देहरादून: उत्तर प्रदेश और राजस्थान में हुई संतों की हत्या के बाद एक बार फिर से यह सवाल उठने लगा है कि आखिरकार संतों की हत्या या उन पर जानलेवा हमला क्यों हो रहे हैं. आखिरकार क्यों भूमाफिया अब भगवा चोला पहने संतों के ऊपर हावी होना चाहते हैं. हालांकि ये कोई पहला मामला नहीं है, जब संतों के ऊपर संपत्ति को लेकर हमले या उनकी हत्या हुई हो. इससे पहले भी यह कहानी निरंतर सालों से चली आ रही है. जानिए क्या है संतों की हत्या का प्रमुख कारण.
अखाड़ों और मठों की संपत्ति पर भूमाफियाओं की नजर
इसका जीता जागता उदाहरण देवभूमि उत्तराखंड का हरिद्वार शहर है, जहां पर तमाम साधु-संतों अखाड़ों और मठों के बेइंतहा संपत्ति पर हमेशा से भू माफियाओं की नजर रही है. हालांकि ऐसा नहीं है कि सिर्फ इसमें भूमाफिया ही दोषी है, बल्कि संत भी दान में मिली अकूत जमीन जायदाद को ठिकाने लगाने के लिए भू माफियाओं का सहारा ले रहे हैं. शायद यही कारण है कि यह संपत्तियां संतों की हत्या का प्रमुख कारण बनती जा रही हैं.
गोंडा राम जानकी मंदिर के पुजारी पर जानलेवा हमला
उत्तर प्रदेश के गोंडा में राम जानकी मंदिर मनोरमा उद्गम स्थल के पुजारी पर हमलावरों ने गोली चलाई. हमले में घायल पुजारी को गोंडा से लखनऊ रेफर किया गया. बताया जा रहा है कि मनोरमा उद्गम स्थल की संपत्ति को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है. जिसके कारण पिछले साल भी यहां के महंत सीताराम दास पर जानलेवा हमला हुआ था. अपराधी अपने मनसूबे में जब कामयाब नहीं हुए तो एक बार फिर से घटना को अंजाम दिया.
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करौली में दबंगों ने पुजारी को जिंदा जलाया
ऐसा ही एक मामला राजस्थान के करौली जिले के सपोटरा इलाके के बूकना गांव में सामने आया, जहां पर दबंगों ने पुजारी बाबूलाल वैष्णव को जिंदा जलाकर हत्या कर दी. इन घटनाओं को देखकर लगता है कि भला इन संतों का कौन दुश्मन हो सकता है और आखिरकर ये खूनी खेल क्यों खेला जा रहा है. साधु संतों पर हमला की यह कोई पहली घटना नहीं है. इससे पहले भी यूं ही संतों की हत्या होती रही है. उत्तराखंड बनने के बाद से धर्मनगरी हरिद्वार रियल स्टेट के कारोबार में एक बड़ा क्षेत्र बन कर उभरा है. शायद यही वजह है की पिछले करीब 23 सालों में दो दर्जन से भी अधिक संत केवल संपत्ति की वजह से मारे गए. गंगा किनारे कितनों का मोक्ष का द्वार खुला हो यह तो पता नहीं, लेकिन करीब दो दशक में 22 साधु सन्यासी संपत्ति के चलते मार दिये गए. वहीं, कुछ को जहर देकर मारने तक की कोशिश की गई.
2011 में सुधीर गिरि की हत्या
2011 में सुधीर गिरि की हत्या के बाद एक बार फिर से धर्मनगरी हरिद्वार में संतों के माफिया से मजबूत होते गठबंधन को लेकर सवाल उठने लगे थे. सुधीर गिरि की हत्या रुड़की हरिद्वार मार्ग पर बने उनके आश्रम में गोली मार कर कर दी गई थी. बताया जाता है की सुधीर गिरि ही नहीं उनके जैसे दर्जनों संत संपत्ति के लालच और हरिद्वार में लगातार बढ़ती जा रही फ्लैट संस्कृति के चलते जान गवां रहे है.
हरिद्वार भूमाफियों से साधु संतों की नजदीकियां
वरिष्ठ पत्रकार सुनील मानते है कि उत्तराखंड बनने के बाद जिस तरह से धर्म नगरी हरिद्वार में संतों और अखाड़ों में फ्लैट संस्कृति का चलन बढ़ा है. उसी की वजह से लगातार संतों की हत्याएं हो रही है और आगे भी होती रहेंगी. इतना ही नहीं साल 2017 में भी श्री पंचायती उदासीन बड़ा अखाडा के मुख्य संतों में से एक मोहन दास कुठारी भी ऐसे गायब हुए कि आज तक पुलिस भी उन्हें खोज नहीं पाई है. कहा जाता है कि मोहन दास ही अखाड़े की सभी संपत्तियों का रख रखाव और पैसे का लेनदेन करते थे. उनके अचानक गायब होने के बाद ये जानकारी सामने आई थी की उनकी भी नजदीकियां कई प्रॉपर्टी कारोबारियों से थी. अनादिकाल से मठ, मंदिर आश्रम, अखाड़े हमारी संस्कृति के ध्वजवाहक तथा आस्था का केन्द्र रहे हैं, लेकिन भले ही हरिद्वार के आश्रमों, मठों, मंदिरों में जो वैराग्य की शिक्षा दी जाती हों. ऐसे साधु सन्यासी का खून हो रहा है तो इसे क्या माना जाए ?
सनसनीखेज हत्याकाण्डों की कड़ी 1991 से शुरू
- 25 अक्टूबर 1991 को रामायण सत्संग भवन के संत राघवाचार्य को स्कूटर सवार बदमाशों ने पहले उन्हें घेरकर गोली मारी, फिर चाकूओं से गोद दिया.
- 09 दिसम्बर 1993 को रामायण सत्संग भवन के ही स्वामी व संत राघवाचार्य आश्रम के साथी रंगाचार्य की ज्वालापुर में हत्या कर दी गई. अब सत्संग भवन में सरकारी पहरा है तथा उस पर रिसीवर तैनात है.
- सुखी नदी स्थित मोक्षधाम की करोड़ों की संपत्ति है. 1 फरवरी 2000 को ट्रस्ट के सदस्य गिरीश चंद अपने साथी रमेश के साथ अदालत जा रहे थे. तभी पीछे से एक जीप ने उन्हें टक्कर मारी, जिसमें उनकी मौत हो गई. पुलिस ने स्वामी नागेन्द्र ब्रह्मचारी को सूत्रधार मानते हुए जेल भेज दिया.
- बेशकीमती कमलदास की कुटिया पर भी लोगों की दृष्टि रही तथा झगड़े हुए. गनीमत है कि वहां कोई हत्या तो नहीं हुई, लेकिन पुलिस का पहरा बरकरार है.
- चेतनदास कुटिया में तो अमेरिकी साध्वी प्रेमानंद की दिसंबर 2000 में लूटपाट कर हत्या कर दी गई. कुछ स्थानीय लोग पकड़े गए और मामला चल रहा है.
- 5 अप्रैल 2001 को बाबा सुतेन्द्र बंगाली की हत्या.
- 16 जून 2001 को हरकी पैड़ी के सामने टापू में बाबा विष्णुगिरि समेत चार साधुओं की हत्या.
- 26 जून 2001 को ही एक अन्य बाबा ब्रह्मानंद की हत्या, इसी वर्ष पानप देव कुटिया के बाबा ब्रह्मदास को दिनदहाड़े गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया.
- 17 अगस्त 2002 बाबा हरियानंद एवं उनके चेले की हत्या। एक अन्य संत नरेन्द्र दास की हत्या.
- 6 अगस्त 2003 को संगमपुरी आश्रम के प्रख्यात संत प्रेमानंद उर्फ भोले बाबा गायब.
- 7 सितंबर 2003 को हत्या का खुलासा। आरोपी गोपाल शर्मा पकड़ा गया, अब आश्रम सील है.
- 28 दिसम्बर 2004 को संत योगानंद की हत्या.
हरिद्वार हो या बनारस, इलाहाबाद हो या मथुरा संतों की हत्या या गायब होने का मुख्य कारण जमीन विवाद ही रहा है. ऐसे में सवाल उठता है की इन संतो को भगवान की भक्ति से मोक्ष मिले या ना मिले, लेकिन जमीन विवाद में पड़कर परलोक जरूर सिधार गए है.