देहरादून: उत्तराखंड में करोना संक्रमित मरीज की उपचार के बाद रिपोर्ट नेगेटिव आने पर इसे एक उम्मीद की किरण के रूप में देखा जा रहा है. हालांकि, देश मे अबतक कई मरीज संक्रमण मुक्त होकर अपने घर जा चुके हैं, लेकिन उत्तराखंड में ये पहला केस है जिसमें इलाज के बाद रिपोर्ट नेगेटिव आई है. ऐसे में एक बार फिर मरीज का सैम्पल टेस्ट के लिए भेजा गया है. अब जानिए कि आखिरकार अस्पताल में संक्रमित मरीज को लेकर क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है.
उत्तराखंड में कोरोना वायरस से संक्रमण के अब तक पांच मामले सामने आए हैं. जिसमें एक मरीज की रिपोर्ट अब नेगेटिव आ चुकी है. हालांकि, मरीज की रिपोर्ट फाइनल नहीं है. इसके बाद एक और सैंपल हल्द्वानी लैब के लिए भेजा गया है. जिसकी रिपोर्ट आने के बाद ही यह तय हो पाएगा कि मरीज कोरोनावायरस के प्रकोप से बाहर आ चुका है या नहीं. उधर, रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद अस्पताल प्रबंधन खुश है.
राज्य में एक कोरोना वायरस संक्रमित मरीज की दूसरी रिपोर्ट में संक्रमण नहीं पाया गया है. ये सब डॉक्टर्स की देख रेख और इलाज का ही नतीजा है. दरअसल, कोरोना वायरस संक्रमित मरीज को बेहद एहतियात के साथ डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ की टीम उपचार देती है. तय प्रक्रिया के अनुसार किसी भी मामले के पॉजिटिव आने के बाद उस शख्स को आइसोलेशन वार्ड में रखा जाता है. जहां मरीज को संबंधित तकलीफ जैसे खासी बुखार या सांस लेने में प्रॉब्लम से संबंधित उपचार दिया जाता है. यदि मरीज को सांस लेने पर ज्यादा तकलीफ हो रही है तो वेंटिलेटर पर भी रखा जाता है. उधर, जुखाम और खांसी के लिए गाइडलाइन के अनुसार सामान्य दवा दी जाती है.
केंद्र सरकार की मंजूरी मिलने के बाद अब मरीजों को हाइड्रोक्सी क्लोरोफिल भी दिया जा रहा है. इस दौरान डॉक्टर की निगरानी में करीब 3 से 4 दिन बाद एक बार फिर मरीज का सैंपल लैब के लिए भेजा जाता है. जिसकी रिपोर्ट आने के बाद उसी अनुसार इलाज किया जाता है. दूसरी रिपोर्ट में मरीज में कोरोना वायरस संक्रमण यदि नहीं पाया जाता तो एक बार फिर 24 घंटे पर दूसरे सैंपल को जांच के लिए भेजा जाता है.
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इस तरह मरीज को 14 दिनों तक आइसोलेशन वार्ड में रखकर उसके सैंपल भेजे जाते हैं और रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद अगले 14 दिनों तक क्वॉरेंटाइन किया जाता है. इस तरह कुल 28 दिनों की अवधि तक मरीज पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाता है और इस दौरान उसे बाकी लोगों से बिल्कुल अलग रहना होता है.