देहरादून: 8 नवंबर 2016 के बाद एक बार फिर देश के लोग लाइन में खड़े हैं. 8 नवंबर 2016 में लोग नए नोट लेने और पुराने बदलने के लिए लाइनों में खड़े थे. लेकिन आज देश के लोग शराब के लिए सड़कों पर लाइन लगाकर खड़े हैं. Lockdown 3.0 में शराब की दुकान खोलने की इजाजत क्या मिली, लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा है शराब खरीदने के लिए. आलम ये है की दुकानें खुलने से पहले लम्बी कतारें देखने को मिल रही है. शराब की दुकानों के पास तो सोशल डिस्टेंसिंग मजाक बनकर रह गया है.
देहरादून के विभिन्न इलाकों में शराब खरीदने के लिए दुकानों पर सैकड़ों लोगों की लंबी-लंबी लाइन लगी है. शराब के आगे लोग सोशल डिस्टेंसिंग की उज्जियां उड़ा रहे हैं. न चेहरे पर मास्क है और न डर है. सबकी चाहत है कि शराब और बीयर की बोतल जल्द ही हाथ में आ जाए. वहीं, शराब की दुकानों के बाहर लगी लंबी लाइनें लोगों को नोटबंदी की भी याद दिला रही है.
ये भी पढ़ें: लॉकडाउन: 2 हजार प्रवासी चंडीगढ़ से उत्तराखंड के लिए हुए रवाना
कैसे होती है राज्यों की कमाई
असल में राज्यों की कमाई के मुख्य स्रोत हैं राज्य जीएसटी, भू-राजस्व, पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले वैट या सेल्स टैक्स, शराब पर लगने वाला एक्साइज और गाड़ियों आदि पर लगने वाले कई अन्य टैक्स. शराब पर लगने वाला एक्साइज टैक्स यानी आबकारी शुल्क राज्यों के राजस्व में एक बड़ा योगदान करता है. शराब और पेट्रोल-डीजल को जीएसटी से बाहर रखा गया है. इसलिए राज्य इन पर भारी टैक्स लगाकर अपना राजस्व बढ़ाते हैं.
कितनी होती है शराब से कमाई
ज्यादातर राज्यों के कुल राजस्व का 15 से 30 फीसदी हिस्सा शराब से आता है. शराब की बिक्री से उत्तराखंड के कुल टैक्स राजस्व का करीब 20 फीसदी हिस्सा मिलता है. सभी राज्यों की बात की जाए तो पिछले वित्त वर्ष में उन्होंने कुल मिलाकर करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये की कमाई यानी टैक्स राजस्व शराब बिक्री से हासिल की थी.