देहरादून: प्रदेश के कई अस्पतालों में चिकित्सकों के कई पद खाली पड़े हुए है. ऐसे में महकमा स्पेशलिस्ट चिकित्सकों से प्रशासनिक पद के नाम पर बाबूगिरी करवा रहा है. वहीं, प्रदेश की जनता सरकार पर सवाल खड़े कर रही है कि सरकार को जनता की जिंदगी से ज्यादा डॉक्टर्स के आराम और सहूलियत की चिंता है.
गौर हो कि प्रदेश में कई हॉस्पिटलों में डॉक्टरों के पद खाली हैं. जिसका खामियाजा लोगों को उठाना पड़ रहा है. जहां एक ओर सरकार अस्पतालों में डॉक्टरों की तैनाती की बात करती आई हैं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है. राज्य में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 1258 पद हैं, जिसमें से करीब 415 पदों पर ही विशेषज्ञ डॉक्टर तैनात हैं. मतलब 840 से ज्यादा पद खाली पड़े हुए हैं. वहीं, कुल पदों की बात करें तो राज्य में करीब 2715 स्वीकृत पद हैं, जिसमें से 2 हजार से भी कम डॉक्टर की तैनाती हुई है.
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वहीं, राज्य के स्वास्थ्य महानिदेशालय में करीब 8 से 10 स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स प्रशासनिक पद पर बैठे हुए हैं, जिनसे बाबूगिरी करवाई जा रही है. इतना ही नही जिला स्तर पर भी स्पेशलिस्ट प्रशासनिक कामों पर लगाए गए हैं. इस तरह स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की अच्छी खासी संख्या इलाज करने के बजाय फाइलों को व्यवस्थित करने में व्यस्त है. वहीं, इन सवालों का जवाब जानना चाहा तो तर्क ये दिया गया कि विशेषज्ञ डॉक्टर्स को प्रमोशन के बाद प्रशासनिक पदों पर बैठाया जा रहा है. लेकिन क्या जनता के स्वास्थ्य के लिहाज से ये व्यवस्थाएं ठीक हैं. हकीकत ये है कि प्रदेश के पहाड़ी जिलों में स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं जाना चाहते.
ये हाल तब है जब सरकार डॉक्टर्स की पढ़ाई पर भारी रकम खर्च कर रही है. अब तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने डॉक्टर्स को पीजी करने के दौरान पूरी सैलरी देने का भी ऐलान कर दिया है. जबकि, हकीकत ये है कि पीजी करने वाले डॉक्टर्स स्पेशलिस्ट बनकर अपना कुछ ही समय जनता को दे पाते हैं. तब तक वो प्रमोशन के जरिए प्रशासनिक पदों पर पहुंचकर प्रैक्टिस से दूर हो जाते हैं.