ETV Bharat / state

गढ़वाली बोली के संवर्धन में जुटीं बीना बेंजवाल, 15 साल की मेहनत से तैयार किया शब्दकोश - पाठ्यक्रम में गढ़वाली

उत्तराखंड में शिक्षा व लोक साहित्य से जुड़े कुछ लोग लोक बोलियों के संवर्धन और संरक्षण पर कार्य कर रहे हैं. इनमें साहित्यकार बीना बेंजवाल भी शामिल हैं. जो गढ़वाली बोली के संवर्धन में जुटीं हैं. उन्होंने अपने पति रमाकांत बेंजवाल और अरविंद पुरोहित के साथ मिलकर गढ़वाली हिंदी शब्दकोश तैयार की है. जिसे तैयार करने में 15 साल की मेहनत लगी है.

Beena Benjwal Garhwali Dictionary
बीना बेंजवाल की गढ़वाली शब्दकोश
author img

By

Published : Jun 19, 2022, 10:16 AM IST

Updated : Jun 19, 2022, 1:44 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड अपनी समृद्ध विरासत और परंपरा के लिए जानी जाती है. यहां की लोकबोली और लोकगीतों की मिठास की एक अलग ही पहचान है, लेकिन आज पहाड़ से मैदान की ओर बढ़ते पलायन के साथ यहां की मुख्य लोकबोली गढ़वाली और कुमाऊंनी के अस्तित्व पर खतरा मंडराता जा रहा है. हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में लोक बोलियां अभी भी बरकरार हैं, लेकिन आधुनिकता की दौड़ में युवा पीढ़ी अपनी लोक बोलियों को पीछे छोड़ते जा रहे हैं. इसका मुख्य कारण ये भी है कि प्रदेश सरकार की ओर से लोक बोलियों के संवर्धन के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई गई है.

शिक्षा व लोक साहित्य से जुड़े कुछ लोग उत्तराखंड की लोक बोलियों के संवर्धन और संरक्षण के लिए अपने स्तर पर कार्य कर रहे हैं. इसमें लोक गायक समेत साहित्यकार शामिल हैं. इनमें एक नाम हिंदी और गढ़वाली साहित्य से जुड़ीं साहित्यकार बीना बेंजवाल भी शामिल हैं. जिन्होंने अपने पति रमाकांत बेंजवाल और अरविंद पुरोहित के साथ मिलकर गढ़वाली लोकबोली के संवर्धन के लिए 15 साल की कड़ी मेहनत के बाद गढ़वाली हिंदी शब्दकोश (Garhwali Hindi Dictionary) तैयार किया है.

गढ़वाली बोली के संवर्धन में जुटीं बीना बेंजवाल.

ये भी पढ़ेंः गढ़वाली फीचर फिल्म 'खैरी का दिन' को मिल रहा दर्शकों का प्यार, सरकारी रवैये से नाराज कलाकार

घर पर बच्चों से लोक बोलियों में करें बातः साहित्यकार बीना बेंजवाल (litterateur Beena Benjwal) ने रमाकांत बेंजवाल के साथ मिलकर साल 2018 में गढ़वाली शब्दों का गढ़वाली, हिंदी, अंग्रेजी और रोमन में एक शब्दकोश तैयार किया है. बीना बेंजवाल कहती हैं कि यह चिंता का विषय है कि आज हमारी लोक बोलियां विलुप्ति की कगार पर पहुंच गई हैं. इसके लिए बहुत आवश्यक है कि हमें घर से शुरुआत करनी होगी. अपने बच्चों से घर में अपनी लोक बोलियों में बात करनी चाहिए. साथ ही ऐसा माहौल तैयार करना होगा कि हमारी नई युवा पीढ़ी अपनी लोक बोलियों की ओर आकर्षित हों.

ये भी पढ़ेंः अपणी बोली-अपणी पछ्याण! दून विवि में गढ़वाली-कुमाऊंनी और जौनसारी में कर सकेंगे कोर्स

स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल हो गढ़वाली और कुमाऊंनीः बेंजवाल का कहना है कि प्रदेश सरकार को स्कूल के पाठ्यक्रम में गढ़वाली और कुमाऊंनी लोक बोलियों को शामिल करना होगा, तभी हमारी नई पीढ़ी अपनी लोकबोली और पहचान से रूबरू होगी. बीना बेंजवाल कहती हैं कि हमारी लोकबोली में 50 ऐसे शब्द हैं, जो कि अन्य कहीं नहीं मिलते. साथ ही अनुबोधक और ध्वनि शब्द बहुत समृद्ध हैं. बता दें कि अब देहरादून की दून यूनिवर्सिटी में भी गढ़वाली और कुमाऊंनी लोक बोलियों का सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किया जा रहा है. जो एक अच्छा कदम माना जा रहा है.

देहरादूनः उत्तराखंड अपनी समृद्ध विरासत और परंपरा के लिए जानी जाती है. यहां की लोकबोली और लोकगीतों की मिठास की एक अलग ही पहचान है, लेकिन आज पहाड़ से मैदान की ओर बढ़ते पलायन के साथ यहां की मुख्य लोकबोली गढ़वाली और कुमाऊंनी के अस्तित्व पर खतरा मंडराता जा रहा है. हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में लोक बोलियां अभी भी बरकरार हैं, लेकिन आधुनिकता की दौड़ में युवा पीढ़ी अपनी लोक बोलियों को पीछे छोड़ते जा रहे हैं. इसका मुख्य कारण ये भी है कि प्रदेश सरकार की ओर से लोक बोलियों के संवर्धन के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई गई है.

शिक्षा व लोक साहित्य से जुड़े कुछ लोग उत्तराखंड की लोक बोलियों के संवर्धन और संरक्षण के लिए अपने स्तर पर कार्य कर रहे हैं. इसमें लोक गायक समेत साहित्यकार शामिल हैं. इनमें एक नाम हिंदी और गढ़वाली साहित्य से जुड़ीं साहित्यकार बीना बेंजवाल भी शामिल हैं. जिन्होंने अपने पति रमाकांत बेंजवाल और अरविंद पुरोहित के साथ मिलकर गढ़वाली लोकबोली के संवर्धन के लिए 15 साल की कड़ी मेहनत के बाद गढ़वाली हिंदी शब्दकोश (Garhwali Hindi Dictionary) तैयार किया है.

गढ़वाली बोली के संवर्धन में जुटीं बीना बेंजवाल.

ये भी पढ़ेंः गढ़वाली फीचर फिल्म 'खैरी का दिन' को मिल रहा दर्शकों का प्यार, सरकारी रवैये से नाराज कलाकार

घर पर बच्चों से लोक बोलियों में करें बातः साहित्यकार बीना बेंजवाल (litterateur Beena Benjwal) ने रमाकांत बेंजवाल के साथ मिलकर साल 2018 में गढ़वाली शब्दों का गढ़वाली, हिंदी, अंग्रेजी और रोमन में एक शब्दकोश तैयार किया है. बीना बेंजवाल कहती हैं कि यह चिंता का विषय है कि आज हमारी लोक बोलियां विलुप्ति की कगार पर पहुंच गई हैं. इसके लिए बहुत आवश्यक है कि हमें घर से शुरुआत करनी होगी. अपने बच्चों से घर में अपनी लोक बोलियों में बात करनी चाहिए. साथ ही ऐसा माहौल तैयार करना होगा कि हमारी नई युवा पीढ़ी अपनी लोक बोलियों की ओर आकर्षित हों.

ये भी पढ़ेंः अपणी बोली-अपणी पछ्याण! दून विवि में गढ़वाली-कुमाऊंनी और जौनसारी में कर सकेंगे कोर्स

स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल हो गढ़वाली और कुमाऊंनीः बेंजवाल का कहना है कि प्रदेश सरकार को स्कूल के पाठ्यक्रम में गढ़वाली और कुमाऊंनी लोक बोलियों को शामिल करना होगा, तभी हमारी नई पीढ़ी अपनी लोकबोली और पहचान से रूबरू होगी. बीना बेंजवाल कहती हैं कि हमारी लोकबोली में 50 ऐसे शब्द हैं, जो कि अन्य कहीं नहीं मिलते. साथ ही अनुबोधक और ध्वनि शब्द बहुत समृद्ध हैं. बता दें कि अब देहरादून की दून यूनिवर्सिटी में भी गढ़वाली और कुमाऊंनी लोक बोलियों का सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किया जा रहा है. जो एक अच्छा कदम माना जा रहा है.

Last Updated : Jun 19, 2022, 1:44 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.