मसूरी: यूं तो पहाड़ों की रानी का हर एक दिन अपने आप में खास होता है. लेकिन 1920 की गर्मियों के दिन मसूरी के लिए बेहद ही यादगार था. यही वो समय था जब देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर नेहरू अपनी बीमार मां और पत्नी कमला नेहरू के साथ मसूरी के सवॉय होटल पहुंचे थे. इस दौरान बेटी इंदिरा भी पंडित जी के साथ वहां मौजूद थीं. पंडित जी की इस यात्रा के दौरान कुछ ऐसे संयोग बने कि उन्हें राजनीति में उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसके बाद से ही मसूरी और होटल सवॉय पंडित जी के लिए बेहद खास हो गया.
दरअसल, नेहरूजी के मसूरी प्रवास के दौरान अफगान का एक प्रतिनिधिमंडल ब्रिटिश सरकार के साथ राजनीतिक वार्ता के लिए सवॉय होटल में मौजूद था. ब्रिटिश सरकार को डर था कि नेहरू जी अफगान प्रतिनिधिमंडल से मिलकर उन्हें प्रभावित कर सकते हैं. ये सोचकर उनसे एक उपक्रम पर हस्ताक्षर करने को कहा गया, जिसके लिए नेहरू जी ने साफ मना कर दिया. नेहरू जी बिना जानकारी के सवॉय होटल में रुके थे, जैसे ही ब्रिटिश सरकार को इसका पता चला तो उन्होंने नेहरू जी को 24 घंटे के अंदर मसूरी छोड़ने के आदेश दिये. ये बात नेहरू जी को इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में उतरने का फैसला किया.
मसूरी में राधा भवन और सवॉय होटल के साथ कैमल बैक रोड पर स्थित कमला कैसल और चंडानलगडी का क्रेग टॉप नेहरू परिवार की पंसदीदा जगहों में शामिल था. मसूरी के मशहूर इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि नेहरू जी को जैसे ही राजनीति से फुर्सत मिलती थी वे मसूरी पहुंच जाया करते थे. मसूरी के सवॉय होटल से नेहरू जी को खासा लगाव था. वे जब भी मसूरी आते थे तो यहां रुकते थे.
वहीं, सवॉय होटल ने भी नेहरू जी की यादों को संजोये रखा है. होटल की गैलरी में आज भी उस दौर की तस्वीरें लगी दिखती हैं. नेहरू जी के जन्मदिन पर यहां अकसर लोगों के बधाई संदेश देने आते थे, उन संदेशों को आज भी होटल प्रबंधन ने संभालकर रखा है. हालांकि, अब सवॉय नये कलेवर में सबके सामने हैं लेकिन नेहरू जी की विरासत को आज भी उसी रूप में यहां संजोकर रखा गया है.