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देवभूमि के इस मंदिर में भगवान राम और लक्ष्मण ने की थी तपस्या, ये है पौराणिक महत्व - देहरादून लक्ष्मण सिद्ध मंदिर

देहरादून से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लक्ष्मण सिद्ध मंदिर हरे भरे जंगलों के बीच बसा है. ये मंदिर अपने धार्मिक महत्व के लिए तो जाना ही जाता है. साथ ही हरे भरे जंगलों के बीच होने के चलते यहां आने वाले हर श्रद्धालु को मन की शांति का एहसास होता है.

लक्ष्मण सिद्ध मंदिर.
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Published : Apr 12, 2019, 9:01 AM IST

Updated : Apr 12, 2019, 10:07 AM IST

देहरादून: देवभूमि में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जहां आकर लोगों के मन को शांति मिलती है. विश्व के 84 सिद्ध पीठों में से चार सिद्ध पीठ उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में भी मौजूद हैं. जिसमें लक्ष्मण सिद्ध, कालू सिद्ध, मानक सिद्ध और मांडू सिद्ध मंदिर शामिल हैं. वहीं लक्ष्मण सिद्ध मंदिर का अपना अलग ही इतिहास है और ऐसी मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मन्नतें जरूर पूरी होती है.

लक्ष्मण सिद्ध मंदिर.
देहरादून से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लक्ष्मण सिद्ध मंदिर हरे भरे जंगलों के बीच बसा है. ये मंदिर अपने धार्मिक महत्व के लिए तो जाना ही जाता है. साथ ही हरे भरे जंगलों के बीच होने के चलते यहां आने वाले हर श्रद्धालु को अगल ही मन की शांति का एहसास होता है. लक्ष्मण सिद्ध मंदिर की खास बात ये है कि यहां आज भी मंदिर में भेंट के रूप में गुड़, घी, दही और चना ही चढ़ाया जाता है. पौराणिक काल में मिठाई की जगह ज्यादातर गुड़ का इस्तेमाल होता था. इसलिए इस मंदिर में प्राचीन काल से लेकर अब तक गुड़ का प्रसाद ही चढ़ाया जाता है. वहीं मंदिर के पुरोहित ने बताया कि त्रेता युग में भगवान श्री राम और लक्ष्मण ने रावण का वध करने के बाद ब्रहमहत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी. यही कारण है कि इस स्थान को लक्ष्मण सिद्ध मंदिर का नाम दिया गया है. उन्होंने बताया कि इस मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते है और सच्चे मन से मांगी गई हर मन्नतें यहां जरूर पूरी होती है. साथ ही उन्होंने बताया कि मनोकामना पूरी होने के बाद हर श्रद्धालु प्रत्येक रविवार मंदिर में भंडारे का आयोजन करता है.

देहरादून: देवभूमि में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जहां आकर लोगों के मन को शांति मिलती है. विश्व के 84 सिद्ध पीठों में से चार सिद्ध पीठ उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में भी मौजूद हैं. जिसमें लक्ष्मण सिद्ध, कालू सिद्ध, मानक सिद्ध और मांडू सिद्ध मंदिर शामिल हैं. वहीं लक्ष्मण सिद्ध मंदिर का अपना अलग ही इतिहास है और ऐसी मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मन्नतें जरूर पूरी होती है.

लक्ष्मण सिद्ध मंदिर.
देहरादून से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लक्ष्मण सिद्ध मंदिर हरे भरे जंगलों के बीच बसा है. ये मंदिर अपने धार्मिक महत्व के लिए तो जाना ही जाता है. साथ ही हरे भरे जंगलों के बीच होने के चलते यहां आने वाले हर श्रद्धालु को अगल ही मन की शांति का एहसास होता है. लक्ष्मण सिद्ध मंदिर की खास बात ये है कि यहां आज भी मंदिर में भेंट के रूप में गुड़, घी, दही और चना ही चढ़ाया जाता है. पौराणिक काल में मिठाई की जगह ज्यादातर गुड़ का इस्तेमाल होता था. इसलिए इस मंदिर में प्राचीन काल से लेकर अब तक गुड़ का प्रसाद ही चढ़ाया जाता है. वहीं मंदिर के पुरोहित ने बताया कि त्रेता युग में भगवान श्री राम और लक्ष्मण ने रावण का वध करने के बाद ब्रहमहत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी. यही कारण है कि इस स्थान को लक्ष्मण सिद्ध मंदिर का नाम दिया गया है. उन्होंने बताया कि इस मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते है और सच्चे मन से मांगी गई हर मन्नतें यहां जरूर पूरी होती है. साथ ही उन्होंने बताया कि मनोकामना पूरी होने के बाद हर श्रद्धालु प्रत्येक रविवार मंदिर में भंडारे का आयोजन करता है.
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देवभूमि के इस मंदिर में  राम और लक्ष्मण ने की थी तपस्या, ये है पौराणिक महत्व

देहरादून:  देवभूमि में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जहां आकर लोगों के मन के शांति मिलती है. विश्व के 84 सिद्ध पीठों में से चार सिद्ध पीठ उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में भी मौजूद है. जिसमें लक्ष्मण सिद्ध, कालू सिद्ध, मानक सिद्ध और मांडू सिद्ध मंदिर शामिल है. वहीं लक्ष्मण सिद्ध मंदिर का अपना अलग ही इतिहास है और ऐसी मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मन्नतें जरूर पूरी होती है. 

देहरादून से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लक्ष्मण सिद्ध मंदिर हरे भरे जंगलों के बीच बसा है. ये मंदिर अपने धार्मिक महत्व के लिए तो जाना ही जाता है. साथ ही हरे भरे जंगलों के बीच होने के चलते यहां आने वाले हर श्रद्धालु को अगल ही मन की शांति का एहसास होता है. लक्ष्मण सिद्ध मंदिर की खास बात ये है कि यहां आज भी मंदिर में भेंट के रूप में गुड़, घी, दही और चना ही चढ़ाया जाता है. पौराणिक काल में मिठाई की जगह ज्यादातर गुड़ का इस्तेमाल होता था. इसलिए इस मंदिर में प्राचीन काल से लेकर अब तक गुड़ का प्रसाद ही चढ़ाया जाता है. 

वहीं मंदिर का इतिहास बताते हुए मंदिर के पुरोहित ने बताया कि त्रेता युग में भगवान श्री राम और लक्ष्मण ने रावण का वध करने के बाद ब्रहमहत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी. यही कारण है कि इस स्थान को लक्ष्मण सिद्ध मंदिर का नाम दिया गया है. उन्होंने बताया कि इस मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते है और सच्चे मन से मांगी गई हर मन्नतें यहां जरूर पूरी होती है. साथ ही उन्होंने बताया कि मनोकामना पूरी होने के बाद  हर श्रद्धालु प्रत्येक रविवार मंदिर में भंडारे का आयोजन करता है.

 


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Last Updated : Apr 12, 2019, 10:07 AM IST
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