देहरादून: प्रदेश आज अपना स्थापना दिवस मना रहा है. राज्य गठन के 20 वर्ष गुजरने के बाद भी राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में पलायन रोकना चुनौती बना हुआ है, तो वहीं प्रदेश में बुनियादी स्तर पर संकट गहराता जा रहा है. दरअसल राज्य के पर्वतीय लोगों की पहचान को संरक्षित करने, रोजगार, शिक्षा व स्वास्थ्य और विकास का मॉडल यहां के भौगोलिक परिवेश की तर्ज पर ढालना ही पर्वतीय राज्य के आंदोलन और राज्य बनाने के मकसद की मूल अवधारणा थी. लेकिन सीपीआई के वरिष्ठ नेता और राज्य सचिव समर भंडारी का मानना है कि प्रदेश में बीते 20 वर्षों में बुनियादी स्तर पर संकट गहराता गया है.
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यहां की भौगोलिक विशिष्ठता और स्थानीय जरूरत के आधार पर विकास की योजनाओं का निर्माण होना चाहिए. लेकिन विकास को मैदानी जिलों तक ही केंद्रित किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि बुनियादी तौर पर उत्तराखंड राज्य आंदोलन सीमांत पर्वतीय जिलों के विकास के नाम पर हुआ था. मगर इन 20 सालों में पर्वतीय जिलों के साथ सौतेला व्यवहार हुआ है, जो शर्मनाक है. उन्होंने राज्य आंदोलन के दौरान शहीद हुए आंदोलनकारियों को भी याद करते हुए कहा कि राज्य निर्माण के लिए 40 से अधिक शहादतें देने के बाद भी उत्तराखंड के बेरोजगार नौजवान सड़कों पर रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं. यह नौजवान चाहते हैं कि प्रदेश में बेहतर विकास हो मगर वह नहीं हो पा रहा है. इन 20 सालों में उत्तराखंड की छवि एक ऐसे राज्य की बनी है जिसमें भ्रष्टाचार बुनियादी रूप से आधार बन गया है, और भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप दिया जा रहा है.