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केदारनाथ में फिर आ सकती है 2013 जैसी तबाही, फिर तैयार हो रही 'जिम्मेदार' झील

केदारनाथ आपदा की मुख्य वजह रही चोराबाड़ी झील को दोबारा पुनर्जीवित होने का दावे को वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने नकार दिया है. वैज्ञानिक ने बताया की वो इस दावे की अपने स्तर से जांच करेंगे.

झील.
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Published : Jun 21, 2019, 9:13 AM IST

Updated : Jun 21, 2019, 7:56 PM IST

देहरादून: केदार धाम में साल 2013 में आयी आपदा के बाद तहस-नहस हुई केदारघाटी का दोबारा से विकास हो गया है. लेकिन, केदारनाथ त्रासदी की मुख्य वजह मानी जाने वाली चोराबाड़ी झील के पुनर्जीवित होने का दावा किया जा रहा है. दरअसल, केदारनाथ धाम में स्वास्थ्य सेवाएं दे रहे डॉक्टरों के एक समूह ने केदारनाथ धाम से करीब 5 किलोमीटर ऊपर चोराबाड़ी झील के तैयार होने की जानकारी वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों को दी. अब वाडिया की टीम इस झील की जांच करने की बात कह रही है.

मिली जानकारी के अनुसार डॉक्टरों की टीम ने 16 जून को राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल, पुलिस और जिला प्रशासन की एक टीम के साथ चोराबाड़ी झील का दौरा किया था. जहा उन्होंने देखा कि झील फिर से पानी से घिर गई है. मौजूदा समय में चोराबाड़ी झील लगभग 250 मीटर लंबी और 150 मीटर चौड़ी बताई जाती है. ये झील बारिश, पिघलती बर्फ और हिमस्खलन से भर जाती है. रुद्रप्रयाग जिला प्रशासन ने झील को लेकर देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी को अलर्ट कर दिया है.

पढ़ें- राम मंदिर निर्माण को लेकर महामंडलेश्वर स्वामी श्यामदेवाचार्य का बड़ा बयान, सुप्रीम कोर्ट को बताया रोड़ा

डॉक्टरों के समूह द्वारा देखी गई चोराबाड़ी झील को गांधी सरोवर भी कहा जाता है, जो साल 2013 में आयी विनाशकारी आपदा के बाद लगभग खत्म हो गई थी. और क्षेत्र समतल भूमि के रूप में दिखाई देने लगा था. इसके बाद 2013 की आपदा में झील की भूमिका का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि झील फिर से पुनर्जीवित नहीं होगी.

वहीं, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के भू-वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल ने कहा कि जिस झील के बारे में उन्हें जानकारी मिली है वो चोराबाड़ी नहीं हो सकती. क्योंकि, चोराबाड़ी झील केदारनाथ से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर है. और, जिस झील के बारे में बताया जा रहा है वो ग्लेशियर के बीच में बनी हुई, जिसकी दूरी केदारनाथ से 5 किलोमीटर की है. उन्होंने कहा कि चोराबाड़ी झील के जीवित होने की कोई आशंका नहीं है.

ग्लेशियर में चोराबाड़ी झील मिलने का दावा.

पढ़ें- अरबपति गुप्ता बंधुओं के साथ ही मेहमानों को योग कराएंगे आचार्य बालकृष्ण

भू-वैज्ञानिक की मानें तो ये कोई अन्य ग्लेशियर झील हो सकती है, जिसकी मौके पर जाकर जांच की जाएगी. वैज्ञानिक ने बताया कि जब ग्लेशियर पिघलता है तो जगह-जगह छोटे-छोटे लेख बन जाते हैं। इस साल ग्लेशियरों में ज्यादा लेख बनने के आसार हैं, क्योंकि इस बार बहुत ज्यादा बारिश और बर्फबारी हुई है. इस वजह से अभी ग्लेशियर पिघल रहे हैं और इकट्ठा होकर छोटे-छोटे लेक बना लेते हैं. लेकिन इनसे कोई खतरा नहीं होता.

बता दें कि साल 2013 की आपदा में केदारनाथ में बड़े पैमाने में हुए विनाश के लिए चोराबाड़ी झील का फटना मुख्य कारण माना गया था. क्योंकि मंदाकिनी घाटी में बाढ़ आने के कारण, मलबे और बोल्डर के साथ मिश्रित झील के पानी ने मंदिर शहर में व्यापक विनाश किया था.

देहरादून: केदार धाम में साल 2013 में आयी आपदा के बाद तहस-नहस हुई केदारघाटी का दोबारा से विकास हो गया है. लेकिन, केदारनाथ त्रासदी की मुख्य वजह मानी जाने वाली चोराबाड़ी झील के पुनर्जीवित होने का दावा किया जा रहा है. दरअसल, केदारनाथ धाम में स्वास्थ्य सेवाएं दे रहे डॉक्टरों के एक समूह ने केदारनाथ धाम से करीब 5 किलोमीटर ऊपर चोराबाड़ी झील के तैयार होने की जानकारी वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों को दी. अब वाडिया की टीम इस झील की जांच करने की बात कह रही है.

मिली जानकारी के अनुसार डॉक्टरों की टीम ने 16 जून को राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल, पुलिस और जिला प्रशासन की एक टीम के साथ चोराबाड़ी झील का दौरा किया था. जहा उन्होंने देखा कि झील फिर से पानी से घिर गई है. मौजूदा समय में चोराबाड़ी झील लगभग 250 मीटर लंबी और 150 मीटर चौड़ी बताई जाती है. ये झील बारिश, पिघलती बर्फ और हिमस्खलन से भर जाती है. रुद्रप्रयाग जिला प्रशासन ने झील को लेकर देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी को अलर्ट कर दिया है.

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डॉक्टरों के समूह द्वारा देखी गई चोराबाड़ी झील को गांधी सरोवर भी कहा जाता है, जो साल 2013 में आयी विनाशकारी आपदा के बाद लगभग खत्म हो गई थी. और क्षेत्र समतल भूमि के रूप में दिखाई देने लगा था. इसके बाद 2013 की आपदा में झील की भूमिका का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि झील फिर से पुनर्जीवित नहीं होगी.

वहीं, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के भू-वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल ने कहा कि जिस झील के बारे में उन्हें जानकारी मिली है वो चोराबाड़ी नहीं हो सकती. क्योंकि, चोराबाड़ी झील केदारनाथ से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर है. और, जिस झील के बारे में बताया जा रहा है वो ग्लेशियर के बीच में बनी हुई, जिसकी दूरी केदारनाथ से 5 किलोमीटर की है. उन्होंने कहा कि चोराबाड़ी झील के जीवित होने की कोई आशंका नहीं है.

ग्लेशियर में चोराबाड़ी झील मिलने का दावा.

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भू-वैज्ञानिक की मानें तो ये कोई अन्य ग्लेशियर झील हो सकती है, जिसकी मौके पर जाकर जांच की जाएगी. वैज्ञानिक ने बताया कि जब ग्लेशियर पिघलता है तो जगह-जगह छोटे-छोटे लेख बन जाते हैं। इस साल ग्लेशियरों में ज्यादा लेख बनने के आसार हैं, क्योंकि इस बार बहुत ज्यादा बारिश और बर्फबारी हुई है. इस वजह से अभी ग्लेशियर पिघल रहे हैं और इकट्ठा होकर छोटे-छोटे लेक बना लेते हैं. लेकिन इनसे कोई खतरा नहीं होता.

बता दें कि साल 2013 की आपदा में केदारनाथ में बड़े पैमाने में हुए विनाश के लिए चोराबाड़ी झील का फटना मुख्य कारण माना गया था. क्योंकि मंदाकिनी घाटी में बाढ़ आने के कारण, मलबे और बोल्डर के साथ मिश्रित झील के पानी ने मंदिर शहर में व्यापक विनाश किया था.

Intro:नोट --- फीड FTP से भेजी गयी है, फोल्डर नाम,
 uk_ddn_ Danger from lake_vis1_7205803


summary - केदारनाथ में आयी आपदा के मुख्य वजह वाले चोराबाड़ी झील को दोबारा पुर्नजीवित होने का दावे को वाडिया के वैज्ञानिकों ने नकारा, वाडिया के वैज्ञानिक जाएंगे जांच करने....


Intro - साल 2013 में केदारनाथ धाम में आयी आपदा के बाद तहस - नहस हो गई केदारघाटी को यू तो फिर से खड़ा कर दिया गया है। केदारनाथ में आयी आपदा के मुख्य वजह वाले  चोराबाड़ी झील को दोबारा पुर्नजीवित होने का दावा किया जा रहा है। बीते दिनों केदारनाथ धाम में स्वास्थ्य कैम्प चला रहे डॉक्टरों ने केदारनाथ धाम से करीब 5 किलोमीटर ऊपर ग्लेशियर में बने एक झील को चोराबाड़ी झील होने का दावा किया है। जिसके बाद इस झील की जानकारी वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों को दी गयी है, जल्द ही वाडिया की टीम इस झील की जांच करने जा रही है। 


Body:केदारनाथ शहर में स्वास्थ्य सेवा देने वाले डॉक्टरों की एक समूह ने ऐसा दावा किया है। विशेष रूप से, झील, जिसे गांधी सरोवर भी कहा जाता है, जो साल 2013 में आई विनाशकारी आपदा के बाद लगभग गायब हो गई थी और क्षेत्र समतल भूमि के रूप में दिखाई देने लगा था। हालांकि, डॉक्टर ने कहा कि उन्हें केदारनाथ मंदिर से लगभग पांच किमी दूर स्थित झील फिर से पानी से भर गई। उन्होंने जिला प्रशासन को सूचित किया है। जिसके बाद रुद्रप्रयाग जिला प्रशासन ने देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी को अलर्ट किया है। मिली जानकारी के अनुसार डॉक्टरों की टीम ने 16 जून को राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल, पुलिस और जिला प्रशासन की एक टीम के साथ चोराबाड़ी झील का दौरा किया था, जहा उन्होंने देखा कि झील फिर से पानी से घिर गई। और मौजूदा समय मे चोराबाड़ी झील लगभग 250 मीटर लंबी और 150 मीटर चौड़ी बताई जाती है। हालांकि ये झील बारिश, पिघलती बर्फ और हिमस्खलन सामग्री से भर जाती है। 2013 की आपदा में झील और इसकी भूमिका का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि झील को फिर से पुनर्जीवित नहीं किया जाएगा।

बाइट - डॉ प्रदीप भारद्वाज, सीईओ, सिक्स सिग्मा हेल्थ कैम्प, केदारनाथ

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के भूवैज्ञानिक वैज्ञानिक डॉ डी पी डोभाल ने बताया कि कुछ दिन पहले रुद्रप्रयाग जिला प्रशासन ने हमें एक जानकारी बताई थी जिसके तहत कुछ लोग केदारनाथ से करीब 5 किलोमीटर ऊपर गए थे जहां ग्लेशियर के बीच में एक झील बने होने की बात बताई है। लेकिन जो झील बताई जा रही है, वह चोराबाड़ी झील नहीं है क्योंकि चोराबाड़ी झील केदारनाथ से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर है। लेकिन जिस झील के बारे में बताया जा रहा है कि जो ये झील ग्लेशियर के बीच में बनी हुई है यह केदारनाथ से 5 किलोमीटर की दूरी पर है। 


साथ ही वाडिया के वैज्ञानिक ने बताया कि वो केदारनाथ में पिछले 10 सालों से काम कर रहे हैं, और चोराबाड़ी झील के पुनरुद्धार की कोई भी संभावना नहीं है। क्योकि साल 2013 में आयी केदारनाथ धाम में आपदा से चोराबाड़ी झील पूरी तरह से तहस-नहस हो गया था। अब ऐसे में चोराबाड़ी झील के पुनजीवन का कोई सवाल ही पैदा नही होता है। साथ ही बताया कि उन्हें लगता है कि यह कुछ अन्य ग्लेशियर झील होनी चाहिए, लेकिन वो मौके पर जाकर ही इस पर टिप्पणी कर पाएंगे। और साल 2013 की आपदा में केदारनाथ में बड़े पैमाने पर विनाश के लिए चोराबाड़ी झील का फटना मुख्य कारण माना गया था। क्योकि मंदाकिनी घाटी में बाढ़ आने के कारण, मलबे और बोल्डर के साथ मिश्रित झील के पानी ने मंदिर शहर में व्यापक विनाश किया था।


वैज्ञानिक ने बताया कि जब ग्लेशियर पिघलता है तो जगह-जगह छोटे-छोटे लेख बन जाते हैं। इस साल ग्लेशियरों में ज्यादा लेख बनने के आसार हैं क्योंकि इस बार बहुत ज्यादा बारिश और बर्फबारी हुई है जिस वजह से अभी ग्लेशियर पिघल रहे हैं और वही इकट्ठा होकर छोटे-छोटे लेख बना लेते हैं लेकिन इन लेखों से कोई खतरे वाली बात नहीं है। लेकिन जो चोराबाड़ी दोबारा बनने की बात की जा रही है ऐसी कोई बात नहीं है। और आपदा के बाद जारी किए गए रिपोर्ट में पहले की कह दिया गया था कि चोरबारी झील दोबारा पुनर्जीवित नही हो सकती है।




Conclusion:
Last Updated : Jun 21, 2019, 7:56 PM IST
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