ऋषिकेश: पारंपरिक वाद्य यंत्रों की कार्यशाला का महापौर अनिता ममगाईं ने शुभारंभ किया. कार्यशाला में युवाओं को पारंपरिक वाद्य यंत्रों का प्रशिक्षण दिया जाएगा. साथ ही उनको लोक वाद्य यंत्रों की महत्ता, उपयोगिता, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक तथ्यों की भी जानकारी दी जाएगी.
महापौर ने किया वाद्य यंत्रों की कार्यशाला का शुभारंभ. बता दें कि पर्वतीय अंचल लोक संस्कृति के प्रतीक ढोल-दमाऊ व हुड़के की कर्णप्रिय धुनों को संजोने के लिए केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय, उमंग संस्था के प्रयास और नमामि गंगे के सहयोग से कार्यशाला आयोजन की गई. सात दिवसीय वाद्ययंत्रों की कार्यशाला का शुभारंभ महापौर अनिता ममगाईं द्वारा किया गया. इस दौरान उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के संगीत में प्रकृति का वास है. यहां के गीत, संगीत की जड़ें प्रकृति से जुड़ीं हैं. समय के साथ यहां के गीत संगीत धूमिल होने लगे हैं, पुराने लोक वाद्य यंत्रों की जगह नए वाद्य यंत्रों ने ले ली है. इसके चलते युवा पीढ़ी अपने पारंपरिक वाद्य यंत्रों से दूर होती जा रही है. साथ ही उत्तराखंड के लोक वाद्य यंत्रों का महत्व जितना आध्यात्मिक है, उससे ज्यादा विज्ञान भरा हुआ है. लेकिन वर्तमान में अनेक लोक वाद्य यंत्र विलुप्ति के कगार पर हैं, जिन्हें सामूहिक प्रयास से संजोया जा सकता है.पढ़ें:महाकुंभ में आए सात साधु हुए कोरोना पॉजिटिव, हरिद्वार में चार दिन में मिले 300 संक्रमित
वहीं, महापौर अनिता ममगाईं ने बताया कि लोक वाद्यों में आंचलिक संस्कृति की छाप होती है. इन वाद्य यंत्रों का संस्कृति विशेष के साथ ही जन जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है. उन्होंने प्रशिक्षकों से विभिन्न वाद्य यंत्रों की विस्तृत जानकारी भी ली.