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उत्तराखंड: बजट खर्च में फिसड्डी कई मंत्री, आधी राशि भी खर्च नहीं की, योजनाएं हो रही प्रभावित

उत्तराखंड के विकास को तेज रफ्तार देने की उम्मीद से प्रदेश की जनता ने इतिहास बदलकर एक बार फिर से उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी को सरकार चलाने का मौका दिया. तो वहीं, इस साल के जाते जाते अगर सरकार की परफॉर्मेंस के आंकड़ों की नजर से देखो तो विकास की रफ्तार वाकई में कितनी तेज हुई है इसका आंकलन लगाया जा सकता है. देखिए स्पेशल रिपोर्ट

budget expenditure in uttarakhand
उत्तराखंड में बजट खर्च का ब्योरा
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Published : Dec 29, 2022, 9:10 PM IST

उत्तराखंड में कौन सा मंत्रालय राज्य निर्माण में अव्वल और कौन फिसड्डी

देहरादून: प्रदेश के विकास के लिए राज्य सरकार हर सार करोड़ों रुपये का बजट जारी करती है. सरकार के बजट के आंकड़े प्रदेश के इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का एक बड़ा इंडिकेटर होते हैं. खास तौर पर पूंजीगत बजट खर्च यानी कैपिटल एक्सपेंडिचर का डेटा उत्तराखंड सरकार का क्या कहता है ? आइए हम आपको बताते हैं. उत्तराखंड में 23 मार्च 2022 को सरकार गठन के बाद 1 अप्रैल, 2022 से लेकर 25 दिसंबर 2022 तक के बजट खर्च के अगर आंकड़े उठा कर देखा जाए तो इस दौरान कुल 63,173 करोड़ का बजट लाया गया, जिसमें से राजस्व मद में 51,185 करोड़ रुपये और पूंजीगत मद में 11,988 करोड़ के बजट का प्रावधान किया गया.

यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि प्रदेश में विकास कार्यों, नव निर्माण और अवस्थापना विकास में किया जाने वाला खर्च पूंजीगत खर्च यानी कैपिटल एक्सपेंडिचर के तहत आता है. यही बजट खर्च प्रदेश के लिए विकास का संकेतांक होता है. तो वहीं, इसके अलावा राजस्व खर्च यानी सरकार चलाने के लिए होने वाले खर्च में 51,185 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जिसके तहत अधिकारी कर्मचारियों के वेतन, भत्ते, पेंशन, मजदूरी, कार्यालय खर्च इत्यादी आता है.

64 विभागों में से कैपिटल एक्सपेंडिचर के लिए इन विभागों का बजट प्रावधान सबसे बड़ा: प्रदेश के पूंजीगत विकास के लिए लाए गए 11,988 करोड़ के बजट में विभागवार अगर नजर डालें, तो नव निर्माण, विकास और अवस्थापना विकास को दृष्टिगत रखते हुए सरकार के 64 विभागों में यह टॉप 10 विभाग हैं, जिनका बजट सबसे ज्यादा है.

सबसे ज्यादा बजट वाले विभाग

budget expenditure in uttarakhand
सबसे ज्यादा खर्च वाले विभाग

बजट खर्च ना कर पाने वाले फिसड्डी विभाग

budget expenditure in uttarakhand
उत्तराखंड के फिसड्डी विभाग

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि ये सभी वो विभाग हैं, जिनका बजट अन्य विभागों से काफी बड़ा है. यानी साफ है कि इन विभागों पर प्रदेश के विकास की ज्यादा जिम्मेदारी है लेकिन ये सभी विभाग अपने बजट का कुल 50 फीसदी भी खर्च नहीं कर पाए हैं. ऐसे में आप विकास की रफ्तार का आकलन कर सकते हैं.

बेहतर परफॉर्मेंस करने वाले विभाग

budget expenditure in uttarakhand
बेहतर परफॉर्मेंस वाले विभाग

उत्तराखंड में बजट खर्च के आधार पर मंत्रियों का परफॉर्मेंस-

रेखा आर्य- बजट खर्च न करने में सबसे खराब स्थिति महिला बाल विकास मंत्री रेखा आर्य की है. खुद महिला बाल विकास में अवस्थापना विकास के लिए 56 करोड़ का बजट है, लेकिन ना तो कोई बजट रिलीज किया गया और ना ही कुछ खर्च किया गया. यानी निल बटे सन्नाटा. इसके अलावा रेखा आर्य के खेल विभाग में भी खेल विकास के लिए 115 करोड़ का बजट का प्रावधान है, लेकिन खर्च किया केवल 30 करोड़ यानी केवल 26 फीसदी, जिसे कह सकते हैं कि एक चौथाई बजट ही खर्च हो पाया है. हालांकि अपने खाद्य आपूर्ति विभाग में रेखा आर्य बजट खर्च करने के मामले में थोड़ा सा बेहतर कर पाईं हैं.

सतपाल महाराज- बजट खर्च ना कर पाने में दूसरा नंबर कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज का है. सतपाल महराज के पास प्रदेश के अवस्थापना विकास से जुड़े महत्वपूर्ण विभागों में पीडब्ल्यूडी, पर्यटन, सिंचाई, पंचायती राज विभाग जैसे तमाम विभाग है. सबसे बुरा हाल सिंचाई विभाग में है, जहां सिंचाई विभाग के लिए 677 करोड़ का बजट प्रावधान है लेकिन खर्च केवल 106 करोड़ यानी सबसे कम 15 फीसदी बजट खर्च कर पाये हैं. इसके बाद पर्यटन विकास में केवल 30 फीसदी उस से भी महत्वपूर्ण लोक निर्माण विभाग में बजट का केवल 36 फीसदी ही खर्च कर पाए हैं, हालांकि इनके विभाग पंचायती राज में 30 करोड़ का पूरा बजट खर्च कर दिया गया है.

सुबोध उनियाल- कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल की भी स्थिति प्रदेश के सबसे बड़े विभाग वन विभाग के अवस्थापना के बजट खर्च में सबसे खराब है. वन विभाग के कैपिटल एक्सपेंडिचर का बजट प्राविधान 94 करोड़ का है, लेकिन वन विभाग केवल 9 करोड़ यानी प्रोविजन बजट का केवल 9.57 फीसदी ही खर्च कर पाए हैं. हालांकि तकनीकी शिक्षा में वह 52 करोड़ के बजट में से 35 करोड़ खर्च करने के बाद 67.31% बजट साल के आखिरी तक खर्च कर चुके हैं.

धन सिंह रावत- कैबिनेट मंत्री धन सिंह के पास शिक्षा और स्वास्थ्य दो महत्वपूर्ण विभाग हैं. केवल पहले स्वास्थ्य की बात कर ली जाए, तो स्वास्थ्य विभाग में अवस्थापना का केवल 46 करोड़ के बजट का प्रावधान है, जिसमें से 26 फीसदी खर्च हुआ है. तो वहीं, चिकित्सा शिक्षा में अवस्थापना को लेकर बड़े बजट का प्रावधान हैस जिसमें से 350 करोड़ के बजट में से 53 फीसदी बजट खर्च हो चुका है. तो वहीं अब शिक्षा की बात की जाए तो माध्यमिक शिक्षा का बुरा हाल है और माध्यमिक शिक्षा में 290 करोड़ के बजट में से केवल 70 करोड़ खर्च हुआ है, जो कि कुल प्रावधान बजट का केवल 24 फीसदी बजट खर्च हो पाया है.

गणेश जोशी- कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी के विभागों के बजट खर्च का आंकड़ा कुछ ज्यादा सही तो नहीं है लेकिन ऊपर के मंत्रियों की तुलना में गणेश जोशी बजट खर्च के मामले में थोड़ा सा बेहतर कर पाए हैं. उनके कृषि विभाग में 68 करोड़ में से 17 करोड़ यानी 25 फीसदी बजट खर्च हुआ है. तो वहीं, सबसे बड़ा अलॉटमेंट के साथ ग्रामीण विकास का कैपिटल एक्सपेंडिचर में 2940 करोड़ का बजट प्रावधान है, जिसमें से 1263 करोड़ का बजट खर्च हुआ है जो कि कुल बजट प्रावधान का 42 फीसदी है.

चंदन राम दास- कैबिनेट मंत्री चंदन राम दास के पास ट्रांसपोर्ट की अहम जिम्मेदारी है. तो वहीं, ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट में कैपिटल एक्सपेंडिचर 62 करोड़ का प्रावधान है, जिसमें से 36 करोड़ यानी बजट का 58% फीसदी साल के आखिरी तक खर्च किया जा चुका है.

प्रेमचंद अग्रवाल- कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के शहरी विकास विभाग में कैपिटल एक्सपेंडिचर के लिए 694 करोड़ के बजट का प्रावधान है, जिसमें से 192 करोड़ रुपये यानी बजट का 27 फीसदी खर्च हो चुका है. इसके अलावा उनके पास वित्त विभाग की भी जिम्मेदारी है. वित्त विभाग में भी इस बार कैपिटल एक्सपेंडिचर के लिए अच्छा खासा 1,433 करोड़ का बजट अलॉट किया गया है इसमें से 148 करोड़ यानी केवल 10 फीसदी ही खर्च हो पाया है.

सौरभ बहुगुणा- प्रदेश के सबसे युवा कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा के पास नव निर्माण और अवस्थापना से जुड़े कोई भी महत्वपूर्ण विभाग नहीं हैं. यही वजह है कि सौरभ बहुगुणा के ज्यादातर विभागों में कैपिटल एक्सपेंडिचर के लिए हल्का फुल्का ही बजट रखा गया है और उनकी सभी विभागों में परफॉर्मेंस ठीक ठाक ही है.

कुल मिलाकर देखा जाए तो उत्तराखंड सरकार द्वारा 1 अप्रैल 2022 से 25 दिसम्बर 2022 तक किये गये बजट खर्च के आंकड़ों के अनुसार पूजींगत खर्च यानी कैपिटल एक्सपेंडीचर में 11988 करोड़ में से केवल 3850 करोड़ ही खर्च हो पाया है, जो कि कुल बजट का केवल 32.12 फीसदी खर्च है.

साल 2022 अपने आखिरी समय में तो वहीं वित्तीय वर्ष की बात करें तो इस वित्तीय वर्ष को खत्म होने में केवल 3 महीने और बाकी तो क्या ऐसे में सरकार बाकी बचा 68 फीसदी बजट खर्च कर पाएगी. ये अपने आप में बड़ा सवाल है. यही वजह है कि वित्त सचिव द्वारा सभी विभागों को बार बार रिमाइंडर भेजा जा रहा है और लगातार मुख्य सचिव स्तर पर भी सभी विभागों की बजट खर्च को लेकर समीक्षा की जा रही है. वित्त सचिव का कहना है कि उनके द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा है कि वित्तीय वर्ष के खत्म होने से पहले सभी विभाग अपने बजट का प्रदेश के निर्माण और विकास के लिए इस्तेमाल करें.

वहीं बजट खर्च में लापरवाही और प्रदेश में विकास में आ रही इस हीलाहवाली को लेकर खुद मुख्यमंत्री ने संज्ञान लिया है और सभी विभागों और मंत्रियों को ससमय बजट खर्च करने को लेकर सख्त निर्देश दिये हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि सभी विभागों को अपने अलॉट बजट को प्रदेश के विकास के क्रम में सही तरीके से खर्च करना चाहिए, कहीं पर भी विकास कार्यों में लापरवाही या फिर हीलाहवाली नहीं होनी चाहिए, उन्होंने कहा कि उनके द्वारा लगातार सभी विभागों की समीक्षा की जा रही है और इन बैठकों में अधिकारियों को कड़ाई से सख्त निर्देश भी दिये जा रहैं हैं, कि निर्माण कार्यों में किसी तरह की देरी ना हो और जल्द से जल्द कार्रवाई की जाए.

उत्तराखंड में कौन सा मंत्रालय राज्य निर्माण में अव्वल और कौन फिसड्डी

देहरादून: प्रदेश के विकास के लिए राज्य सरकार हर सार करोड़ों रुपये का बजट जारी करती है. सरकार के बजट के आंकड़े प्रदेश के इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का एक बड़ा इंडिकेटर होते हैं. खास तौर पर पूंजीगत बजट खर्च यानी कैपिटल एक्सपेंडिचर का डेटा उत्तराखंड सरकार का क्या कहता है ? आइए हम आपको बताते हैं. उत्तराखंड में 23 मार्च 2022 को सरकार गठन के बाद 1 अप्रैल, 2022 से लेकर 25 दिसंबर 2022 तक के बजट खर्च के अगर आंकड़े उठा कर देखा जाए तो इस दौरान कुल 63,173 करोड़ का बजट लाया गया, जिसमें से राजस्व मद में 51,185 करोड़ रुपये और पूंजीगत मद में 11,988 करोड़ के बजट का प्रावधान किया गया.

यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि प्रदेश में विकास कार्यों, नव निर्माण और अवस्थापना विकास में किया जाने वाला खर्च पूंजीगत खर्च यानी कैपिटल एक्सपेंडिचर के तहत आता है. यही बजट खर्च प्रदेश के लिए विकास का संकेतांक होता है. तो वहीं, इसके अलावा राजस्व खर्च यानी सरकार चलाने के लिए होने वाले खर्च में 51,185 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जिसके तहत अधिकारी कर्मचारियों के वेतन, भत्ते, पेंशन, मजदूरी, कार्यालय खर्च इत्यादी आता है.

64 विभागों में से कैपिटल एक्सपेंडिचर के लिए इन विभागों का बजट प्रावधान सबसे बड़ा: प्रदेश के पूंजीगत विकास के लिए लाए गए 11,988 करोड़ के बजट में विभागवार अगर नजर डालें, तो नव निर्माण, विकास और अवस्थापना विकास को दृष्टिगत रखते हुए सरकार के 64 विभागों में यह टॉप 10 विभाग हैं, जिनका बजट सबसे ज्यादा है.

सबसे ज्यादा बजट वाले विभाग

budget expenditure in uttarakhand
सबसे ज्यादा खर्च वाले विभाग

बजट खर्च ना कर पाने वाले फिसड्डी विभाग

budget expenditure in uttarakhand
उत्तराखंड के फिसड्डी विभाग

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि ये सभी वो विभाग हैं, जिनका बजट अन्य विभागों से काफी बड़ा है. यानी साफ है कि इन विभागों पर प्रदेश के विकास की ज्यादा जिम्मेदारी है लेकिन ये सभी विभाग अपने बजट का कुल 50 फीसदी भी खर्च नहीं कर पाए हैं. ऐसे में आप विकास की रफ्तार का आकलन कर सकते हैं.

बेहतर परफॉर्मेंस करने वाले विभाग

budget expenditure in uttarakhand
बेहतर परफॉर्मेंस वाले विभाग

उत्तराखंड में बजट खर्च के आधार पर मंत्रियों का परफॉर्मेंस-

रेखा आर्य- बजट खर्च न करने में सबसे खराब स्थिति महिला बाल विकास मंत्री रेखा आर्य की है. खुद महिला बाल विकास में अवस्थापना विकास के लिए 56 करोड़ का बजट है, लेकिन ना तो कोई बजट रिलीज किया गया और ना ही कुछ खर्च किया गया. यानी निल बटे सन्नाटा. इसके अलावा रेखा आर्य के खेल विभाग में भी खेल विकास के लिए 115 करोड़ का बजट का प्रावधान है, लेकिन खर्च किया केवल 30 करोड़ यानी केवल 26 फीसदी, जिसे कह सकते हैं कि एक चौथाई बजट ही खर्च हो पाया है. हालांकि अपने खाद्य आपूर्ति विभाग में रेखा आर्य बजट खर्च करने के मामले में थोड़ा सा बेहतर कर पाईं हैं.

सतपाल महाराज- बजट खर्च ना कर पाने में दूसरा नंबर कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज का है. सतपाल महराज के पास प्रदेश के अवस्थापना विकास से जुड़े महत्वपूर्ण विभागों में पीडब्ल्यूडी, पर्यटन, सिंचाई, पंचायती राज विभाग जैसे तमाम विभाग है. सबसे बुरा हाल सिंचाई विभाग में है, जहां सिंचाई विभाग के लिए 677 करोड़ का बजट प्रावधान है लेकिन खर्च केवल 106 करोड़ यानी सबसे कम 15 फीसदी बजट खर्च कर पाये हैं. इसके बाद पर्यटन विकास में केवल 30 फीसदी उस से भी महत्वपूर्ण लोक निर्माण विभाग में बजट का केवल 36 फीसदी ही खर्च कर पाए हैं, हालांकि इनके विभाग पंचायती राज में 30 करोड़ का पूरा बजट खर्च कर दिया गया है.

सुबोध उनियाल- कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल की भी स्थिति प्रदेश के सबसे बड़े विभाग वन विभाग के अवस्थापना के बजट खर्च में सबसे खराब है. वन विभाग के कैपिटल एक्सपेंडिचर का बजट प्राविधान 94 करोड़ का है, लेकिन वन विभाग केवल 9 करोड़ यानी प्रोविजन बजट का केवल 9.57 फीसदी ही खर्च कर पाए हैं. हालांकि तकनीकी शिक्षा में वह 52 करोड़ के बजट में से 35 करोड़ खर्च करने के बाद 67.31% बजट साल के आखिरी तक खर्च कर चुके हैं.

धन सिंह रावत- कैबिनेट मंत्री धन सिंह के पास शिक्षा और स्वास्थ्य दो महत्वपूर्ण विभाग हैं. केवल पहले स्वास्थ्य की बात कर ली जाए, तो स्वास्थ्य विभाग में अवस्थापना का केवल 46 करोड़ के बजट का प्रावधान है, जिसमें से 26 फीसदी खर्च हुआ है. तो वहीं, चिकित्सा शिक्षा में अवस्थापना को लेकर बड़े बजट का प्रावधान हैस जिसमें से 350 करोड़ के बजट में से 53 फीसदी बजट खर्च हो चुका है. तो वहीं अब शिक्षा की बात की जाए तो माध्यमिक शिक्षा का बुरा हाल है और माध्यमिक शिक्षा में 290 करोड़ के बजट में से केवल 70 करोड़ खर्च हुआ है, जो कि कुल प्रावधान बजट का केवल 24 फीसदी बजट खर्च हो पाया है.

गणेश जोशी- कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी के विभागों के बजट खर्च का आंकड़ा कुछ ज्यादा सही तो नहीं है लेकिन ऊपर के मंत्रियों की तुलना में गणेश जोशी बजट खर्च के मामले में थोड़ा सा बेहतर कर पाए हैं. उनके कृषि विभाग में 68 करोड़ में से 17 करोड़ यानी 25 फीसदी बजट खर्च हुआ है. तो वहीं, सबसे बड़ा अलॉटमेंट के साथ ग्रामीण विकास का कैपिटल एक्सपेंडिचर में 2940 करोड़ का बजट प्रावधान है, जिसमें से 1263 करोड़ का बजट खर्च हुआ है जो कि कुल बजट प्रावधान का 42 फीसदी है.

चंदन राम दास- कैबिनेट मंत्री चंदन राम दास के पास ट्रांसपोर्ट की अहम जिम्मेदारी है. तो वहीं, ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट में कैपिटल एक्सपेंडिचर 62 करोड़ का प्रावधान है, जिसमें से 36 करोड़ यानी बजट का 58% फीसदी साल के आखिरी तक खर्च किया जा चुका है.

प्रेमचंद अग्रवाल- कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के शहरी विकास विभाग में कैपिटल एक्सपेंडिचर के लिए 694 करोड़ के बजट का प्रावधान है, जिसमें से 192 करोड़ रुपये यानी बजट का 27 फीसदी खर्च हो चुका है. इसके अलावा उनके पास वित्त विभाग की भी जिम्मेदारी है. वित्त विभाग में भी इस बार कैपिटल एक्सपेंडिचर के लिए अच्छा खासा 1,433 करोड़ का बजट अलॉट किया गया है इसमें से 148 करोड़ यानी केवल 10 फीसदी ही खर्च हो पाया है.

सौरभ बहुगुणा- प्रदेश के सबसे युवा कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा के पास नव निर्माण और अवस्थापना से जुड़े कोई भी महत्वपूर्ण विभाग नहीं हैं. यही वजह है कि सौरभ बहुगुणा के ज्यादातर विभागों में कैपिटल एक्सपेंडिचर के लिए हल्का फुल्का ही बजट रखा गया है और उनकी सभी विभागों में परफॉर्मेंस ठीक ठाक ही है.

कुल मिलाकर देखा जाए तो उत्तराखंड सरकार द्वारा 1 अप्रैल 2022 से 25 दिसम्बर 2022 तक किये गये बजट खर्च के आंकड़ों के अनुसार पूजींगत खर्च यानी कैपिटल एक्सपेंडीचर में 11988 करोड़ में से केवल 3850 करोड़ ही खर्च हो पाया है, जो कि कुल बजट का केवल 32.12 फीसदी खर्च है.

साल 2022 अपने आखिरी समय में तो वहीं वित्तीय वर्ष की बात करें तो इस वित्तीय वर्ष को खत्म होने में केवल 3 महीने और बाकी तो क्या ऐसे में सरकार बाकी बचा 68 फीसदी बजट खर्च कर पाएगी. ये अपने आप में बड़ा सवाल है. यही वजह है कि वित्त सचिव द्वारा सभी विभागों को बार बार रिमाइंडर भेजा जा रहा है और लगातार मुख्य सचिव स्तर पर भी सभी विभागों की बजट खर्च को लेकर समीक्षा की जा रही है. वित्त सचिव का कहना है कि उनके द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा है कि वित्तीय वर्ष के खत्म होने से पहले सभी विभाग अपने बजट का प्रदेश के निर्माण और विकास के लिए इस्तेमाल करें.

वहीं बजट खर्च में लापरवाही और प्रदेश में विकास में आ रही इस हीलाहवाली को लेकर खुद मुख्यमंत्री ने संज्ञान लिया है और सभी विभागों और मंत्रियों को ससमय बजट खर्च करने को लेकर सख्त निर्देश दिये हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि सभी विभागों को अपने अलॉट बजट को प्रदेश के विकास के क्रम में सही तरीके से खर्च करना चाहिए, कहीं पर भी विकास कार्यों में लापरवाही या फिर हीलाहवाली नहीं होनी चाहिए, उन्होंने कहा कि उनके द्वारा लगातार सभी विभागों की समीक्षा की जा रही है और इन बैठकों में अधिकारियों को कड़ाई से सख्त निर्देश भी दिये जा रहैं हैं, कि निर्माण कार्यों में किसी तरह की देरी ना हो और जल्द से जल्द कार्रवाई की जाए.

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