देहरादून: उत्तराखंड अपनी विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है. यही वजह है कि राज्य कमजोर आर्थिक वित्तीय स्थिति से जूझता रहा है. विकास कार्यों के नाम पर हजारों करोड़ रुपए लोन लेता रहा है. ऐसे में अब उत्तराखंड सरकार, राज्य की आर्थिक विकास दर को दोगुना किए जाने के लिए एक तंत्र बनाने जा रही है. दरअसल, कर्नाटक की तर्ज पर उत्तराखंड में निगरानी और मूल्यांकन नीति बनाया जाना है. जिससे राज्य सरकार विकास योजनाओं पर खर्च की निगरानी के साथ ही पाई पाई का हिसाब रख सकेगी. हालांकि, निगरानी और मूल्यांकन नीति उत्तराखंड राज्य के लिए कितना महत्वपूर्ण साबित हो सकता है और इससे राज्य की आर्थिक विकास दर बढ़ने की क्या संभावनाएं हैं? जानिए इस रिपोर्ट में...
उत्तराखंड सरकार साल 2030 तक प्रदेश को देश के अग्रणी राज्यों में शामिल करने की दिशा में तेजी से काम कर रही है. इसी क्रम में अगले 5 साल में राज्य के आर्थिक विकास दर को दोगुना किया जा सके, इसके मद्देनजर राज्य सरकार अब विभागों के बजट खर्च पर पूरी निगरानी करने के लिए एक तंत्र बनाने का निर्णय लिया है, जिसके तहत अर्थ एवं संख्या विभाग निगरानी और मूल्यांकन नीति का ड्राफ्ट तैयार कर रहा है. जिसके तहत प्रदेश सरकार की विकास कार्य योजनाओं पर खर्च पर निगरानी करने के साथ ही उसका मूल्यांकन किया जाएगा. कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि राज्य सरकार अब पाई-पाई का हिसाब अपने पास रखेगी.
विकास कार्यों और योजनाओं के खर्च पर निगरानी: दरअसल, उत्तराखंड सरकार कर्नाटक राज्य की तर्ज पर ही उत्तराखंड राज्य में निगरानी और मूल्यांकन नीति लागू करने की कवायद में जुटी हुई है. मुख्य रूप से देखे तो कई बार विभागों से ऐसी शिकायतें प्राप्त होती है, जहां फिजूल खर्चे बढ़ते जा रहे हैं. इसकी वजह से तमाम विकास योजनाएं अधर में लटक जाती है. ऐसे में इन सब पर लगाम लगाने के साथ ही विकास कार्य और सरकारी योजनाओं का लाभ धरातल पर उतारने के लिए सरकार प्रयासरत है. ताकि आम जनता को योजनाओं का पूरा फायदा मिल सके. राज्य सरकार का मानना है कि निगरानी और मूल्यांकन नीति बेहद आवश्यक है. खर्च पर निगरानी के साथ ही धरातल स्थिति की जानकारी भी सरकार के पास मौजूद होगी.
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रियल टाइम के साथ निचले स्तर तक प्रभावी रूप से होगा लागू: शासन स्तर पर विकास योजनाओं की निगरानी और मूल्यांकन के लिए पहले से ही राज्य में राज्य योजना आयोग के स्तर पर व्यवस्था है, लेकिन लेकिन इससे रियल टाइम जानकारियां नहीं मिल पाती है. जिसके चलते सरकार का मानना है कि प्रदेश में निगरानी और मूल्यांकन नीति होनी चाहिए. जिसके जरिए रियल टाइम के साथ ही वो निचले स्तर तक प्रभावी रूप से लागू हो. ईटीवी भारत से बातचीत में अर्थ एवं संख्या विभाग के अपर निदेशक डॉ मनोज कुमार पंत ने बताया कि राज्य सरकार के निर्देश पर कर्नाटक की तर्ज पर निगरानी और मूल्यांकन नीति तैयार किया जा रहा है. इसका ड्राफ्ट अभी अंतिम चरण में है. गौरतलब है कि कर्नाटक में यह नीति काफी अधिक प्रभावी रही है, जिसके चलते कर्नाटक सरकार ने इसे प्राधिकरण बना दिया है.
कार्यों में पारदर्शिता और अधिकारियों की बढ़ेगी जवाबदेही: उत्तराखंड सरकार इस वजह से भी निगरानी और मूल्यांकन नीति को लाना चाहती है, ताकि विकास कार्यों में पारदर्शिता के साथ ही अधिकारियों की जवाबदेही को तय किया जा सके. शासन और प्रशासन स्तर पर कई बार ऐसी चीजें देखने को मिलती हैं कि अधिकारियों की जवाबदेही तय नहीं हो पाती है. साथ ही विकास योजनाओं की प्रगति, उनकी समय सीमा के साथ ही गुणवत्ता को लेकर भी समय-समय पर सवाल खड़े होते रहें है, लेकिन निगरानी और मूल्यांकन नीति के बाद विकास योजनाओं की रियल टाइम सारी जानकारियां सरकार को होगी. इसके अलावा कार्य में पारदर्शिता के साथ ही अधिकारियों की जवाबदेही भी बढ़ जाएगी.
निगरानी और मूल्यांकन नीति को कांग्रेस ने बताया जुमलेबाजी: उत्तराखंड में निगरानी और मूल्यांकन नीति लाए जाने के मामले पर अब प्रदेश में सियासत गरमाने लगी है. जहां एक ओर भाजपा सरकार के वित्तीय प्रबंधन को दुरुस्त करने की बात कह रही है. बीजेपी का कहना है कि उत्तराखंड राज्य में अभी तक "खाता ना बही, जो हरीश रावत कहे वही सही" हमेशा से ही सुनाई देता रहा है, लेकिन अब धामी सरकार इससे उलट बजट के खर्च का पूरा हिसाब तैयार करने के लिए नीति पर जोर दे रही है. ताकि जनता के सामने जनता के पैसे का पूरा हिसाब किताब भाजपा सरकार रख सके. जबकि कांग्रेस इसे मात्र जुमलेबाजी करार दे रही है.