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ऐतिहासिक भद्रराज मेले में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, यहां भगवान बलराम ने राक्षस का किया था वध

पहाड़ों की रानी मसूरी से 15 किमी की दूरी भगवान भद्रराज का मंदिर स्थित है. भद्रराज मंदिर भगवान कृष्‍ण के छोटे भाई बलभद्र को समर्पित है. मान्यता है कि भगवान बलराम ने यहां पर राक्षस का वध किया. साथ ही चरवाहों के साथ पशुओं को भी चराया था.

Bhadraj temple in Mussoorie
भद्रराज मंदिर
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Published : Aug 17, 2022, 3:37 PM IST

Updated : Aug 17, 2022, 3:47 PM IST

मसूरीः ऐतिहासिक भद्रराज मेले का समापन हो गया है. इस मेले में जौनसार, पछवादून, जौनपुर, मसूरी, विकासनगर, देहरादून समेत समीपवर्ती ग्रामीण इलाकों से हजारों श्रद्धालुओं ने शिरकत की. इस दौरान श्रद्धालुओं ने भगवान बलभद्र का दुग्धाभिषेक किया. साथ ही दूध, मक्खन और घी से पूजा अर्चना कर अपने परिवार की खुशहाली, पशुधन और फसलों की रक्षा की मनौतियां मांगी.

बता दें कि उत्तराखंड में भगवान बलराम का एकमात्र मंदिर मसूरी से 15 किमी की दूरी पर दुधली भद्रराज पहाड़ी पर स्थित है. यह मंदिर साढ़े सात हजार फीट की ऊंचाई पर है. यहां पर दो दिवसीय पारंपरिक मेला लगा था. जो सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रंगारंग प्रस्तुतियों के साथ संपन्न हो गया. इस दौरान श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी.

ऐतिहासिक भद्रराज मेले में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़.

मवेशियों को खा जाता था राक्षसः भद्रराज मंदिर समिति के अध्यक्ष राजेश नौटियाल ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि दुधली पहाड़ी पर पछवादून व जौनपुर की सिलगांव पट्टी के ग्रामीण चौमासा के दिनों में अपने पशुओं को लेकर उक्त पहाड़ी पर चले जाते थे, लेकिन पहाड़ी पर एक राक्षस उनके पशुओं को खा जाता था. मवेशी पालकों को भी परेशान करता था, जिस पर ग्रामीण भगवान बलराम के पास सहायता के लिए पहुंचे.

भगवान बलराम ने ग्रामीणों की मवेशियों को चराया थाः भगवान बलराम ने ग्रामीणों को मायूस नहीं किया और पहाड़ी पर जाकर राक्षस का अंत कर दिया. इतना ही नहीं चरवाहों के साथ लंबे समय तक पशुओं को भी चराया था. यही वजह है कि ग्रामीणों ने यहां पर भगवान बलराम का मंदिर बनाया और उनकी पूजा शुरू की. जो आज भी जारी है. ऐसी मान्यता है कि भगवान बलभद्र आज भी उनके पशुओं की रक्षा करते हैं.

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है घी संक्रांति, जानिए क्या है महत्व

पशुपालकों के देवता माने जाते हैं भगवान भद्रराजः एक अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार यह मंदिर भगवान कृष्ण के बड़े भाई भगवान बलराम को समर्पित है. यहां भद्रराज के रूप में बलराम जी की पूजा होती है. भगवान भद्रराज को पछवादून, मसूरी और जौनसार क्षेत्र के पशुपालकों का देवता माना जाता है.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वापर युग में जब भगवान बलराम, ऋषि वेश में इस क्षेत्र से निकल रहे थे, तब उस समय इस क्षेत्र में पशुओं की भयानक बीमारी फैली हुई थी. ऋषि मुनि को आपने क्षेत्र से निकलता देख लोगों ने उन्हें रोक लिया और पशुओं को ठीक करने का निवेदन किया. तब बलराम जी ने उनके पशुओं को ठीक कर दिया. लोगों ने उनकी जय जयकार की और यही रहने की विनती की. तब बाबा कुछ समय उनके पास रुक गए. उनको आशीर्वाद दिया कि कलयुग में वो यहां मंदिर में भद्रराज देवता (Bhadraj temple in Mussoorie) के नाम से रहेंगे.

भद्रराज मंदिर को पर्यटन मेले के नक्शे पर स्थान देने की मांगः वहीं, बीते 2 साल कोरोना महामारी के चलते भद्रराज मेला सांकेतिक हुआ है, लेकिन इस बार सभी सामाजिक कार्य पूरे उत्साह के साथ पूरा हुआ. मसूरी सभासद जसबीर कौर ने सरकार से मांग की कि भगवान भद्रराज मेले को पर्यटन मेले के नक्शे पर स्थान दिया जाए. जिससे यहां पर हजारों की तादाद में आने वाले श्रद्वालुओं को सुविधा मिल सके. साथ ही पर्यटक मंदिर और आसपास के दृश्य और वातावरण का आनंद उठा सकें.

मसूरीः ऐतिहासिक भद्रराज मेले का समापन हो गया है. इस मेले में जौनसार, पछवादून, जौनपुर, मसूरी, विकासनगर, देहरादून समेत समीपवर्ती ग्रामीण इलाकों से हजारों श्रद्धालुओं ने शिरकत की. इस दौरान श्रद्धालुओं ने भगवान बलभद्र का दुग्धाभिषेक किया. साथ ही दूध, मक्खन और घी से पूजा अर्चना कर अपने परिवार की खुशहाली, पशुधन और फसलों की रक्षा की मनौतियां मांगी.

बता दें कि उत्तराखंड में भगवान बलराम का एकमात्र मंदिर मसूरी से 15 किमी की दूरी पर दुधली भद्रराज पहाड़ी पर स्थित है. यह मंदिर साढ़े सात हजार फीट की ऊंचाई पर है. यहां पर दो दिवसीय पारंपरिक मेला लगा था. जो सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रंगारंग प्रस्तुतियों के साथ संपन्न हो गया. इस दौरान श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी.

ऐतिहासिक भद्रराज मेले में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़.

मवेशियों को खा जाता था राक्षसः भद्रराज मंदिर समिति के अध्यक्ष राजेश नौटियाल ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि दुधली पहाड़ी पर पछवादून व जौनपुर की सिलगांव पट्टी के ग्रामीण चौमासा के दिनों में अपने पशुओं को लेकर उक्त पहाड़ी पर चले जाते थे, लेकिन पहाड़ी पर एक राक्षस उनके पशुओं को खा जाता था. मवेशी पालकों को भी परेशान करता था, जिस पर ग्रामीण भगवान बलराम के पास सहायता के लिए पहुंचे.

भगवान बलराम ने ग्रामीणों की मवेशियों को चराया थाः भगवान बलराम ने ग्रामीणों को मायूस नहीं किया और पहाड़ी पर जाकर राक्षस का अंत कर दिया. इतना ही नहीं चरवाहों के साथ लंबे समय तक पशुओं को भी चराया था. यही वजह है कि ग्रामीणों ने यहां पर भगवान बलराम का मंदिर बनाया और उनकी पूजा शुरू की. जो आज भी जारी है. ऐसी मान्यता है कि भगवान बलभद्र आज भी उनके पशुओं की रक्षा करते हैं.

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पशुपालकों के देवता माने जाते हैं भगवान भद्रराजः एक अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार यह मंदिर भगवान कृष्ण के बड़े भाई भगवान बलराम को समर्पित है. यहां भद्रराज के रूप में बलराम जी की पूजा होती है. भगवान भद्रराज को पछवादून, मसूरी और जौनसार क्षेत्र के पशुपालकों का देवता माना जाता है.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वापर युग में जब भगवान बलराम, ऋषि वेश में इस क्षेत्र से निकल रहे थे, तब उस समय इस क्षेत्र में पशुओं की भयानक बीमारी फैली हुई थी. ऋषि मुनि को आपने क्षेत्र से निकलता देख लोगों ने उन्हें रोक लिया और पशुओं को ठीक करने का निवेदन किया. तब बलराम जी ने उनके पशुओं को ठीक कर दिया. लोगों ने उनकी जय जयकार की और यही रहने की विनती की. तब बाबा कुछ समय उनके पास रुक गए. उनको आशीर्वाद दिया कि कलयुग में वो यहां मंदिर में भद्रराज देवता (Bhadraj temple in Mussoorie) के नाम से रहेंगे.

भद्रराज मंदिर को पर्यटन मेले के नक्शे पर स्थान देने की मांगः वहीं, बीते 2 साल कोरोना महामारी के चलते भद्रराज मेला सांकेतिक हुआ है, लेकिन इस बार सभी सामाजिक कार्य पूरे उत्साह के साथ पूरा हुआ. मसूरी सभासद जसबीर कौर ने सरकार से मांग की कि भगवान भद्रराज मेले को पर्यटन मेले के नक्शे पर स्थान दिया जाए. जिससे यहां पर हजारों की तादाद में आने वाले श्रद्वालुओं को सुविधा मिल सके. साथ ही पर्यटक मंदिर और आसपास के दृश्य और वातावरण का आनंद उठा सकें.

Last Updated : Aug 17, 2022, 3:47 PM IST
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