देहरादून: स्वामी विवेकानंद की जयंती के अवसर पर जनता दर्शन हॉल मे 'राष्ट्रभक्ति कवि सम्मेलन' का आयोजन किया गया. आयोजित कवि सम्मेलन में कवि डॉ. कुमार विश्वास, कविता तिवारी, राजीव राज, रमेश मुस्कान और तेजनारायण शर्मा ‘बेचैन’ ने अपनी कविताओं से समां बांध दिया. कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए सीमित संख्या में आमंत्रित किए गए लोगों के बीच राष्ट्र, संस्कृति, सेना की वीरता, मातृ शक्ति सहित विभिन्न विषयों पर काव्य प्रस्तुतियां की गई.
डॉ. कुमार विश्वास ने अपने अंदाज में कवि सम्मेलन को संचालित कर लोगों को कवि सम्मेलन में सहभागी बनाया. राष्ट्रभक्ति, देश के लिए बलिदान की भावना, भारतीय संस्कृति के महत्व पर प्रस्तुत की गई कविताओं पर सभागार दर्शकों की तालियों से गूंजता रहा. बीच-बीच में कवियों ने व्यंग्य से दर्शकों को हंसाया भी और कविताओं के माध्यम से संदेश भी दिया.
कविताओं की गहराई को समझने की जरूरत
कार्यक्रम में अतिथि कवियों का स्वागत करते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि स्वामी विवकानंद हम सभी के आदर्श हैं. उन्होंने पूरी दुनियां में भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता का परचम लहराया. उन्होंने आगे कहा कि भारतीय संस्कृति उस छाते की तरह है जिसके नीचे सभी दर्शन, विचार, मत, संप्रदाय खुली सांस के साथ आश्रय लेते हैं. कवि मुक्त होते हैं, उन्हें मुक्त होना भी चाहिए. जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि. हमारा दायित्व है कि उनकी कविताओं की गहराइयों को समझें. कविताओं के संदेश को समझ कर हम समाज, शासन में सुधार करने की कोशिश भी करते हैं. मुख्यमंत्री ने सभी काव्य प्रस्तुतियों की सराहना करते हुए कहा कि लंबे समय बाद छोटे स्तर पर इस तरह का आयोजन किया गया है. हमारा देश कोविड से जंग जीतने की ओर है. वैक्सीनेशन भी शुरू किया जा रहा है. आशा है कि हम जल्द ही कोरोना से पूरी तरह से मुक्त होंगे और बड़े स्तर पर इस तरह का आयोजन करेंगे.
डॉ. कुमार विश्वास ने सुनाई कविताएं
इससे पहले डॉ. कुमार विश्वास ने कहा कि नमन उनको जो इस देह को अमरत्व देकर, इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो गए है. नमन उनको जिनके सामने बौना हिमालय, जो धरातल पर गिर पड़े, आसमानी हो गए, कविता से शहीदों को नमन किया. डॉ. विश्वास ने गंगा पर भी कविता सुनाई जो उन्होंने उत्तराखंड में ही लिखी थी. 'खिलौने साथ बचपन तक, जवानी बस रवानी तक, सभी अनुभव भरे किस्से बस बुढ़ापे की कहानी तक, जवानी में बस सहारे हैं बस जिंदगी भर के, मगर ये जिंदगी के आखिरी पल का सहारा है, ये गंगा का किनारा है, ये गंगा का किनारा है'.
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कविता तिवारी ने मां शारदा की वंदना करते हुए अपनी ओजस्वी सुर में ‘धन द्रव्य सम्पदा तो नहीं मांग रही हूं, जो मांग रही हूं वो सही मांग रही हूं, कविता की पंक्ति पंक्ति राष्ट्र जागरण बने, आशीष आप सब से यही मांग रही हूं. उत्तराखंड की दिव्यता और पवित्रता को नमन करते हुए उन्होंने 'धरा यहां धरती के सम्मुनत भाल जैसा है, यहां की संस्कृति का रूप शुभटक साल जैसा है, कोई उपमा में सारे विश्व को कह दे शिवाला तो, हमारा देश पावन आरती के थाल जैसा है', कविता सुनाई.