देहरादून: देश में मोदी सरकार के बजट को लेकर यूं तो विभिन्न सेक्टर्स मिली जुली प्रतिक्रिया दे रहे हैं, लेकिन बजट में मनरेगा को लेकर जिस तरह बजटीय प्रावधान को सीमित किया गया है, उसका सीधा असर सभी राज्यों पर पड़ना तय है. वह भी मौजूदा हालात में जब कोविड-19 के चलते बेरोजगारी की समस्या चरम पर पहुंच गई है और मनरेगा योजना कई परिवारों की रोजी-रोटी का जरिया बना हुआ है. आपको बताते है कि उत्तराखंड में मनरेगा योजना किस तरह से गरीब परिवारों को प्रभावित करेगी.
हाल ही में मोदी सरकार की तरफ से पेश किए गए बजट में अलग-अलग सेक्टर्स को लेकर रणनीतिक रूप से बड़े बदलाव किए गए. इन्हीं में से एक मनरेगा योजना को लेकर भी मोदी सरकार ने बजटीय प्रावधान कम करके सभी को चौंका दिया. ऐसा इसलिए क्योंकि मौजूदा महामारी के दौरान यह योजना सरकार के लिए गरीब परिवारों को राहत देने के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण दिखाई दे रही थी. बहरहाल बजट में मनरेगा योजना को लेकर भारी कटौती करते हुए इसे करीब एक चौथाई कम किया गया है.
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मोदी सरकार की तरफ से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के लिए 73 हजार करोड़ रखें जाएंगे. जबकि 2006 में शुरू की गई इस योजना में 100 दिन के रोजगार की गारंटी के लिहाज से अनुमानता 2.5 लाख करोड़ बजट की जरूरत महसूस की गई है. यानी मौजूदा मनरेगा के मजदूरों की संख्या के लिहाज से जारी किए जाने वाले बजट के जरिए 100 दिन का रोजगार नहीं दिया जा सकेगा.
यह तो राष्ट्रीय स्तर पर बजट की स्थिति थी, लेकिन उत्तराखंड के लिहाज से जानिए कि मनरेगा का बजट कम करना क्या असर डालेगा. उत्तराखंड मनरेगा योजना को लेकर 12.46 लाख जॉब कार्ड इश्यू किए गए हैं, जबकि इसमें एक्टिव कार्ड होल्डर्स की संख्या 8.39 लाख है. यानी आठ लाख से ज्यादा गरीब लोग मनरेगा योजना में लाभार्थी हैं.
अब बजट के रूप से प्रदेश की स्थिति को समझिए: राज्य में 2,019-20 के दौरान 215 लाख का बजट मनरेगा के तहत मौजूद था, इसके बाद 2020-21 में यह बजट 299 लाख का हुआ. उधर 2021-22 में इस बजट की स्थिति 200 लाख रह गई. जबकि अब केंद्र सरकार ने इस के बजट में और भी कटौती कर दी है.
रोजगार की स्थिति: राज्य में 100 दिन के रोजगार गारंटी वाली इस योजना में फिलहाल प्रति परिवार औसत रोजगार की स्थिति को देखे तो 2019-20 में 40.9 दिन, 2020-21 में 46.42 और 2021-22 में 38.13 दिन का रोजगार मिल रहा था और अब बजट कम होने के बाद इसकी स्थिति और भी खराब हो जाएगी.
उत्तराखंड के लिए मनरेगा का बजट फिलहाल इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि कोविड-19 के चलते राज्य में बेरोजगारी बेहद ज्यादा बढ़ी है और कोरोना के चलते एक लाख से ज्यादा लोग वापस उत्तराखंड पहुंचे हैं. इस तरह ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब परिवारों के लिए मनरेगा योजना फिलहाल महामारी में महत्वपूर्ण साबित हो रही है. प्रदेश में मैदानी जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा के जरिए लोगों को रोजगार तो मिल ही रहा है, लेकिन पहाड़ी जनपद जहां खेती खराब होने के बाद मनरेगा ही एकमात्र जरिया रोजी-रोटी का बन चुका है. वहां इसका सबसे ज्यादा असर पड़ने जा रहा है.