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स्वास्थ्य महानिदेशालय में स्पेशलिस्ट डॉक्टर कर रहे बाबूगिरी, इलाज को तरस रहे मरीज - उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाएं

प्रदेश में डॉक्टरों की कमी के कारण मरीज इलाज के लिए तरस रहे हैं. जबकि, कई विशेषज्ञ स्वास्थ्य महानिदेशालय में अधिकारी के रूप में तैनात किए गए हैं.

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स्पेशलिस्ट डॉक्टर कर रहे बाबूगीरी
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Published : Jan 11, 2020, 8:52 AM IST

देहरादून: प्रदेश के कई अस्पतालों में चिकित्सकों के कई पद खाली पड़े हुए है. ऐसे में महकमा स्पेशलिस्ट चिकित्सकों से प्रशासनिक पद के नाम पर बाबूगिरी करवा रहा है. वहीं, प्रदेश की जनता सरकार पर सवाल खड़े कर रही है कि सरकार को जनता की जिंदगी से ज्यादा डॉक्टर्स के आराम और सहूलियत की चिंता है.

स्पेशलिस्ट डॉक्टर कर रहे बाबूगीरी

गौर हो कि प्रदेश में कई हॉस्पिटलों में डॉक्टरों के पद खाली हैं. जिसका खामियाजा लोगों को उठाना पड़ रहा है. जहां एक ओर सरकार अस्पतालों में डॉक्टरों की तैनाती की बात करती आई हैं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है. राज्य में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 1258 पद हैं, जिसमें से करीब 415 पदों पर ही विशेषज्ञ डॉक्टर तैनात हैं. मतलब 840 से ज्यादा पद खाली पड़े हुए हैं. वहीं, कुल पदों की बात करें तो राज्य में करीब 2715 स्वीकृत पद हैं, जिसमें से 2 हजार से भी कम डॉक्टर की तैनाती हुई है.

ये भी पढ़ें: खास बातचीत में मंत्री रेखा आर्य ने बयां की अपने राजनीतिक सफर की कहानी

वहीं, राज्य के स्वास्थ्य महानिदेशालय में करीब 8 से 10 स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स प्रशासनिक पद पर बैठे हुए हैं, जिनसे बाबूगिरी करवाई जा रही है. इतना ही नही जिला स्तर पर भी स्पेशलिस्ट प्रशासनिक कामों पर लगाए गए हैं. इस तरह स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की अच्छी खासी संख्या इलाज करने के बजाय फाइलों को व्यवस्थित करने में व्यस्त है. वहीं, इन सवालों का जवाब जानना चाहा तो तर्क ये दिया गया कि विशेषज्ञ डॉक्टर्स को प्रमोशन के बाद प्रशासनिक पदों पर बैठाया जा रहा है. लेकिन क्या जनता के स्वास्थ्य के लिहाज से ये व्यवस्थाएं ठीक हैं. हकीकत ये है कि प्रदेश के पहाड़ी जिलों में स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं जाना चाहते.

ये हाल तब है जब सरकार डॉक्टर्स की पढ़ाई पर भारी रकम खर्च कर रही है. अब तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने डॉक्टर्स को पीजी करने के दौरान पूरी सैलरी देने का भी ऐलान कर दिया है. जबकि, हकीकत ये है कि पीजी करने वाले डॉक्टर्स स्पेशलिस्ट बनकर अपना कुछ ही समय जनता को दे पाते हैं. तब तक वो प्रमोशन के जरिए प्रशासनिक पदों पर पहुंचकर प्रैक्टिस से दूर हो जाते हैं.

देहरादून: प्रदेश के कई अस्पतालों में चिकित्सकों के कई पद खाली पड़े हुए है. ऐसे में महकमा स्पेशलिस्ट चिकित्सकों से प्रशासनिक पद के नाम पर बाबूगिरी करवा रहा है. वहीं, प्रदेश की जनता सरकार पर सवाल खड़े कर रही है कि सरकार को जनता की जिंदगी से ज्यादा डॉक्टर्स के आराम और सहूलियत की चिंता है.

स्पेशलिस्ट डॉक्टर कर रहे बाबूगीरी

गौर हो कि प्रदेश में कई हॉस्पिटलों में डॉक्टरों के पद खाली हैं. जिसका खामियाजा लोगों को उठाना पड़ रहा है. जहां एक ओर सरकार अस्पतालों में डॉक्टरों की तैनाती की बात करती आई हैं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है. राज्य में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 1258 पद हैं, जिसमें से करीब 415 पदों पर ही विशेषज्ञ डॉक्टर तैनात हैं. मतलब 840 से ज्यादा पद खाली पड़े हुए हैं. वहीं, कुल पदों की बात करें तो राज्य में करीब 2715 स्वीकृत पद हैं, जिसमें से 2 हजार से भी कम डॉक्टर की तैनाती हुई है.

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वहीं, राज्य के स्वास्थ्य महानिदेशालय में करीब 8 से 10 स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स प्रशासनिक पद पर बैठे हुए हैं, जिनसे बाबूगिरी करवाई जा रही है. इतना ही नही जिला स्तर पर भी स्पेशलिस्ट प्रशासनिक कामों पर लगाए गए हैं. इस तरह स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की अच्छी खासी संख्या इलाज करने के बजाय फाइलों को व्यवस्थित करने में व्यस्त है. वहीं, इन सवालों का जवाब जानना चाहा तो तर्क ये दिया गया कि विशेषज्ञ डॉक्टर्स को प्रमोशन के बाद प्रशासनिक पदों पर बैठाया जा रहा है. लेकिन क्या जनता के स्वास्थ्य के लिहाज से ये व्यवस्थाएं ठीक हैं. हकीकत ये है कि प्रदेश के पहाड़ी जिलों में स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं जाना चाहते.

ये हाल तब है जब सरकार डॉक्टर्स की पढ़ाई पर भारी रकम खर्च कर रही है. अब तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने डॉक्टर्स को पीजी करने के दौरान पूरी सैलरी देने का भी ऐलान कर दिया है. जबकि, हकीकत ये है कि पीजी करने वाले डॉक्टर्स स्पेशलिस्ट बनकर अपना कुछ ही समय जनता को दे पाते हैं. तब तक वो प्रमोशन के जरिए प्रशासनिक पदों पर पहुंचकर प्रैक्टिस से दूर हो जाते हैं.

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special report

Summary-सरकार की ऐसी नीतियों पर सवाल क्यों न उठे..जो जनता की जिंदगी से ज्यादा डॉक्टर्स के आराम और सहूलियत पर ध्यान देती हों..हाल ये है कि सूबे में मरीजों को डॉक्टर तक मयस्सर नहीं और महकमा स्पेशलिस्ट चिकित्सकों से प्रशासनिक पद के नाम पर बाबूगिरी करवा रहा है...देखिये Etv bharat की स्पेशल रिपोर्ट...


Body:जहां मामूली बीमारी के लिए डॉक्टर्स मौजूद न हो...और जहाँ अस्पतालों में डॉक्टर्स के अधिकतर पद खाली पड़े हो..वहां स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स से बाबू का काम लेकर सिर्फ फाइलें भरवाई जाए तो इसे कितना जायज समझा जाएगा.. उत्तराखंड की चौपट स्वास्थ्य व्यवस्था में हालातों को समझने के बजाय त्रिवेंद्र सरकार और स्वास्थ्य महकमा कुछ ऐसे ही अव्यावहारिक कामों को अंजाम दे रहा है... पहले समझिए कि उत्तराखंड में स्पेशलिस्ट डॉक्टर की मरीजों के लिए क्या अहमियत है.. दरअसल राज्य में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 1258 पर है जिसमें से मात्र करीब 415 पदों पर ही विशेषज्ञ डॉक्टर तैनात है... यानी 840 से ज्यादा पद खाली पड़े हैं..उधर कुल पदों की बात करें तो राज्य में करीब 2715 स्वीकृत पद है..जिसमें से 2000 से भी कम डॉक्टर की तैनाती हुई है..अब डॉक्टर्स की अमानवीयता और जनता से महकमे का मजाक देखिये कि राज्य के स्वास्थ्य महानिदेशालय में करीब 8 से 10 स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स प्रशासनिक पद पर बैठाकर उनसे बाबूगिरी करवाई जा रही है...इतना ही नही जिला स्तर पर भी स्पेशलिस्ट प्रशासनिक कामों पर लगाये गए हैं.. इस तरह  स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की अच्छी खासी संख्या  इलाज करने के बजाय फाइलों को मेंटेन करने में व्यस्त है। तर्क ये है कि विशेषज्ञ डॉक्टर्स को प्रमोशन के बाद प्रशासनिक पदों पर बैठाया जा रहा है..लेकिन क्या जनता के स्वास्थ्य के लिहाज से ये व्यवस्थाएं ठीक हैं... हकीकत यह है कि प्रदेश के पहाड़ी जिलों में स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं जाना चाहते.. 


बाइट अमिता उपरेती स्वास्थ्य महानिदेशक उत्तराखंड


यह हाल तब है जब सरकार डॉक्टर्स की पढ़ाई पर भारी रकम खर्च कर रही है। और अब तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने डॉक्टर्स को पीजी करने के दौरान पुरी तनख्वाह देने का भी ऐलान कर दिया है.. जबकि हकीकत यह है कि पीजी करने वाले डॉक्टर्स स्पेशलिस्ट बनकर अपना कुछ ही समय जनता को दे पाते हैं ..तब तक वह प्रमोशन के जरिए प्रशासनिक पदों पर पहुंचकर  प्रैक्टिस से दूर हो जाते हैं।।।।


बाइट त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री उत्तराखंड




Conclusion:जरूरत है कि सरकार मौजूदा स्थितियों को समझे और स्पेशलिस्ट डॉक्टर को फील्ड में भेजकर जिला स्तर पर उनसे काम ले ताकि लोगों की जिंदगियां बचाई जा सके और स्वास्थ्य को लेकर डॉक्टर ख़ासकर स्पेशलिस्ट की कमी को दूर किया जा सके।।


नवीन उनियाल देहरादून
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