देहरादून: केदारनाथ धाम के कपाट खुलते ही देश ही विदेशों से भी काफी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचे. वहीं भैयादूज पर्व पर आज केदारनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद हो गए. पौराणिक मान्यता है कि बाबा केदारनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद छह माह नर और छह महीने देवता पूजा करते हैं.
मान्यता है कि केदारनाथ मंदिर का निर्माण आदि शंकराचार्य ने किया था. जिसे पांडवों के समय में निर्मित बताया जाता है. हर साल मंदिर के कपाट खुलते ही भारी संख्या में श्रद्धालु बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. वहीं भैयादूज पर्व पर आज केदारनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद हो गए.
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पौराणिक मान्यता है कि कपाट बंद रहने के दौरान मंदिर में पूजा की जिम्मेदारी सभी देवताओं के कंधों पर आ जाती है. जब केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद होते हैं तब उस समय एक अखंड ज्योति जलाकर रख दिया जाता है. ऐसी मान्यता है कि 6 महीने के बाद दोबारा मंदिर के दरवाजे खुलने पर अखंड ज्योति जलती रहती है. जो भक्तों की आस्था को और प्रगाढ़ करता है.
पौराणिक कथा
मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव अपने भाईयों की हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसलिए पांडव भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन भगवान भोलेनाथ पांडवों से काफी नाराज थे. जिसकी वजह से वे पांडवों को अपने दर्शन नहीं देना चाहते थे. लेकिन पांडव भगवान शिव को खोजते हुए हिमालय पर पहुंचे. भगवान शंकर अंर्तध्यान होकर केदार में जा बसे. वहीं पांडव भी भगवान शिव का पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए.
भगवान शंकर ने तब भैंसे का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले. जिस पर पांडवों को संदेह हुआ. जिसके बाद भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैल दिए. इस दौरान सभी भैंसे उनके पैरों से निकल गए, लेकिन भगवान शंकर रूपी भैंस उनके से नहीं निकला. फिर भीम पूरी ताकत से भैंस पर झपटे, लेकिन भीम के झपटे ही भगवान शिव भूमि में अंर्तध्यान होने लगे. तब भीम ने भैंस का पीठ का भाग पकड़ लिया. भगवान शिव ने पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए और उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया.