विकासनगर: जौनसार बावर में माघ मरोज पर्व की शुरुआत परंपरागत तरीके से हो गई है. इस पर्व को लेकर क्षेत्र के लोगों में काफी उत्साह देखा जा रहा है. वहीं इस पर्व के दौरान पशु बलि देने की भी प्रथा है. अगले एक माह तक क्षेत्र के गांव लोक संस्कृति से गुलजार रहेंगे.
स्थानीय परंपरा के अनुसार 27 गते पौष को बावर में किरसाट का त्योहार मनाया गया. जिसके बाद समूचे जनजाति क्षेत्र में माघ मरोज पर्व का आगाज हुआ. जौनसार बावर में बकरे काटे जाने की खुशी में लोगों ने परंपरागत अंदाज में जश्न मनाया. क्षेत्र में घर-घर माघ मरोज पर्व के जश्न को मनाने के लिए दावतों का दौर शुरू हो गया. माघ मरोज के जश्न में नौकरी पेशा करने वाले लोग भी ग्रामीणों के साथ मेहमान नवाजी में शिरकत किया.
लोक मान्यता अनुसार वर्षो पूर्व जौनसार बावर में किरमिर नामक राक्षस का आतंक था. टोंस नदी में रहने वाले राक्षस को हर दिन एक बलि चाहिए थी. राक्षस के आतंक से निजात पाने के लिए लोगों ने महासु देवता की आराधना की. मान्यता के अनुसार 26 गते पौष को महासू महाराज के सेनापति कईलू महाराज ने राक्षस का वध कर उसके टुकड़े टोंस नदी में बहा दिए. उसी दिन से हनोल के प्रसिद्ध धाम महासू मंदिर के पास कईलू महाराज के नाम चुराच का बकरा का मांस नदी में फेंकते हैं.
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कनबुआ गांव के स्याणा शांत सिंह पंवार ने बताया कि सदियों से पर्व मनाने की परंपरा है. माघ मरोज पर्व महासू देवता के सहायक देवी देवता के नाम से बकरे का बलिदान दिया जाता है. 28 गते पौष को संपूर्ण क्षेत्र में माघ मरोज पर्व का जश्न मनाने की परंपरा है नौकरी पेशा लोग भी घरों को आते हैं और पर्व का जश्न मनाते हैं.
परंपरा के अनुसार मरोज पर्व पर परिवार की विवाहित लड़की को उसकी ससुराल में बकरे का बांठी हिस्सा पहुंचाना जरूरी होता है. विवाहित लड़की के ससुराल बांठी ना पहुंचने पर दोनों परिवारों का रिश्ता समाप्त माना जाता है.