ETV Bharat / state

जानिए क्या है बादल फटना, आखिर पहाड़ों पर ही क्यों होती है ऐसी घटना?

उत्तराखंड में इन दिनों बादल फटने की घटनाओं ने कहर बरपा रखा है. खासकर पहाड़ी इलाकों में आए दिन बादल फटने की घटनाएं हो रही हैं. क्यों फटते हैं बादल और पहाड़ी इलाकों से ऐसी घटनाओं का क्या नाता है, पढ़िए हमारी ये खास रिपोर्ट.

clouds burs
बादल फटना
author img

By

Published : Jul 19, 2021, 1:07 PM IST

देहरादून: उत्तरकाशी में बीती रात हुई बारिश और बादल फटने की घटना में अबतक 3 लोग जान गंवा चुके हैं, इनमें दो महिलाएं और एक बच्ची शामिल है. इसके साथ ही मांडो गांव में 15 से 20 घरों में मलबा घुस गया है और 4 से 5 मकान जमींदोज को हो गए हैं. कई लोग अभी लापता हैं. उत्तरकाशी जनपद में बादल फटना कोई नई घटना नहीं है. हर साल बरसात में यहां लोगों को ऐसी घटनाओं से दो-चार होना पड़ता है.

मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक बादल फटना बारिश का एक चरम रूप है. 'बादल फटना' एक तकनीकी शब्‍द है. वैज्ञानिक तौर पर ऐसा नहीं होता कि बादल गुब्बारे की तरह या किसी सिलेंडर की तरह फट जाता हो. उदाहरण के तौर पर, जिस तरह पानी से भरा गुब्‍बारा अगर फूट जाए तो एक साथ एक जगह बहुत तेजी से पानी गिरता है. ठीक वैसी ही स्थिति बादल फटने की घटना में देखने को मिलती है. इस प्राकृतिक घटना को 'क्‍लाउड बर्स्‍ट' या 'फ्लैश फ्लड' भी कहा जाता है.

बादल फटने की घटना मुख्यत: तब होती है, जब बहुत ज्यादा नमी वाले बादल एक जगह रुक जाते हैं. पानी की बूंदों का वजन बढ़ने से बादल का घनत्व (density) काफी बढ़ जाता है और फिर अचानक मूसलाधार बारिश शुरू हो जाती है. बादल फटने पर 100 मिलीमीटर प्रति घंटे की दर से पानी बरसता है. इस दौरान इतना पानी बरसता है कि क्षेत्र में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते हैं.

पहाड़ों पर ही क्‍यों ज्‍यादा बादल फटते हैं: पानी से भरे बादल जब हवा के साथ आगे बढ़ते हैं तो पहाड़ों के बीच फंस जाते हैं. पहाड़ों की ऊंचाई इसे आगे नहीं बढ़ने देती है. पहाड़ों के बीच फंसते ही बादल पानी के रूप में परिवर्तित होकर बरसने लगते हैं. बादलों की डेंसिटी बहुत ज्यादा होने से बहुत तेज बारिश होती है. कुछ ही मिनट में 2 सेंटीमीटर से ज्यादा बारिश हो जाती है. बादल फटने की घटना अक्सर धरती से करीब 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर देखने को मिलती है.

बादल फटने के बाद कैसा होता है मंजर? बादल फटने के बाद इलाके का मंजर भयावह होता है. नदी नालों का अचानक जलस्तर बढ़ने से आपदा जैसे हालात बन जाते हैं. पहाड़ पर बारिश का पानी रुक नहीं पाता, इसीलिए पानी तेजी से नीचे की ओर आता है. नीचे आने वाला पानी अपने साथ मिट्टी, कीचड़ और पत्थरों के टुकड़ों के साथ लेकर आता है. कीचड़ का यह सैलाब इतना खतरनाक होता है कि जो भी उसके रास्ते में आता है उसको अपने साथ बहा ले जाता है.

बादल फटने की बड़ी घटनाओं पर नजर: अगस्त 1998 में कुमाऊं में काली घाटी में बादल फटने की घटना से करीब 250 लोगों की मौत हो गई थी. इनमें से कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले करीब 60 लोग भी शामिल थे. इस प्राकृतिक आपदा में प्रसिद्ध उड़िया डांसर प्रोतिमा बेदी भी थी. वह भी कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जा रही थीं लेकिन बाढ़ और भूस्खलन की चपेट में आने से उनकी मौत हो गई.

ये भी पढ़ें: भूस्खलन के कारण कौडियाला के पास NH-58 बंद, वाहनों की लगी लंबी कतार

सितंबर 2012 में उत्तरकाशी में बादल फटने से 45 लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना में लापता 40 लोगों में से केवल 22 लोगों के शव ही मिले थे.

2013 केदारनाथ आपदा को कौन भूल सकता है. 16-17 जून 2013 को घटी इस त्रासदी ने देश-दुनिया को सन्न कर दिया था. केदारनाथ धाम में भारी बारिश से मंदाकिनी नदी ने प्रचंड रूप धारण कर लिया था. इस हादसे में हजारों लोगों की मौत हुई जबकि कई हजार अबतक लापता हैं. लापता लोगों में से ज्यादातर तीर्थयात्री थे.

साल 2014 जुलाई में टिहरी में बादल फटने से 4 लोगों की मौत हो गई थी. 5 जुलाई 2020 को कोटद्वार के दुगड्डा ब्लॉक के धरियाल सार गांव में बादल फटने से बड़ा नुकसान हुआ था. बादल फटने के कारण गांव को मुख्य मार्ग से जोड़ने वाली एकमात्र पुलिया भी ढह गई.

20 जुलाई 2020 को तेज बारिश से विकासनगर में हुए लैंडस्लाइड के बाद दिल्ली-यमुनोत्री हाईवे पर एक पुल बह गया. मलबे की चपेट में आने से उत्तराखंड जल विद्युत निगम के गेस्ट हाउस को बड़ा नुकसान पहुंचा था.

21 जुलाई 2020 को कोटद्वार के NH-534 पर कोटद्वार-दुगड्डा के बीच बादल फटने से सड़क पर भारी मात्रा में मलबा आ गया था. मलबे की चपेट में आने से एक कार बह गई थी. 19 और 20 जुलाई 2020 को पिथौरागढ़ के मुनस्यारी में विभिन्न स्थानों पर बादल फटने से भारी तबाही हुई. मुनस्यारी के टांगा गांव में 11 लोगों की मौत और गेला गांव में 3 लोगों की मौत हो गई थी. मुनस्यारी में भारी बारिश के कारण गोरी नदी पर बीआरओ का 120 मीटर लंबा वैली ब्रिज बह गया था. जबकि, छोरीबगड़ में पांच घर पूरी तरह जमींदोज हो गए थे.

10 जुलाई 2020 को भी पिथौरागढ़ में बादल फटने के बाद पूरे इलाके में भारी तबाही मची थी. धारचूला तहसील मुख्यालय से 120 किमी दूर गुंजी से कुटी के बीच जबरदस्त बादल फटा और भूस्खलन हुआ, जिसकी वजह से भारत-चीन सीमा पर गुंजी और कूटी के बीच बीआरओ की 500 मीटर लंबी सड़क बह गई. वहीं, पहाड़ियों के दरकने से आए मलबे की वजह से कूटी-यांग्ती नदी के प्रवाह में बाधा उत्पन्न हो गया. जिसकी वजह से उस स्थान पर झील बन गयी थी.

रुद्रप्रयाग में 17 जुलाई 2020 को अखोड़ी और कणसिली गांव में बादल फटने से दो गौशालाएं ढह गईं. इसके साथ ही गांव को जोड़ने वाली मुख्य सड़क क्षतिग्रस्त हो गई.

ये भी पढ़ें: भारी बारिश से उत्तरकाशी-लम्बगांव सड़क पर बना पुल बहा, कई गांवों का टूटा संपर्क

आपदा से हुए नुकसान के आंकड़े

आपदा विभाग द्वारा दिए आंकड़ों के मुताबिक साल 2014 में आई आपदा में कुल 66 लोगों की मौत हो गई थी और 66 लोग घायल हुए थे. साथ ही 371 जानवरों की मौत हो गई थी. जबकि 1285.53 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई थी.

साल 2015 की आपदा में 56 लोगों की मौत और 65 लोग घायल हुए थे. इसके साथ ही 3 हजार 717 जानवरों की मौत हो गई थी. 15.479 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई.साल 2016 की आपदा में 119 लोगों की मौत, 102 लोग घायल और 5 लोग लापता हो गए थे. इसके साथ ही 1 हजार 391 जानवरों की मौत हुई थी. जबकि, 112.245 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई.

साल 2017 की आपदा में 84 लोगों की मौत, 66 लोग घायल और 27 लापता हुए थे. इसके साथ ही 1 हजार 20 जानवरों की मौत हुई थी. जबकि, 21.044 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई. साल 2018 में कुल 4 हजार 330 आपदा की घटनाएं हुईं. जिसमें 101 लोगों की मौत, 53 लोग घायल और 3 लापता हुए थे. इसके साथ ही 895 जानवरों की मौत, 739 मकान क्षतिग्रस्त हो गए थे. इन घटनाओं में 963.284 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई.

ये भी पढ़ें: Ground Report: उत्तरकाशी में बादल फटने से तीन की मौत, मलबे में कई लोगों के दबे होने की आशंका

साल 2019 में 1680 घटनाओं में 102 लोगों की मौत, 91 लोग घायल और 2 लापता हुए थे. इसके साथ ही 1 हजार 323 जानवरों की मौत हुई थी और 385 मकानों को क्षतिग्रस्त हो गए थे. इस दौरान 238.838 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई.

साल 2020 में कुल 225 घटनाएं सामने आईं, जिसमें 21 लोगों की मौत और 15 लोग जख्मी हुए. इन घटनाओं में 186 जानवरों की मौत हुई. 53 मकान क्षतिग्रस्त हुए.

7 फरवरी 2021 को चमोली जिले के रैणी गांव में आपदा आई. ऋषिगंगा ग्लेशियर के टूटने से रैणी और तपोवन के बीच बाढ़ ने मौत का तांडव किया. इस आपदा में 70 से ज्यादा लोग मारे गए थे. कई अभी भी लापता हैं. वहीं 23 अप्रैल 2021 को जोशीमठ के पास ग्लेशियर टूटने से झारखंड के कई मजदूरों की मौत हो गई थी. सुमना में जब ग्लेशियर टूटा तो ये मजदूर प्रोजेक्ट में काम कर रहे थे.

देहरादून: उत्तरकाशी में बीती रात हुई बारिश और बादल फटने की घटना में अबतक 3 लोग जान गंवा चुके हैं, इनमें दो महिलाएं और एक बच्ची शामिल है. इसके साथ ही मांडो गांव में 15 से 20 घरों में मलबा घुस गया है और 4 से 5 मकान जमींदोज को हो गए हैं. कई लोग अभी लापता हैं. उत्तरकाशी जनपद में बादल फटना कोई नई घटना नहीं है. हर साल बरसात में यहां लोगों को ऐसी घटनाओं से दो-चार होना पड़ता है.

मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक बादल फटना बारिश का एक चरम रूप है. 'बादल फटना' एक तकनीकी शब्‍द है. वैज्ञानिक तौर पर ऐसा नहीं होता कि बादल गुब्बारे की तरह या किसी सिलेंडर की तरह फट जाता हो. उदाहरण के तौर पर, जिस तरह पानी से भरा गुब्‍बारा अगर फूट जाए तो एक साथ एक जगह बहुत तेजी से पानी गिरता है. ठीक वैसी ही स्थिति बादल फटने की घटना में देखने को मिलती है. इस प्राकृतिक घटना को 'क्‍लाउड बर्स्‍ट' या 'फ्लैश फ्लड' भी कहा जाता है.

बादल फटने की घटना मुख्यत: तब होती है, जब बहुत ज्यादा नमी वाले बादल एक जगह रुक जाते हैं. पानी की बूंदों का वजन बढ़ने से बादल का घनत्व (density) काफी बढ़ जाता है और फिर अचानक मूसलाधार बारिश शुरू हो जाती है. बादल फटने पर 100 मिलीमीटर प्रति घंटे की दर से पानी बरसता है. इस दौरान इतना पानी बरसता है कि क्षेत्र में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते हैं.

पहाड़ों पर ही क्‍यों ज्‍यादा बादल फटते हैं: पानी से भरे बादल जब हवा के साथ आगे बढ़ते हैं तो पहाड़ों के बीच फंस जाते हैं. पहाड़ों की ऊंचाई इसे आगे नहीं बढ़ने देती है. पहाड़ों के बीच फंसते ही बादल पानी के रूप में परिवर्तित होकर बरसने लगते हैं. बादलों की डेंसिटी बहुत ज्यादा होने से बहुत तेज बारिश होती है. कुछ ही मिनट में 2 सेंटीमीटर से ज्यादा बारिश हो जाती है. बादल फटने की घटना अक्सर धरती से करीब 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर देखने को मिलती है.

बादल फटने के बाद कैसा होता है मंजर? बादल फटने के बाद इलाके का मंजर भयावह होता है. नदी नालों का अचानक जलस्तर बढ़ने से आपदा जैसे हालात बन जाते हैं. पहाड़ पर बारिश का पानी रुक नहीं पाता, इसीलिए पानी तेजी से नीचे की ओर आता है. नीचे आने वाला पानी अपने साथ मिट्टी, कीचड़ और पत्थरों के टुकड़ों के साथ लेकर आता है. कीचड़ का यह सैलाब इतना खतरनाक होता है कि जो भी उसके रास्ते में आता है उसको अपने साथ बहा ले जाता है.

बादल फटने की बड़ी घटनाओं पर नजर: अगस्त 1998 में कुमाऊं में काली घाटी में बादल फटने की घटना से करीब 250 लोगों की मौत हो गई थी. इनमें से कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले करीब 60 लोग भी शामिल थे. इस प्राकृतिक आपदा में प्रसिद्ध उड़िया डांसर प्रोतिमा बेदी भी थी. वह भी कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जा रही थीं लेकिन बाढ़ और भूस्खलन की चपेट में आने से उनकी मौत हो गई.

ये भी पढ़ें: भूस्खलन के कारण कौडियाला के पास NH-58 बंद, वाहनों की लगी लंबी कतार

सितंबर 2012 में उत्तरकाशी में बादल फटने से 45 लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना में लापता 40 लोगों में से केवल 22 लोगों के शव ही मिले थे.

2013 केदारनाथ आपदा को कौन भूल सकता है. 16-17 जून 2013 को घटी इस त्रासदी ने देश-दुनिया को सन्न कर दिया था. केदारनाथ धाम में भारी बारिश से मंदाकिनी नदी ने प्रचंड रूप धारण कर लिया था. इस हादसे में हजारों लोगों की मौत हुई जबकि कई हजार अबतक लापता हैं. लापता लोगों में से ज्यादातर तीर्थयात्री थे.

साल 2014 जुलाई में टिहरी में बादल फटने से 4 लोगों की मौत हो गई थी. 5 जुलाई 2020 को कोटद्वार के दुगड्डा ब्लॉक के धरियाल सार गांव में बादल फटने से बड़ा नुकसान हुआ था. बादल फटने के कारण गांव को मुख्य मार्ग से जोड़ने वाली एकमात्र पुलिया भी ढह गई.

20 जुलाई 2020 को तेज बारिश से विकासनगर में हुए लैंडस्लाइड के बाद दिल्ली-यमुनोत्री हाईवे पर एक पुल बह गया. मलबे की चपेट में आने से उत्तराखंड जल विद्युत निगम के गेस्ट हाउस को बड़ा नुकसान पहुंचा था.

21 जुलाई 2020 को कोटद्वार के NH-534 पर कोटद्वार-दुगड्डा के बीच बादल फटने से सड़क पर भारी मात्रा में मलबा आ गया था. मलबे की चपेट में आने से एक कार बह गई थी. 19 और 20 जुलाई 2020 को पिथौरागढ़ के मुनस्यारी में विभिन्न स्थानों पर बादल फटने से भारी तबाही हुई. मुनस्यारी के टांगा गांव में 11 लोगों की मौत और गेला गांव में 3 लोगों की मौत हो गई थी. मुनस्यारी में भारी बारिश के कारण गोरी नदी पर बीआरओ का 120 मीटर लंबा वैली ब्रिज बह गया था. जबकि, छोरीबगड़ में पांच घर पूरी तरह जमींदोज हो गए थे.

10 जुलाई 2020 को भी पिथौरागढ़ में बादल फटने के बाद पूरे इलाके में भारी तबाही मची थी. धारचूला तहसील मुख्यालय से 120 किमी दूर गुंजी से कुटी के बीच जबरदस्त बादल फटा और भूस्खलन हुआ, जिसकी वजह से भारत-चीन सीमा पर गुंजी और कूटी के बीच बीआरओ की 500 मीटर लंबी सड़क बह गई. वहीं, पहाड़ियों के दरकने से आए मलबे की वजह से कूटी-यांग्ती नदी के प्रवाह में बाधा उत्पन्न हो गया. जिसकी वजह से उस स्थान पर झील बन गयी थी.

रुद्रप्रयाग में 17 जुलाई 2020 को अखोड़ी और कणसिली गांव में बादल फटने से दो गौशालाएं ढह गईं. इसके साथ ही गांव को जोड़ने वाली मुख्य सड़क क्षतिग्रस्त हो गई.

ये भी पढ़ें: भारी बारिश से उत्तरकाशी-लम्बगांव सड़क पर बना पुल बहा, कई गांवों का टूटा संपर्क

आपदा से हुए नुकसान के आंकड़े

आपदा विभाग द्वारा दिए आंकड़ों के मुताबिक साल 2014 में आई आपदा में कुल 66 लोगों की मौत हो गई थी और 66 लोग घायल हुए थे. साथ ही 371 जानवरों की मौत हो गई थी. जबकि 1285.53 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई थी.

साल 2015 की आपदा में 56 लोगों की मौत और 65 लोग घायल हुए थे. इसके साथ ही 3 हजार 717 जानवरों की मौत हो गई थी. 15.479 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई.साल 2016 की आपदा में 119 लोगों की मौत, 102 लोग घायल और 5 लोग लापता हो गए थे. इसके साथ ही 1 हजार 391 जानवरों की मौत हुई थी. जबकि, 112.245 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई.

साल 2017 की आपदा में 84 लोगों की मौत, 66 लोग घायल और 27 लापता हुए थे. इसके साथ ही 1 हजार 20 जानवरों की मौत हुई थी. जबकि, 21.044 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई. साल 2018 में कुल 4 हजार 330 आपदा की घटनाएं हुईं. जिसमें 101 लोगों की मौत, 53 लोग घायल और 3 लापता हुए थे. इसके साथ ही 895 जानवरों की मौत, 739 मकान क्षतिग्रस्त हो गए थे. इन घटनाओं में 963.284 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई.

ये भी पढ़ें: Ground Report: उत्तरकाशी में बादल फटने से तीन की मौत, मलबे में कई लोगों के दबे होने की आशंका

साल 2019 में 1680 घटनाओं में 102 लोगों की मौत, 91 लोग घायल और 2 लापता हुए थे. इसके साथ ही 1 हजार 323 जानवरों की मौत हुई थी और 385 मकानों को क्षतिग्रस्त हो गए थे. इस दौरान 238.838 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई.

साल 2020 में कुल 225 घटनाएं सामने आईं, जिसमें 21 लोगों की मौत और 15 लोग जख्मी हुए. इन घटनाओं में 186 जानवरों की मौत हुई. 53 मकान क्षतिग्रस्त हुए.

7 फरवरी 2021 को चमोली जिले के रैणी गांव में आपदा आई. ऋषिगंगा ग्लेशियर के टूटने से रैणी और तपोवन के बीच बाढ़ ने मौत का तांडव किया. इस आपदा में 70 से ज्यादा लोग मारे गए थे. कई अभी भी लापता हैं. वहीं 23 अप्रैल 2021 को जोशीमठ के पास ग्लेशियर टूटने से झारखंड के कई मजदूरों की मौत हो गई थी. सुमना में जब ग्लेशियर टूटा तो ये मजदूर प्रोजेक्ट में काम कर रहे थे.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.