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पितृपक्ष के दूसरे दिन कुंड में स्नान जरूरी, 5 वेदियों पर इन विधियों से होता है पिंडदान

अपने वनवास के दिनों में भगवान राम ने गया के पांच कुंडों में स्नान किया था. जहां पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है. यहां कुल मिलाकर पांच वेदियां है. प्रेतशिला, रामशिला, रामकुंड, ब्रह्मकुंड और कागबलि.

पितृपक्ष के दूसरे दिन कुंड में स्नान जरूरी
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Published : Sep 14, 2019, 12:08 PM IST

देहरादूनः उत्तरप्रदेश की मोक्ष नगरी गया में उत्तर दिशा की ओर लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है प्रेतशीला. नाम से स्पष्ट है कि यह प्रेतों का पर्वत है. इस पर्वत पर यम देवता का स्थान माना जाता है. गया श्राद्ध करने वाले प्राणियों के लिए भी यह बड़ा विशिष्ट है. प्रेतशिला पहाड़ी के ऊपर एक छोटा सा यम का मंदिर है. उस मंदिर के परिसर में तीर्थ यात्री चावल तथा आटे का पिंडदान करते हैं. यहां पर पिंडदान करने से मृत आत्मा यम की यातना से मुक्त हो जाते हैं.

प्रेतशिला पहाड़ी के ऊपर मंदिर तथा उसका पार्श्व भाग जहां तीर्थयात्री पिंडदान करते हैं. उसका निर्माण कोलकाता के किसी धर्मनुरागी व्यवसायी ने1974 में कराया था. इस पहाड़ के नीचे तीन कुंड हैं, जिन्हें सीताकुंड, निगरा कुंड और सुख कुंड कहा जाता है. इसके अतिरिक्त भगवान यम के मंदिर के नीचे समतल में एक चौथा कुंड है, जिसे रामकुंड कहा जाता है.

पितृपक्ष के दूसरे दिन कुंड में स्नान जरूरी

क्या है कथा...
कथा है कि अपने वनवास के दिनों में भगवान राम ने इस कुंड में स्नान किया था. इस स्थान पर भी पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है. यहां कुल मिलाकर पांच वेदियां है. प्रेतशिला, रामशिला, रामकुंड, ब्रह्मकुंड और कागबलि. ये संपूर्ण बेदिया पंच वेदी के नाम से प्रतिष्ठित हैं. गया श्राद्ध के निमित्त आने वाले तीर्थयात्री श्राद्ध क्रम में दूसरे दिन पंच वेदी पर पिंडदान करते हैं.

दूसरे दिन, ऐसे करें पिंड दान...
द्वितीय दिन स्नान कर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर प्रेतशिला सहित चार वेदियों पर जाना होता है. सर्वप्रथम प्रेतशिला पहुंचकर ब्रह्मकुंड में स्नान तर्पण कर पिंडदान करें. तीर्थों में श्रद्धा रखकर प्रणाम करके पवित्र जल से पवित्र स्थान पर बैठकर श्राद्ध पिंड दान करना चाहिए. ब्रह्मकुंड श्राद्ध करके प्रेतशिला पर 750 सीढ़ी चढ़कर ऊपर सत्तू से पिंडदान करें. अगर कोई चढ़ने में असमर्थ हो तो नीचे ही पिंडदान कर लें.

तिल और सत्तू अर्पित करते हुए, करें ये प्रार्थना
सत्तू में तिल मिलाकर अपसव्य से दक्षिण-पश्चिम होकर, उत्तर, पूरब इस क्रम से सत्तू को छिंटते हुए प्रार्थना करें कि हमारे कुल में जो कोई भी पितर प्रेतत्व को प्राप्त हो गए हैं, वो सभी तिल मिश्रित सत्तू से तृप्त हो जाएं. फिर उनके नाम से जल चढ़ाकर प्रार्थना करें. ब्रह्मा से लेकर चिट्ठी पर्यन्त चराचर जीव, मेरे इस जल-दान से तृप्त हो जाएं. ऐसा करने से उनके कुल में कोई प्रेत नहीं रहता है.

प्रेतशिला से चलकर रामकुंड, रामशिला और काग बलि, पिंड वेदी में श्राद्ध कर दूसरे दिन की विधि पूर्ण किया जाता है. पितरों की तृप्ति के लिए मूंग अथवा उड़द के दाल का भी दान अवश्य करें. अन्य चार वेदियों पर तीसरे दिन भी पिंडदान होता है.

देहरादूनः उत्तरप्रदेश की मोक्ष नगरी गया में उत्तर दिशा की ओर लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है प्रेतशीला. नाम से स्पष्ट है कि यह प्रेतों का पर्वत है. इस पर्वत पर यम देवता का स्थान माना जाता है. गया श्राद्ध करने वाले प्राणियों के लिए भी यह बड़ा विशिष्ट है. प्रेतशिला पहाड़ी के ऊपर एक छोटा सा यम का मंदिर है. उस मंदिर के परिसर में तीर्थ यात्री चावल तथा आटे का पिंडदान करते हैं. यहां पर पिंडदान करने से मृत आत्मा यम की यातना से मुक्त हो जाते हैं.

प्रेतशिला पहाड़ी के ऊपर मंदिर तथा उसका पार्श्व भाग जहां तीर्थयात्री पिंडदान करते हैं. उसका निर्माण कोलकाता के किसी धर्मनुरागी व्यवसायी ने1974 में कराया था. इस पहाड़ के नीचे तीन कुंड हैं, जिन्हें सीताकुंड, निगरा कुंड और सुख कुंड कहा जाता है. इसके अतिरिक्त भगवान यम के मंदिर के नीचे समतल में एक चौथा कुंड है, जिसे रामकुंड कहा जाता है.

पितृपक्ष के दूसरे दिन कुंड में स्नान जरूरी

क्या है कथा...
कथा है कि अपने वनवास के दिनों में भगवान राम ने इस कुंड में स्नान किया था. इस स्थान पर भी पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है. यहां कुल मिलाकर पांच वेदियां है. प्रेतशिला, रामशिला, रामकुंड, ब्रह्मकुंड और कागबलि. ये संपूर्ण बेदिया पंच वेदी के नाम से प्रतिष्ठित हैं. गया श्राद्ध के निमित्त आने वाले तीर्थयात्री श्राद्ध क्रम में दूसरे दिन पंच वेदी पर पिंडदान करते हैं.

दूसरे दिन, ऐसे करें पिंड दान...
द्वितीय दिन स्नान कर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर प्रेतशिला सहित चार वेदियों पर जाना होता है. सर्वप्रथम प्रेतशिला पहुंचकर ब्रह्मकुंड में स्नान तर्पण कर पिंडदान करें. तीर्थों में श्रद्धा रखकर प्रणाम करके पवित्र जल से पवित्र स्थान पर बैठकर श्राद्ध पिंड दान करना चाहिए. ब्रह्मकुंड श्राद्ध करके प्रेतशिला पर 750 सीढ़ी चढ़कर ऊपर सत्तू से पिंडदान करें. अगर कोई चढ़ने में असमर्थ हो तो नीचे ही पिंडदान कर लें.

तिल और सत्तू अर्पित करते हुए, करें ये प्रार्थना
सत्तू में तिल मिलाकर अपसव्य से दक्षिण-पश्चिम होकर, उत्तर, पूरब इस क्रम से सत्तू को छिंटते हुए प्रार्थना करें कि हमारे कुल में जो कोई भी पितर प्रेतत्व को प्राप्त हो गए हैं, वो सभी तिल मिश्रित सत्तू से तृप्त हो जाएं. फिर उनके नाम से जल चढ़ाकर प्रार्थना करें. ब्रह्मा से लेकर चिट्ठी पर्यन्त चराचर जीव, मेरे इस जल-दान से तृप्त हो जाएं. ऐसा करने से उनके कुल में कोई प्रेत नहीं रहता है.

प्रेतशिला से चलकर रामकुंड, रामशिला और काग बलि, पिंड वेदी में श्राद्ध कर दूसरे दिन की विधि पूर्ण किया जाता है. पितरों की तृप्ति के लिए मूंग अथवा उड़द के दाल का भी दान अवश्य करें. अन्य चार वेदियों पर तीसरे दिन भी पिंडदान होता है.

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