देहरादून: चमोली जिले के जोशीमठ को अब भू-धंसाव क्षेत्र घोषित किया जा चुका है. वैज्ञानिकों का अध्ययन बताता है कि जोशीमठ ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के 50% हिस्से में भूस्खलन के ऐसे कई क्षेत्र हैं जो न केवल बेहद संवेदनशील हैं, बल्कि यहां साल-दर-साल मानवीय गतिविधियों के चलते भूस्खलन का ग्राफ बढ़ रहा है. स्थिति यह है कि राज्य में अबतक 6536 लैंडस्लाइड जोन चिन्हित किए जा चुके हैं. ये उत्तराखंड के लिए किसी बड़े खतरे से कम नहीं हैं.
आधे उत्तराखंड पर लैंडस्लाइड का खतरा: उत्तराखंड में पिछले कुछ सालों के दौरान भूस्खलन के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है. तमाम रिपोर्ट्स बताती हैं कि राज्य में विकास कार्यों के चलते ऐसे कई क्षेत्र विकसित हुए हैं जो अब भूस्खलन जोन के लिहाज से बेहद संवेदनशील माने जा रहे हैं. जोशीमठ आपदा ने एक बार फिर ऐसे क्षेत्रों में उपजे खतरों को लेकर सभी को आगाह किया है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि 2000 से 4000 मीटर की ऊंचाई पर 50 से 60% तक के ढलान वाले क्षेत्रों में भूस्खलन बड़ा खतरा हो सकता है.
पांच नदियों की घाटियां हैं रिस्की: चमोली, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर और पिथौरागढ़ में ऐसे ही कई बेहद संवेदनशील क्षेत्र चिन्हित किए गए हैं. भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों को लेकर वाडिया संस्थान ही नहीं बल्कि उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग भी अध्ययन कर चुका है. साल 2016 में वर्ल्ड बैंक की फंडिंग की मदद से उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग ने 2018 में इसी को लेकर एक रिपोर्ट भी तैयार की थी. रिपोर्ट में राज्य की 5 नदियों की घाटियों के रिस्क एसेसमेंट का उल्लेख किया गया था.
उत्तराखंड में 6536 लैंडस्लाइड जोन: वाडिया संस्थान भी भूस्खलन को लेकर अपने स्तर से राज्य का अध्ययन कर चुका है. उनके अध्ययन में ऐसे कई भूस्खलन जोन चिन्हित किए गए हैं, जो कई क्षेत्रों में आबादी को प्रभावित कर सकते हैं. उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग की स्टडी के दौरान तो राज्य में 6536 लैंडस्लाइड जोन चिन्हित किए जा चुके हैं. बड़ी बात यह है कि इनमें ऐसे सैकड़ों लैंडस्लाइड जोन हैं, जिन्हें अति संवेदनशील माना गया है. उससे भी बड़ी बात यह है कि कई धार्मिक क्षेत्र और हिल स्टेशंस के करीब भी ऐसे ही हाई रिस्क लैंडस्लाइड जोन चिन्हित हुए हैं.
उत्तराखंड में लैंडस्लाइड जोन की संख्या बढ़ रही है: अध्ययन से पता चलता है कि लैंडस्लाइड जोन की संख्या साल दर साल बढ़ रही है. इसके पीछे के दो महत्वपूर्ण कारण माने गए हैं. जिसमें पहली वजह सड़कों का जाल बिछना है. दूसरी बड़ी वजह जल विद्युत परियोजनाएं बनी हैं. इसमें राज्य की 4 नदियां- गंगा, मंदाकिनी, भागीरथी और अलकनंदा की घाटियां मुख्य तौर पर लैंडस्लाइड के लिहाज से कई क्षेत्रों में बेहद संवेदनशील मानी गई हैं.
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राज्य के अनेक हाईवे पर बने भू धंसाव केंद्र: गढ़वाल में उत्तरकाशी जिले के कई हाईवे पर लैंडस्लाइड जोन तैयार हो चुके हैं. उधर टिहरी जिले के अंतर्गत चारधाम मार्ग क्षेत्र में भी बड़े लैंडस्लाइड जोन मौजूद हैं. कुमाऊं में भी चंपावत और अल्मोड़ा में खतरनाक लैंडस्लाइड जोन सक्रिय हैं. बड़ी बात यह है कि बरसात के दौरान इन संवेदनशील क्षेत्रों में खतरा और भी बढ़ने की आशंका है. लिहाजा जरूरत पिछले कुछ समय में किए गए अध्ययनों के बाद उस रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करने की है, ताकि लैंडस्लाइड जोन से इंसानों को होने वाले खतरे को कम किया जा सके. साथ ही इसके ट्रीटमेंट के जरिए विकल्प भी तलाशे जा सकें.