देहरादून: हिंदू धर्म में महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए साल में कई व्रत रखती हैं. इन्हीं में से एक व्रत वट सावित्री व्रत का भी है, जिसका हिन्दू धर्म में खास महत्व है. आज हम आपको इस व्रत को क्यों और कैसे रखा जाता है इस बारे में विस्तार से बताते हैं. जिससे आप भी इस व्रत की पूजा का विधान और महत्व जान सकें.
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ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या वट सावित्री अमावस्या कहलाती है. इस दिन सौभाग्यवती महिलाएं अखंड सौभाग्य प्राप्त करने के लिए वट सावित्री व्रत रखकर वटवृक्ष और यमदेव की पूजा करती हैं. भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक और पर्याय बन चुका है. वट सावित्री व्रत में वट और सावित्री, दोनों का विशेष महत्व है.
इस बार सोमवार को वट सावित्री व्रत के लिए बहुत ही अच्छा संयोग बना है. इस दिन सोमवती अमावस्या, सर्वार्थसिद्ध योग, अमृतसिद्ध योग के साथ-साथ त्रिग्रही योग लग रहा है. जिससे ये दिन बेहद शुभ रहेगा.
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वट सावित्री व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त
- अमावस्या तिथि प्रारंभ: 02 जून 2019 को शाम 04 बजकर 39 मिनट से
- अमावस्या तिथि समाप्त: 03 जून 2019 को दोपहर 03 बजकर 31 मिनट तक
वट-सावित्री व्रत कथा
वट सावित्री व्रत करने के पीछे एक पौराणिक कथा भी है. कहा जाता है कि नवविवाहिता सावित्री के पति सत्यवान के प्राण हरकर जब यमराज जाने लगे तो अपने पति सत्यवान का जीवन वापस पाने के लिए वो यमराज के पीछे पड़ गई और तब तक लगी रही जब तक कि यमराज ने उसके पति सत्यवान की जान उसने हाथों में न सौंप दिया.
वट वृक्ष का महत्व
शास्त्रों के अनुसार पीपल वृक्ष के समान वट वृक्ष यानी बरगद का वृक्ष भी विशेष महत्व रखता है. पुराणों के अनुसार, वटवृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु व अग्रभाग में शिव का वास माना गया है. अत: ऐसा माना जाता है कि इसके नीचे बैठकर पूजन व व्रतकथा आदि सुनने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. यह वृक्ष लम्बे समय तक अक्षय रहता है, इसलिए इसे अक्षयवट भी कहते हैं. जैन और बौद्घ भी अक्षयवट को अत्यंत पवित्र मानते हैं। जैनों का मानना है कि उनके तीर्थकर भगवान ऋषभदेव ने अक्षयवट के नीचे बैठकर तपस्या की थी. प्रयाग में इस स्थान को ऋषभदेव तपस्थली या तपोवन के नाम से जाना जाता है.
शनिदेव होते है प्रसन्न
इस दिन शनिदेव का जन्म हुआ था, इसलिए महिलाएं इस दिन वट और पीपल की पूजा कर शनिदेव को प्रसन्न करती हैं.