देहरादन: उत्तराखंड में चुनाव नजदीक आते ही प्रदेश के उन मुद्दों को गौण कर दिया गया है, जिन पर पिछले 5 सालों में ही नहीं बल्कि राज्य स्थापना के बाद से ही समय-समय पर आवाज उठती रही है. चुनाव के अंतिम दौर में राजनीतिक दल इन महत्वपूर्ण मुद्दों को भूलते हुए नजर आ रहे हैं. इनकी जगह सांप्रदायिक और तुष्टिकरण की राजनीति ने ले ली है.
उत्तराखंड में 13 में से 9 जिले पर्वतीय हैं. इन सभी जिलों में आपदा एक बड़ा विषय रहा है, जो यहां के कई लोगों को प्रभावित करता रहा है. यही नहीं, राज्य की पर्यटन व्यवस्था को भी आपदा के कारण प्रभावित होना पड़ा है. लेकिन इतने महत्वपूर्ण विषय को अब चुनाव के दौरान राजनीतिक दल उठाना जरूरी नहीं समझ रहे.
दूसरी तरफ पलायन जैसे मुद्दे पर भी राजनीतिक दल और प्रत्याशियों की तरफ से जनता के सामने कोई खास बात नहीं रखी जा रही. हालांकि, घोषणा पत्र में इनको जगह दी गई है, लेकिन चुनाव के दौरान किसी भी प्रत्याशी या राजनीतिक दल के प्रतिनिधि की ओर से इन मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं की जा रही. यहां बात बड़े राजनीतिक दलों की की जा रही है.
ऐसे में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ का कहना है कि पार्टी विकास पर ही चुनाव लड़ रही है. उन्होंने कहा कि तुष्टिकरण की राजनीति बीजेपी की तरफ से की जा रही है. लेकिन चुनाव आयोग ने इस पर भी बीजेपी को उनकी गलती जाहिर करा दी है.
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उत्तराखंड में तुष्टिकरण की राजनीति इन दिनों हावी है. कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी ऐसे वीडियो और फोटो वायरल कर रहे हैं, जो समाज में सांप्रदायिक रूप से विभाजित करने वाले हैं. ऐसे में इस बात का जवाब भाजपा की तरफ से इस रूप में दिया जा रहा है कि तुष्टिकरण की राजनीति की शुरुआत कांग्रेस की तरफ से की गई थी. बीजेपी तो केवल इसका जवाब दे रही है. बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता विनय गोयल कहते हैं कि कांग्रेस ने मुस्लिम यूनिवर्सिटी की बात कहकर तुष्टिकरण की राजनीति की शुरुआत की थी.