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उत्तराखंड में बिना मान्यता संचालित हो रहे 500 से ज्यादा मदरसे, सर्वे में बताना होगा शैक्षिक पैटर्न

उत्तर प्रदेश के साथ ही उत्तराखंड भी मदरसों के सर्वे कराने की दिशा में फैसला लिया जा चुका है. इस बीच मदरसा बोर्ड से बिना मान्यता के चल रहे मदरसों का जो रिकॉर्ड सामने आ रहा है, वह चौंकाने वाला है. उत्तराखंड मदरसा शिक्षा परिषद के पास बिना मान्यता के चल रहे मदरसों की संख्या केवल 12 रिकॉर्ड में है. लेकिन जानकार कहते हैं कि राज्य में ऐसे बिना मान्यता के चल रहे मदरसों की संख्या 500 से भी ज्यादा है.

Uttarakhand Madrasa
देहरादून
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Published : Sep 24, 2022, 3:05 PM IST

Updated : Sep 24, 2022, 4:36 PM IST

देहरादून: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को लेकर सर्वे कराने का फैसला लिया तो यह मुद्दा उत्तर प्रदेश से बाहर निकल कर पूरे देश में राजनीतिक सुर्खियां लेता हुआ दिखाई दिया. अभी इस पर बहस चल ही रही थी कि उत्तराखंड सरकार ने भी प्रदेश में मदरसों के सर्वे का निर्णय ले लिया. लेकिन इस बीच सवाल यह उठा कि आखिरकार मदरसों पर भाजपा की सरकारें इतना ज्यादा फोकस क्यों कर रही है. तो इसका जवाब आंकड़ें हैं, जो उत्तराखंड से सामने आ रहे हैं और यह वाकई चौंकाने वाले भी हैं.

आपको जानकर हैरानी होगी कि प्रदेश में मान्यता प्राप्त मदरसों से ज्यादा गैर मान्यता प्राप्त मदरसे (Madrassas Operating Without Recognition) मौजूद है. बड़ी बात यह है कि सरकार के पास इनका कोई रिकॉर्ड नहीं है. क्योंकि यह सरकारी सिस्टम के किसी भी कार्यालय में दर्ज ही नहीं है. खुद वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स ने इस बात की जानकारी देते हुए साफ किया है कि राज्य में तकरीबन 500 से ज्यादा ऐसे मदरसे हैं, जिन्होंने मदरसा बोर्ड की मान्यता ही नहीं ली है.

उत्तराखंड में बिना मान्यता संचालित हो रहे 500 से ज्यादा मदरसे

इससे पहले की आप प्रदेश में मदरसों के सर्वे की जरूरत को समझें. उन सरकारी आंकड़ों को भी देख लीजिए जो प्रदेश में सरकारी आंकड़ों में दर्ज दिए गए हैं और जिन्होंने मदरसा शिक्षा परिषद से मान्यता ली हुई है. यह तो वह आंकड़े हैं जो उत्तराखंड मदरसा शिक्षा परिषद के पास रिकॉर्ड में हैं. लेकिन जो मदरसे रिकॉर्ड में नहीं है और जिन्होंने यहां से मान्यता ही नहीं ली है. ऐसे 500 से ज्यादा मदरसे बताए जा रहे हैं.

Uttarakhand Madrasa
उत्तराखंड में मदरसों की स्थिति

हैरानी की बात है कि मान्यता प्राप्त मदरसों से ज्यादा गैर मान्यता प्राप्त मदरसे प्रदेश में संचालित हैं. गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को लेकर परेशानी यह है कि इनका ना तो सरकार के पास कोई रिकॉर्ड होता है और ना ही इनके शैक्षणिक पैटर्न को लेकर सरकार का कोई आदेश इन पर चलता है.
पढ़ें- उत्तराखंड में मदरसों के सर्वेक्षण का संचालकों ने किया स्वागत, बोले- आने वाली जमात के लिए बेहतर कदम

मदरसे से जुड़े लोग भी यह कहते हैं कि क्योंकि इन मदरसों में गरीब परिवारों के बच्चे आते हैं. लिहाजास इन पर सरकार को ध्यान देकर उनकी शैक्षणिक स्थिति को सुधारना चाहिए. कुल मिलाकर सर्वे को लेकर मुस्लिम समाज से जुड़े कई लोग सरकार के फैसले के पक्ष में दिखाई देते हैं.

मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त मदरसों को शैक्षणिक पैटर्न को प्रारूप में ही चलाना होता है. यहां पर एनसीईआरटी की पुस्तकों को पढ़ाना होता है. यानी मदरसे में सामान्य शैक्षणिक कार्य किया जाता है, जबकि धार्मिक शिक्षा के लिए समय निश्चित किया जाता है. लेकिन गैर मानता प्राप्त मदरसों पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं है. माना जाता है कि गैर मान्यता प्राप्त ऐसे मदरसों में पूरे समय केवल धार्मिक शिक्षा ही दी जाती है, जिससे मुस्लिम समाज के यहां आने वाले बच्चे अपने भविष्य में तमाम सरकारी नौकरियों में पिछड़ जाते हैं.

हालांकि, हाल ही में वक्फ बोर्ड ने साफ किया है कि सर्वे के जरिए ऐसे गैर मान्यता प्राप्त मदरसों से लेखा-जोखा लिया जाएगा. इनके कामकाज का भी आकलन होगा. उधर वक्फ बोर्ड ने वक्फ बोर्ड के आधीन 10 मदरसों को मॉर्डन मदरसा बनाने का भी फैसला लिया है.

राजनीतिक रूप से बड़ा मुद्दा बनता रहा है मदरसा: राजनीतिक रूप से मदरसे का नाम आते ही इस पर वोट की राजनीति भी राजनीतिक दल करते हुए दिखाई देने लगते हैं. हाल ही में मदरसे को लेकर सर्वे का फैसला हुआ तो राजनीतिक रूप से भी इस पर कई तरह की टिप्पणियां आने लगीं. उधर, मुस्लिम समाज से जुड़े कुछ लोग सरकार के इस फैसले के विरोध में भी खड़े दिखाई दिए. खास बात यह है कि राजनीतिक रूप से इसी वोट बैंक की राजनीति के चलते गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को बल मिला. हालांकि, ऐसे मदरसे डोनेशन के आधार पर ही चलते हैं और मुस्लिम धर्म से जुड़े लोगों की मदद के आधार पर इन मदरसों को चलाया जाता है, जिस पर कई बार सवाल भी खड़े हुए हैं.

देहरादून: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को लेकर सर्वे कराने का फैसला लिया तो यह मुद्दा उत्तर प्रदेश से बाहर निकल कर पूरे देश में राजनीतिक सुर्खियां लेता हुआ दिखाई दिया. अभी इस पर बहस चल ही रही थी कि उत्तराखंड सरकार ने भी प्रदेश में मदरसों के सर्वे का निर्णय ले लिया. लेकिन इस बीच सवाल यह उठा कि आखिरकार मदरसों पर भाजपा की सरकारें इतना ज्यादा फोकस क्यों कर रही है. तो इसका जवाब आंकड़ें हैं, जो उत्तराखंड से सामने आ रहे हैं और यह वाकई चौंकाने वाले भी हैं.

आपको जानकर हैरानी होगी कि प्रदेश में मान्यता प्राप्त मदरसों से ज्यादा गैर मान्यता प्राप्त मदरसे (Madrassas Operating Without Recognition) मौजूद है. बड़ी बात यह है कि सरकार के पास इनका कोई रिकॉर्ड नहीं है. क्योंकि यह सरकारी सिस्टम के किसी भी कार्यालय में दर्ज ही नहीं है. खुद वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स ने इस बात की जानकारी देते हुए साफ किया है कि राज्य में तकरीबन 500 से ज्यादा ऐसे मदरसे हैं, जिन्होंने मदरसा बोर्ड की मान्यता ही नहीं ली है.

उत्तराखंड में बिना मान्यता संचालित हो रहे 500 से ज्यादा मदरसे

इससे पहले की आप प्रदेश में मदरसों के सर्वे की जरूरत को समझें. उन सरकारी आंकड़ों को भी देख लीजिए जो प्रदेश में सरकारी आंकड़ों में दर्ज दिए गए हैं और जिन्होंने मदरसा शिक्षा परिषद से मान्यता ली हुई है. यह तो वह आंकड़े हैं जो उत्तराखंड मदरसा शिक्षा परिषद के पास रिकॉर्ड में हैं. लेकिन जो मदरसे रिकॉर्ड में नहीं है और जिन्होंने यहां से मान्यता ही नहीं ली है. ऐसे 500 से ज्यादा मदरसे बताए जा रहे हैं.

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उत्तराखंड में मदरसों की स्थिति

हैरानी की बात है कि मान्यता प्राप्त मदरसों से ज्यादा गैर मान्यता प्राप्त मदरसे प्रदेश में संचालित हैं. गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को लेकर परेशानी यह है कि इनका ना तो सरकार के पास कोई रिकॉर्ड होता है और ना ही इनके शैक्षणिक पैटर्न को लेकर सरकार का कोई आदेश इन पर चलता है.
पढ़ें- उत्तराखंड में मदरसों के सर्वेक्षण का संचालकों ने किया स्वागत, बोले- आने वाली जमात के लिए बेहतर कदम

मदरसे से जुड़े लोग भी यह कहते हैं कि क्योंकि इन मदरसों में गरीब परिवारों के बच्चे आते हैं. लिहाजास इन पर सरकार को ध्यान देकर उनकी शैक्षणिक स्थिति को सुधारना चाहिए. कुल मिलाकर सर्वे को लेकर मुस्लिम समाज से जुड़े कई लोग सरकार के फैसले के पक्ष में दिखाई देते हैं.

मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त मदरसों को शैक्षणिक पैटर्न को प्रारूप में ही चलाना होता है. यहां पर एनसीईआरटी की पुस्तकों को पढ़ाना होता है. यानी मदरसे में सामान्य शैक्षणिक कार्य किया जाता है, जबकि धार्मिक शिक्षा के लिए समय निश्चित किया जाता है. लेकिन गैर मानता प्राप्त मदरसों पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं है. माना जाता है कि गैर मान्यता प्राप्त ऐसे मदरसों में पूरे समय केवल धार्मिक शिक्षा ही दी जाती है, जिससे मुस्लिम समाज के यहां आने वाले बच्चे अपने भविष्य में तमाम सरकारी नौकरियों में पिछड़ जाते हैं.

हालांकि, हाल ही में वक्फ बोर्ड ने साफ किया है कि सर्वे के जरिए ऐसे गैर मान्यता प्राप्त मदरसों से लेखा-जोखा लिया जाएगा. इनके कामकाज का भी आकलन होगा. उधर वक्फ बोर्ड ने वक्फ बोर्ड के आधीन 10 मदरसों को मॉर्डन मदरसा बनाने का भी फैसला लिया है.

राजनीतिक रूप से बड़ा मुद्दा बनता रहा है मदरसा: राजनीतिक रूप से मदरसे का नाम आते ही इस पर वोट की राजनीति भी राजनीतिक दल करते हुए दिखाई देने लगते हैं. हाल ही में मदरसे को लेकर सर्वे का फैसला हुआ तो राजनीतिक रूप से भी इस पर कई तरह की टिप्पणियां आने लगीं. उधर, मुस्लिम समाज से जुड़े कुछ लोग सरकार के इस फैसले के विरोध में भी खड़े दिखाई दिए. खास बात यह है कि राजनीतिक रूप से इसी वोट बैंक की राजनीति के चलते गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को बल मिला. हालांकि, ऐसे मदरसे डोनेशन के आधार पर ही चलते हैं और मुस्लिम धर्म से जुड़े लोगों की मदद के आधार पर इन मदरसों को चलाया जाता है, जिस पर कई बार सवाल भी खड़े हुए हैं.

Last Updated : Sep 24, 2022, 4:36 PM IST
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