरोहित और साधु समाज देवस्थानम बोर्ड के विरोध में घरों व मंदिरों में अंधेरा कर विरोध जताएंगे. तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि सरकार देवस्थानम बोर्ड को तत्काल भंग करे. एक नवंबर के बाद तीर्थ पुरोहित आंदोलन शुरू करेंगे.