देहरादून: उत्तराखंड समेत उत्तर भारत के कई राज्य इन दिनों दुग्ध संकट से गुजर रहे हैं. उत्तराखंड के मैदानी जिलों में तो दुग्ध उत्पादन में आई कमी (milk crisis in uttarakhand) ने अधिकारियों के पसीने छुड़ा दिए हैं. दरअसल, उत्पादन में आई एकाएक कमी से हर कोई हैरान है. यूं तो इसके पीछे कई वजह बताई जा रही हैं, लेकिन विभाग इसके पीछे के दूसरे कारणों को जानने में जुटा हुआ है. हालांकि, पहाड़ी जनपदों में दूध का उत्पादन सामान्य स्थिति में ही है लेकिन राज्य में दुग्ध उत्पादन को लेकर पहाड़ी जिलों की भूमिका बहुत ज्यादा नहीं है. इस मामले में राज्य मैदानी जिलों पर ही निर्भर है. चौंकाने वाली बात यह है कि इन्हीं मैदानी जिलों में उत्पादन पर असर दिखाई दिया है. सबसे पहले जानिए राजधानी देहरादून की स्थिति.
उत्तराखंड में करीब 2600 समितियां डेयरी फेडरेशन को दूध उपलब्ध कराती हैं. साल 2021 में उत्तराखंड दूध उत्पादन के क्षेत्र में 17 फीसदी ग्रोथ के साथ आगे बढ़ा था. राज्य में 1 जून को विश्व दुग्ध दिवस पर इस उपलब्धि का बखान भी किया गया लेकिन साल जाते-जाते प्रदेश में भूसे की भारी कमी के चलते दूध उत्पादन में भारी गिरावट आने लगी. हरिद्वार जिले में तो 7 हजार लीटर प्रतिदिन तक उत्पादन देखा गया, जो बेहद कम रहा. हालांकि, राज्य में भूसे की कमी को दूर करने के लिए सरकार की तरफ से कुछ कड़े फैसले भी लिए गए और दूसरे राज्यों से भी इसके मद्देनजर बातचीत की गई लेकिन इन सब प्रयासों के बावजूद प्रदेश में दूध उत्पादन में आने वाली कमी को नहीं रोका जा सका है.
दूध के उत्पादन में आई कमी को लेकर प्रदेश स्तर पर गिरावट आंकी गई है. वहींं, भूसे की कमी के कारण उत्पादन में कितना अंतर रहा यह आंकड़ों के जरिए जानिए.
- उत्तराखंड में कुल करीब 7 फीसदी तक उत्पादन में आई गिरावट.
- प्रदेश के 6 जिले उधम सिंह नगर, अल्मोड़ा, बागेश्वर, देहरादून, हरिद्वार और उत्तरकाशी में कम हुआ उत्पादन.
- उधम सिंह नगर जिले में पिछले साल तीन महीने में करीब 1.58 लाख लीटर उत्पादन दूध उत्पादन हुआ.
- इस साल अप्रैल, मई और जून में हुआ करीब 1.37 लाख लीटर उत्पादन हुआ, यानी 14 फीसदी की गिरावट आई.
- अल्मोड़ा में हुआ पिछले साल 3 महीनों में करीब 28 हजार लीटर का उत्पादन, जो इस साल करीब 26 हजार लीटर रहा, जिसमें कुल 8 फीसदी तक की गिरावट आई.
- बागेश्वर जिले में 16 फीसदी की गिरावट आई. पिछले साल दूध का उत्पान करीब 2 हजार लीटर रहा, जो इस साल 18 हजार लीटर पहुंचा.
- देहरादून जिले में सबसे ज्यादा रही गिरावट यहां 50 फीसदी तक की गिरावट आई.
- हरिद्वार जिले में 23 फीसदी की गिरावट रही. साल 2021 में 33 हजार लीटर का हुआ, उत्पादन जो इस साल 25 हजार लीटर रहा.
- उत्तरकाशी जिले में 4 फीसदी तक की गिरावट आई. पिछले साल 2100 लीटर का उत्पादन हुआ था, जो अब इस साल 2 हजार लीटर बचा.
दूध के उत्पादन को लेकर सबसे ज्यादा दिक्कत में देहरादून जिला रहा है, जहां पर समितियों की तरफ से 50 फीसदी तक कम दूध पहुंचाया गया. इस मामले में देहरादून में काम देख रहे प्रोडक्शन मैनेजर राकेश भट्ट कहते हैं कि पिछले कुछ समय में उत्पादन को लेकर दिक्कतें आई हैं लेकिन इन परिस्थितियों से निपटने की कोशिश की जा रही है. कई विकल्प हैं जिस पर काम हो रहा है. उत्पादन में आई कमी के पीछे कई वजह मानी जा रही है.
इस बार चारे में आई कमी को लेकर दुग्ध विकास विभाग की तरफ से पहली बार चारा विकास नीति तैयार करने की भी पहल की जा रही है. उधर, दूध के उत्पादन में आई कमी के पीछे एक तरफ जहां भूसे की उपलब्धता न होने के कारण पशुओं को खाने में आई दिक्कत को माना जा रहा है. तो वहीं, बाकी राज्यों में भी उत्पादन कम होने के चलते उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों से बाकी राज्यों द्वारा दूध लिए जाने को भी एक बड़ी वजह माना जा रहा है.
हर चौथे साल आती है गिरावट: दुग्ध विकास सचिव बीवीआरसी पुरुषोत्तम (Secretary BVRC Purushottam) की मानें तो हर तीसरे या चौथे वर्ष में दूध के उत्पादन में कमी या गिरावट आती है. साल 2022 को भी उसी रूप में देखा जा रहा है. हालांकि, मौजूदा स्थिति के बाद पशुपालकों को विशेष छूट दी जा रही है. एक तरफ जहां बाजारों में 1400 प्रति क्विंटल मिलने वाला भूसा सरकार ₹700 प्रति क्विंटल में दे रही है. तो वहीं, पशुपालकों से दूध खरीदे जाने में भी उन्हें ज्यादा से ज्यादा फायदा देने के इरादे से अलग से प्रोत्साहन राशि भी दी जा रही है. एक तरफ बेहतर क्वालिटी के लिए ₹4 प्रोत्साहन राशि के रूप में दिया जाता है, तो वही पशुपालकों से दूध लेने के दामों को भी बढ़ाया गया है.
यूं तो उत्तराखंड दूध उत्पादन में बेहतर काम करने वाले राज्यों में शुमार है लेकिन हकीकत यह है कि राज्य में उतना दूध भी उत्पादन नहीं हो पाता, जिससे राज्य की जरूरत थी पूरी हो सके. यही कारण है कि उत्तर प्रदेश समेत दूसरे पड़ोसी राज्यों से उत्तराखंड के शहरों की जरूरतों को पूरा करने के लिए दूध की आपूर्ति की जाती है.