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कोरोनाकाल में ठप हुआ प्रिंटिंग कारोबार, प्रेस हुईं बंद, कर्मचारी बेरोजगार

कोरोना महामारी और कोरोना कर्फ्यू के कारण प्रिटिंग प्रेस का व्यापार चौपट हो गया है. स्कूल बंद, शादियों के कार्यक्रम पर लगे पहरे ने इनकी परेशानी को और बढ़ा दिया है. पिछले दो साल से इस क्षेत्र पर बेहद बुरा असर पड़ा है.

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Published : Jun 5, 2021, 4:38 PM IST

Updated : Jun 5, 2021, 8:11 PM IST

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कोरोनाकाल में ठप हुआ प्रिंटिंग कारोबार

देहरादून: कोरोना महामारी के इस दौर में समाज के हर एक तबके पर अलग-अलग तरह से असर पड़ा है. प्रिंटिंग प्रेस व्यवसाय भी इसी में से एक है. कोरोना के बाद से ये कारोबार घटकर 20 से 25 प्रतिशत पर आ गया है. कारोबारियों का कहना है कि कोरोना काल में कागज, इंक, प्लास्टिक के दाम बढ़ गए हैं, छपाई का काम कम हो गया है. इससे आय भी प्रभावित हुई है. कारोबार प्रभावित होने से कर्मचारियों का मानदेय, बिजली बिल, लोन सहित अन्य खर्च निकालना मुश्किल हो गया है.

कोरोनाकाल में ठप हुआ प्रिंटिंग कारोबार

आज दम तोड़ रहा प्रिटिंग प्रेस व्यवसाय

कोरोना महामारी और कोरोना कर्फ्यू के कारण प्रिटिंग प्रेस का व्यापार चौपट हो गया है. स्कूल बंद हैं और शादियों के कार्यक्रम पर लगे पहरे ने इनकी परेशानियों को और बढ़ा दिया है. पिछले दो साल से इस क्षेत्र पर बेहद बुरा असर पड़ा है. राजधानी देहरादून जो कि लंबे समय से प्रिंटिंग प्रेस को लेकर पूरे राज्य का केंद्र बिंदु रहा है, यहां भी हालात खराब हैं. यहां राज्य आंदोलन से पहले से लेकर अब तक प्रिंटिंग व्यवसायियों ने अपने आप को विकास की रफ्तार के साथ ढाला है, मगर ये अब इस मुश्किल वक्त में दम तोड़ रहे हैं.

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पढ़ें- बदरीनाथ धाम के दर्शन की मांग पर अड़े मौनी बाबा का स्वामी शिवानंद ने किया समर्थन

कई प्रिंटिंग प्रेस मालिकों ने बदला व्यवसाय
तकरीबन 35 साल से प्रिंटिंग व्यवसाय में नाम बना चुके मोहन प्रेस की तीसरी पीढ़ी मनोज मनोचा ने बताया कि प्रिंटिंग प्रेस व्यवसाय पिछले एक साल से अब तक के अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. उन्होंने बताया कि इस दौरान दर्जनों प्रिंटिंग प्रेस व्यवसायियों ने अपना व्यवसाय बदल लिया है. कई तो ऐसे हैं जिन्होंने अपनी प्रेस बंद कर दी है.

पढ़ें- ऋषिकेश में बन रहा शहीद द्वार, शहीद राकेश डोभाल की बेटी ने किया शिलान्यास

उम्मीद नहीं कि कभी पटरी पर लौटेगी गाड़ी

वहीं कोविड-19 के इस मुश्किल भरे दौर में शादियों के कार्ड छापने के अलावा अन्य सभी तरह की प्रिंटिंग और छपाई का काम पूरी तरह से बंद है. पिछले एक साल में कई व्यवसायियों ने अपनी जान भी गंवाई है. मनोज बताते हैं कि सभी प्रिंटिंग प्रेस व्यवसायियों के लिए ये सबसे बुरा दौर है. इस समय हालात बेहद मुश्किल भरे हैं. बेहद भावुक होते हुए मनोज कहते हैं कि अब उन्हें उम्मीद नहीं है कि उनका यह व्यवसाय कभी इस दौर से उबर पाएगा.

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पढ़ें- एक प्रोजेक्ट पर दो टोल प्लाजा का विधानसभा अध्यक्ष ने किया विरोध


कोरोना की दूसरी लहर ने उम्मीदों पर फेरा पानी
प्रिंटिंग प्रेस व्यवसाई मनोज मनोचा ने बताया कि कोविड-19 के चलते पिछले एक साल से शादियों पर प्रतिबंध लगा है. इसका सीधा असर उनके व्यवसाय पर पड़ा है. उन्होंने कहा पुराने समय में शादियों के कार्ड को लेकर 2,000 से 4,000 और 5,000 तक के कार्ड छापने के ऑर्डर आते थे. पिछले साल लॉकडाउन के बाद इसमें भारी गिरावट आई. हालांकि कुछ समय पहले एक बार उम्मीद जगी थी लेकिन कोविड-19 की दूसरी लहर ने उस उम्मीद पर भी पानी फेर दिया.

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पढ़ें- राज्यपाल और सीएम तीरथ ने प्रदेशवासियों को विश्व पर्यावरण दिवस की दी शुभकामनाएं

शादी कार्ड छपाई के ऑर्डर हुए कैंसिल

मनोज ने बताया कई ऐसे आर्डर हैं जो उनके पास तैयार हैं लेकिन ऑर्डर देने वाले कार्ड ले जाने के लिए ही नहीं आये. शादी की डेट भी निकल गई. इस कारण सारा नुकसान उन्हें उठाना पड़ा. उन्होंने बताया ये सिर्फ उनका हाल नहीं है, ये कहानी सभी प्रिंटिंग प्रेस व्यवसाय से जुड़े लोगों की है.

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पढ़ें- विश्व पर्यावरण दिवस: CM तीरथ रावत के सामने प्रस्तुतीकरण देगा वन विभाग

पहले काम करते थे 30 लोग, अब सिर्फ 3

प्रिंटिंग प्रेस व्यवसाई का कहना है कि हर एक प्रिंटिंग प्रेस में तकरीबन 10 से 25 या फिर 30 लोग काम करते हैं. मगर कोविड-19 के हालातों के बाद कई लोगों को निकाल दिया गया है. जो रखे गए हैं उनकी तनख्वाह भी आधी कर दी गई है. अपना उदाहरण देते हुए मनोज ने बताया कि उनके पास 12 लोग थे. उन्होंने अब केवल 3 लोगों को रखा है. वह भी इसलिए क्योंकि एसेंशियल सर्विस यानी आवश्यक सेवाओं के तहत उनकी प्रिंटिंग प्रेस को खुला रखा गया है. इसलिए उनका थोड़ा बहुत काम चल रहा है. बाकी अन्य लोगों के हालात के बारे में बोलते हुए वे कहते हैं कि इसे बयां नहीं किया जा सकता है.

देहरादून: कोरोना महामारी के इस दौर में समाज के हर एक तबके पर अलग-अलग तरह से असर पड़ा है. प्रिंटिंग प्रेस व्यवसाय भी इसी में से एक है. कोरोना के बाद से ये कारोबार घटकर 20 से 25 प्रतिशत पर आ गया है. कारोबारियों का कहना है कि कोरोना काल में कागज, इंक, प्लास्टिक के दाम बढ़ गए हैं, छपाई का काम कम हो गया है. इससे आय भी प्रभावित हुई है. कारोबार प्रभावित होने से कर्मचारियों का मानदेय, बिजली बिल, लोन सहित अन्य खर्च निकालना मुश्किल हो गया है.

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आज दम तोड़ रहा प्रिटिंग प्रेस व्यवसाय

कोरोना महामारी और कोरोना कर्फ्यू के कारण प्रिटिंग प्रेस का व्यापार चौपट हो गया है. स्कूल बंद हैं और शादियों के कार्यक्रम पर लगे पहरे ने इनकी परेशानियों को और बढ़ा दिया है. पिछले दो साल से इस क्षेत्र पर बेहद बुरा असर पड़ा है. राजधानी देहरादून जो कि लंबे समय से प्रिंटिंग प्रेस को लेकर पूरे राज्य का केंद्र बिंदु रहा है, यहां भी हालात खराब हैं. यहां राज्य आंदोलन से पहले से लेकर अब तक प्रिंटिंग व्यवसायियों ने अपने आप को विकास की रफ्तार के साथ ढाला है, मगर ये अब इस मुश्किल वक्त में दम तोड़ रहे हैं.

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तकरीबन 35 साल से प्रिंटिंग व्यवसाय में नाम बना चुके मोहन प्रेस की तीसरी पीढ़ी मनोज मनोचा ने बताया कि प्रिंटिंग प्रेस व्यवसाय पिछले एक साल से अब तक के अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. उन्होंने बताया कि इस दौरान दर्जनों प्रिंटिंग प्रेस व्यवसायियों ने अपना व्यवसाय बदल लिया है. कई तो ऐसे हैं जिन्होंने अपनी प्रेस बंद कर दी है.

पढ़ें- ऋषिकेश में बन रहा शहीद द्वार, शहीद राकेश डोभाल की बेटी ने किया शिलान्यास

उम्मीद नहीं कि कभी पटरी पर लौटेगी गाड़ी

वहीं कोविड-19 के इस मुश्किल भरे दौर में शादियों के कार्ड छापने के अलावा अन्य सभी तरह की प्रिंटिंग और छपाई का काम पूरी तरह से बंद है. पिछले एक साल में कई व्यवसायियों ने अपनी जान भी गंवाई है. मनोज बताते हैं कि सभी प्रिंटिंग प्रेस व्यवसायियों के लिए ये सबसे बुरा दौर है. इस समय हालात बेहद मुश्किल भरे हैं. बेहद भावुक होते हुए मनोज कहते हैं कि अब उन्हें उम्मीद नहीं है कि उनका यह व्यवसाय कभी इस दौर से उबर पाएगा.

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प्रिंटिंग प्रेस व्यवसाई मनोज मनोचा ने बताया कि कोविड-19 के चलते पिछले एक साल से शादियों पर प्रतिबंध लगा है. इसका सीधा असर उनके व्यवसाय पर पड़ा है. उन्होंने कहा पुराने समय में शादियों के कार्ड को लेकर 2,000 से 4,000 और 5,000 तक के कार्ड छापने के ऑर्डर आते थे. पिछले साल लॉकडाउन के बाद इसमें भारी गिरावट आई. हालांकि कुछ समय पहले एक बार उम्मीद जगी थी लेकिन कोविड-19 की दूसरी लहर ने उस उम्मीद पर भी पानी फेर दिया.

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पहले काम करते थे 30 लोग, अब सिर्फ 3

प्रिंटिंग प्रेस व्यवसाई का कहना है कि हर एक प्रिंटिंग प्रेस में तकरीबन 10 से 25 या फिर 30 लोग काम करते हैं. मगर कोविड-19 के हालातों के बाद कई लोगों को निकाल दिया गया है. जो रखे गए हैं उनकी तनख्वाह भी आधी कर दी गई है. अपना उदाहरण देते हुए मनोज ने बताया कि उनके पास 12 लोग थे. उन्होंने अब केवल 3 लोगों को रखा है. वह भी इसलिए क्योंकि एसेंशियल सर्विस यानी आवश्यक सेवाओं के तहत उनकी प्रिंटिंग प्रेस को खुला रखा गया है. इसलिए उनका थोड़ा बहुत काम चल रहा है. बाकी अन्य लोगों के हालात के बारे में बोलते हुए वे कहते हैं कि इसे बयां नहीं किया जा सकता है.

Last Updated : Jun 5, 2021, 8:11 PM IST
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